मसखरी ( Clown )
मसखरी – त्रिचनापल्लीके प्रसिद्ध माधवजीके मन्दिरमें मूर्तिके ऊपर जो मुकुट है, वह एक नर्तकीने साढ़े तीन लाखकी कीमतसे बनवाकर कैसे चढ़ाया था – यह कहानी उसी ऐतिहासिक घटनापर लिखी जाती है। उस समय बादशाह अकबर भारतसम्राट् थे ।
उस शहरकी प्रसिद्ध नर्तकी रेणुबाईने मरते समय ग्यारह सालकी ललिताबाई नाम्नी एक लड़की और चार लाख रुपये नकद जवाहरातसहित छोड़े थे। उसका पक्का मकान चार मंजिलकी हवेली थी। रेणुबाई शाही नर्तकी थी। सालमें तीन मरतबा उसको बादशाहके दरबारमें नाचना पड़ता था। एक लाख रुपये सालाना उसकी तनखाह थी।
जिस समय रेणुबाई जिस समयका राग गाती— उपस्थित प्रकृतिमें वही दृश्य सामने आकर उपस्थित हो जाता था। एक गीत गाते हुए वह दो नागिनोंको पकड़ लेती थी, जो शाही सपेरेद्वारा बिना विषदन्त तोड़े मँगायी जाती थीं। एक गीतद्वारा वह मेघोंको बुलाती थी। एक गीत ऐसा गाती थी कि सुन्दर और सुनहले कबूतर आ-आकर उसके अंगोंपर बैठ जाते थे।
रेणुके गीतोंपर कई बार कोयलें बोली थीं और मोर नाचे थे। अव्वल नम्बरकी नर्तकी ‘विशुद्ध गायिका’ होती हैं। कई नर्तकियाँ आजन्म ब्रह्मचर्य रखकर मर गयी हैं। रेणुबाईका एक बार बादशाहसे संयोग हुआ था । ललिता उसीकी स्मृति थी
उस दिन शामका समय था। दिनके साथ रातकी संधि हो रही थी। ललिता दूसरी मंजिलवाले अपने कमरे में गद्दी लगाये बैठी थी। उमर उसकी थी चौदह सालकी रंग श्याम, परंतु छबिशील। उस कमरेमें सभी तरह के बाजे रखे थे। अलमारियोंमें सुकवियोंकि कविता-ग्रन्थ रखे थे। उस समय वह अकेली थी।
सहसा सामने कमरेके द्वारपर एक ब्रह्मचारी नवयुवक साधकको देख ललिता अचकचा गयी। ललिता-नीचे मेरा सिपाही नहीं था? ब्रह्मचारी नहीं था।
ललिता आप यहाँ किस विचारसे आये ?
ब्रह्मचारी सड़कपर मैंने एक आदमीसे यह पूछा था कि मुझे किसी ‘सत्संगप्रिय सज्जन’ का मकान बताओ। रातको ठहरना भी हो और ‘सत्संगका आनन्द’ भी प्राप्त हो! उस आदमीने मुझे तुम्हारे मकानकी तरफ इशारेसे बता दिया और चला गया।

ललिता
वह आदमी मुँहसे नहीं बोला था ?
ब्रह्मचारी नहीं बोला था।
ललिता-अच्छा, फिर क्या हुआ? ब्रह्मचारी फिर यही हुआ कि मैं आपके सामने आ गया।
ललिता-और सिपाही ? ब्रह्मचारी – कैसा सिपाही ?
ललिता-दरवाजेपर कोई नहीं था ?
ब्रह्मचारी- कोई नहीं। मैं आपको कोई सेठजी मानकर चला आया।
आपको तकलीफ हुई—इसके लिये क्षमा चाहता हूँ । ललिता आप यों ही मत जाइये भोजन लेकर जाइये इस घरसे आपको एक रुपया भोजनके लिये दिया जायगा। मगर आप नीचे जाकर जो दरवाजेपर हो, उसे बुला लाइये। थोड़ी देर बाद ब्रह्मचारीजी एक पंद्रह सालके लड़के सहित फिर
आये। लड़का नीचा सिर किये और दोनों हाथ जोड़कर सामने खड़ा हो रहा।
ललिता-महमूद ?
