सोने का अंडा » Sone Ka Anda Hindi Kahani
(एक प्रेरणादायक और नैतिक शिक्षा देने वाली कहानी)
Sone Ka Anda Hindi Kahani: – बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गाँव में हरिदास नाम का एक गरीब किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। हरिदास के पास थोड़ी-सी जमीन थी, जिस पर वह बड़ी मेहनत से खेती करता, लेकिन इतनी कमाई नहीं हो पाती थी कि उसका गुज़ारा आसानी से हो सके। वह और उसकी पत्नी कठिन परिश्रम करते, फिर भी दो वक़्त की रोटी जुटाना उनके लिए किसी संघर्ष से कम नहीं था।
हरिदास का जीवन कष्टों से भरा हुआ था, लेकिन वह ईमानदार और संतोषी व्यक्ति था। अपने हालातों से वह कभी शिकायत नहीं करता। गांव वाले भी उसकी ईमानदारी और मेहनत की तारीफ करते थे।
एक विचित्र उपहार
एक दिन सुबह-सुबह जब हरिदास अपने खेतों की ओर जा रहा था, तभी उसे रास्ते में एक घायल हंस पड़ा मिला। हंस सफेद, चमकदार और कुछ खास सा दिख रहा था। हरिदास ने सोचा कि शायद किसी शिकारी का तीर इसे लग गया होगा। उसका दिल दया से भर गया और उसने बिना देर किए उस हंस को अपने घर ले जाकर उसकी देखभाल शुरू कर दी।
हरिदास और उसकी पत्नी ने हंस की खूब सेवा की। कुछ ही दिनों में हंस पूरी तरह से ठीक हो गया। पर जब हरिदास उसे छोड़ने की बात करने लगा, तो हंस अचानक बोला, “हरिदास, तुमने मेरी जान बचाई है। मैं कोई साधारण हंस नहीं हूँ। मैं एक दिव्य हंस हूँ। मैं तुम्हारे उपकार का बदला चुकाना चाहता हूँ।”
हरिदास और उसकी पत्नी हैरान रह गए कि एक पक्षी बोल कैसे सकता है। लेकिन हंस मुस्कराया और बोला, “चिंता मत करो। मैं रोज़ तुम्हारे लिए एक सोने का अंडा दूँगा। इससे तुम्हारी गरीबी हमेशा के लिए दूर हो जाएगी। लेकिन एक शर्त है—तुम कभी लालच मत करना।”
इतना कहकर हंस ने एक चमचमाता हुआ सोने का अंडा दिया और उड़कर एक कोने में जाकर बैठ गया।
समृद्धि का आरंभ
हरिदास को जैसे सौभाग्य की कुंजी मिल गई थी। वह अंडा लेकर शहर गया और सुनार को दिखाया। सुनार ने पुष्टि की कि वह शुद्ध सोने का अंडा है और उसे अच्छा दाम देकर खरीद लिया।
अब हरिदास का जीवन बदलने लगा। हंस प्रतिदिन एक सोने का अंडा देता, और हरिदास उसे बेचकर अच्छी कमाई करता। उसने अपने घर की मरम्मत करवाई, नये कपड़े खरीदे, और गांव में जरूरतमंदों की मदद भी करने लगा।
धीरे-धीरे हरिदास का नाम गाँव में अमीर और उदार व्यक्ति के रूप में जाना जाने लगा। लेकिन उसके इस बदलाव को देखकर कुछ लोग जलने भी लगे, और उसकी पत्नी के मन में भी एक बीज बोया गया—लालच का बीज।
लालच का आरंभ
शुरुआत में हरिदास की पत्नी खुश थी कि अब उनका जीवन खुशहाल हो गया है, लेकिन कुछ महीनों बाद उसने सोचा, “अगर हंस रोज़ एक अंडा देता है, तो उसके पेट में तो और भी अंडे होंगे। क्यों न उसे एक ही बार में निकाल लिया जाए?”
उसने यह विचार हरिदास के सामने रखा, लेकिन हरिदास ने तुरंत मना कर दिया। “हमें जो मिल रहा है, उसमें ही संतोष करना चाहिए। हंस हमारा मित्र है, हम उसके साथ विश्वासघात नहीं कर सकते।”
लेकिन उसकी पत्नी ने बार-बार उसे समझाया, बहकाया और लालच दिखाया। धीरे-धीरे हरिदास भी उसकी बातों में आ गया। वह सोचने लगा, “अगर हम हंस का पेट चीर दें और सारे अंडे एक साथ निकाल लें, तो हम तुरंत बहुत अमीर हो जाएंगे। फिर न हमें इंतज़ार करना पड़ेगा, न रोज़ शहर जाना पड़ेगा।”
भयंकर भूल
अगले ही दिन सुबह हरिदास और उसकी पत्नी ने एक योजना बनाई। जैसे ही हंस ने सोने का अंडा दिया और एक कोने में बैठ गया, हरिदास चुपचाप एक चाकू लेकर उसके पास गया। हंस ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप हरिदास की ओर देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी उदासी थी, जैसे वह जानता हो कि क्या होने वाला है।
हरिदास ने कांपते हाथों से हंस का पेट चीर दिया।
लेकिन जैसे ही उसने पेट खोला, उसके होश उड़ गए। अंदर कुछ नहीं था—न कोई अंडा, न सोना। सिर्फ खून और मांस। हंस मर गया, और उसका चमकता शरीर धीरे-धीरे सामान्य सफेद हंस की तरह हो गया।
हरिदास और उसकी पत्नी के चेहरे पर पछतावा साफ झलक रहा था। उन्होंने लालच में आकर अपनी सबसे बड़ी दौलत खो दी थी।
वापसी गरीबी की
अब न हंस रहा, न सोने के अंडे। हरिदास का धन धीरे-धीरे खत्म होने लगा। उन्होंने जो कुछ कमाया था, वह भी एक साल के भीतर खत्म हो गया। उन्हें फिर से खेतों में मेहनत करनी पड़ी, लेकिन अब उम्र बढ़ चुकी थी और ऊर्जा कम हो गई थी।
गाँव वाले अब उनका मज़ाक उड़ाते। लोग कहते, “जिसके पास भाग्य था, उसने उसे अपने ही हाथों से मिटा दिया।”
हरिदास हर दिन पछताता। जब भी वह अकेला होता, हंस की आंखें याद आतीं—वो आंखें जो शायद कह रही थीं, “तुमने मेरे साथ नहीं, अपने भाग्य के साथ धोखा किया है।”
सीख और शिक्षा
समय बीतता गया, लेकिन हरिदास अब एक समझदार और शांत व्यक्ति बन चुका था। वह बच्चों को, गांव के युवाओं को और हर आने-जाने वाले को एक ही बात सिखाता: “लालच बुरी बला है। जितना मिला है, उसमें संतोष रखना सीखो। नहीं तो जो हाथ में है, वह भी खो जाएगा।”
हरिदास की कहानी गांव में एक कहावत बन गई—“सोने का अंडा देने वाला हंस मत मारो”। इसका मतलब था—कभी लालच में आकर अपना दीर्घकालिक लाभ न खोओ।