महमूद-जी सरकार।
ललिता- जब ये बाबाजी आये, तब तुम कहाँ थे? महमूद पेशाब करने गया था, हुजूर!
ललिता – कितनी दूर गये थे?
महमूद-पासकी ही गली में! ललिता- तुमने बाबाजीको ऊपर आते देखा था.?
महमूद – देखा था गरीब-परवर! ललिता-रोका क्यों नहीं ?
महमूद
पेशाब कर रहा था। ललिता-बोला क्यों नहीं ?
महमूद – पेशाब करते वक्त बोलना शरअसे मना है।
ललिता-अच्छा, फिर तुम ऊपर क्यों नहीं आये?
महमूद मैंने सोचा कि आप ही उतर आयेगा ।
ललिता- क्यों बाबाजी महाराज! जब आप इस हवेलीके दरवाजेपर आये थे, तब यह लड़का वहाँ था या नहीं? ब्रह्मचारी – ‘था’ के क्या मानी ? अरे, इसी लड़केने तो मुझे ‘सत्संगी
सेठका मकान’ बताया था।
ललिता- क्यों रे? चुप क्यों हो गया-बदमाश! अच्छा, जाओ तुम बरखास्त हुए बेटा! मेरे साथ चाल ? यह मसखरी ? और खड़ा कैसा है- मुँहझौसा, मानो कुछ जानता ही नहीं।
ब्रह्मचारी नहीं बाईजी, मुझे इतनी ही भीख दो कि मेरे कारण इसपर कोई अत्याचार न हो। मैं तुम्हारा रुपया नहीं चाहता। मुझे मालूम हो गया कि मैं इस लड़केकी मसखरीसे भूलकर एक नर्तकीके मकान में आ गया हूँ। मैं ब्रह्मचारी और त्यागी हूँ। मेरे लिये भी शरअ मना करती है। मैं कदापि तुमसे रुपया नहीं ले सकता। हाँ, इतनी भिक्षा
अवश्य माँगता हूँ कि इस लड़केको क्षमा कर दो। ललिता बाबाजी! आप जिन तीन बातोंकी आशा लेकर इस मकानमें आये, मैं उन तीनोंको पूरी करूंगी।
ब्रह्मचारी कौन-सी तीन बातें? ललिता – प्रथम रात्रि विश्राम, द्वितीय भोजन और तृतीय सत्संग ! मगर इस मालिकसे मसखरी करनेवालेको नहीं रखेंगी।
ब्रह्मचारी
यहाँ तीन में से एक भी मैं ग्रहण नहीं कर सकता। लड़केने मसखरी जरूर की, मगर उसकी यह मसखरी कीमती कितनी है? ललिता – आप तीनों पदार्थ ग्रहण करनेपर मजबूर हैं। आप मुझे एक लड़की क्यों देख रहे हैं? मुझे एक ‘सत्संगी सेठ’ के रूपमें देखनेसे आपकी क्या हानि है? यही आपका ज्ञान है? आत्माको देखते फिरते हैं या रूपको? देह नहीं, ध्येय देखो बाबा !
ललितकुमारीकी तबीयत फकीराना थी उसने ब्रह्मचारीको एक सप्ताहतक अपने मकानमें रोक लिया। सबसे ऊपरकी चौथी मंजिल उनके लिये खाली कर दी और एक ब्राह्मण लड़का भोजन सेवाके लिये रख दिया। सातवें दिन उन दोनोंमें बातचीत हुई
ब्रह्मचारी आज मैं रातमें ही उठकर चला जाऊँगा।
ललिता – क्यों? ब्रह्मचारी – साधकको एक स्थानपर अधिक रहना फकीरी कानूनसे
मना है।
ललिता- मैं भी तपस्या करने चलूँगी आपके साथ।
ब्रह्मचारी और तुम्हारी यह सम्पत्ति ? –
ललिता – साढ़े तीन लाखका मुकुट बनवाकर माधवजीको चढ़ाऊँगी। ललिता-खैरात कर दूँगी।
ब्रह्मचारी- और बाकी रुपये?
ब्रह्मचारी- फिर
ललिता- आपके साथ चित्रकूटके जंगलमें मंगल गाऊँगी !
ब्रह्मचारी — स्त्रियोंसे ब्रह्मचर्य रखा जा सकता है ?
ललिता जरूर ! ब्रह्मचारी इस बार भी मेरी हार हुई। अच्छा एक सप्ताहतक और रुकूँगा ।
मसखरी – उस दिन बृहस्पतिवार था। शहर भर के बाजे और शहरभरकी नर्तकियों ललिताके द्वारपर जमा हुई सोनेके थालमें साढ़े तीन लाखके जवाहरात जाज्वल्यमान कञ्चन-मुकुट रखा था। सफेद साड़ी पहने और फूलों का श्रृंगार किये ललिताने थाल उठाया। गेरुआ वस्त्र पहने ब्रह्मचारीजी साथ चले। यह दल गाजे-बाजेसहित मन्दिरके द्वारपर जा पहुँचा।
साथ में जनताको भीड़ भी काफी थी। पुलिस भी इन्तजाम कर रही थी सब नर्तकियाँ नाच रही थीं। बीचमें ब्रह्मचारीसहित ललिता चली आ रही थी। नाच और गानके साथ फूलोंकी वर्षा हो रही थी। मानो जमीनपर एक नयी घटना उतर आयी थी। इस कारण शहरमें इस खबरका काफी शोर हो गया था। मन्दिरके पुजारी समुदायने कहा कि एक नर्तकीके धनद्वारा बनाया
गया मुकुट हमारे माधवजी पसंद नहीं कर सकते। इस दलील पर सब चुप हो रहे । ब्रह्मचारीने आगे बढ़कर कहा ‘माधवजीके सामने नाच-गान होगा। बादको ललिता अपने हाथोंपर
मुकुट उठायेगी। उस समय अगर श्रीठाकुरजी अपना मस्तक झुका दें
तो पहना देना, नहीं तो नहीं!’ ‘पुजारीपार्टी’ ने इस ‘सत्याग्रह’ को मान लिया और मन्दिरका सदर फाटक खोल दिया।
एक घंटेतक ठाकुरजीके सामने नाच-गान होता रहा। ललिता और ब्रह्मचारी बीचमें खड़े थे। इसके बाद वे दोनों मूर्तिके सामने गये। ज्यों ही ललिताने थालीमेंसे मुकुट उठाकर हाथ बढ़ाया त्यों ही ‘व्यापक ठाकुरजी’ ने वह ‘मूर्ति-मस्तक झुका दिया। ठाकुरजीके लिये यह काम
कठिन नहीं था। सारे पुजारी चुप! पब्लिकने ललिताका जय घोष किया। ठाकुरजीके मस्तकपर एक नर्तकीने मुकुट रख दिया। भक्तिके दरबारमें यह कितनी बड़ी घटना है !
ललिता – अब चलिये ?
ललिता – क्यों ?
युवक हों तो फ़कीरी कानूनसे ।
ललिता-तब ?
ब्रह्मचारी – तुम्हारे साथ मेरी तपस्या न होगी ? ब्रह्मचारी — औरत-मर्दका साथ-साथ तप करना मना है-यदि दोनों
ब्रह्मचारी – इसी शहरमें रहकर तप करो। चार रोटियाँ माँगकर खाया करो और मन्दिरके उत्तरी बुरजमें रात बिताया करो ललिता-अच्छा, यही सही ।
बारह साल बाद वह ब्रह्मचारी उस शहरमें फिर आया। मन्दिरके पास जाकर तलाश किया तो मालूम हुआ कि सालभर हुआ – ललिताने शरीर त्याग दिया। बाबाजी उसकी समाधिपर गये। उस समाधिका दर्शन महमूद रोजाना किया करता था। वह भी आ गया। दोनोंमें जान-पहचान हुई।
महमूद बोला- ‘देखी मेरी मसखरी ?’
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