Moral Stories In Hindi For Class 10

Top 5 Best Moral Stories In Hindi For Class 10

हेलो दोस्तों मै हूँ केशव आदर्श और आपका हमारे वेबसाइट मोरल स्टोरीज इन हिंदी (Moral Stories in Hindi) में स्वागत है आज जो मै आपको कहानी सुनाने जा रहा हु | उसका नाम है Class 2 Best Short Moral Stories In Hindi In 2022 यह एक Moral Stories For Kids और Motivational Story In Hindi और Class 2 Best Short Moral Stories In Hindi In 2022 की कहानी है और

कश्मीर की सैर – Top Moral Stories For class 10 – इस कहानी में बहुत ही मजा आने वाला है और आपको बहुत बढ़िया सिख भी मिलेगी | मै आशा करता हु की आपको ये कहानी बहुत अच्छी तथा सिख देगी | इसलिए आप इस कहानी को पूरा पढ़िए और तभी आपको सिख मिलेगी | तो चलिए कहानी शुरू करते है ये कहानियां निम्न है :-

  • शिष्टाचार ( Discipline )
  • नौकर की मूर्खता [ Foolishness of Servant ]
  • डॉ. होमी जहाँगीर भाभा [ Dr. Homi Jahangir Bhabha ]
  • देश का गौरव [ Honour of Nation ]

1. शिष्टाचार ( Discipline )

शेखर एक होशियार लड़का था। परंतु उसमें एक बुराई थी कि वह कहीं भी शैतानी करने लगता था। एक बार वह अपने चाचा जी के साथ शहर गया। वहाँ उसके चाचा जी को अपने मित्र से मिलना था।

चाचा जी के मित्र के घर पहुँचते ही शेखर शैतानी करने लगा। सबसे पहले तो वह सोफे पर जूते पहने ही चढ़ गया। उसने सोफे का कवर उतारकर नीचे फेंक दिया और फिर पास ही रखी मेज पर से कुछ कागज़ उठाकर इधर-उधर फेंक दिए। चाचा जी ने इशारे से उसे रोकने का प्रयास भी किया, पर शेखर अनदेखा करते हुए शैतानी में जुटा रहा।

घर लौटने पर शेखर के चाचा जी ने उसे समझाया, “शेखर, मेरे मित्र के घर तुमने तो मेरी बेइज्जती करा दी !” यह बात सुनकर शेखर उदास हो गया। शेखर का उदास चेहरा देखकर चाचा जी को दया आ गई। वे बोले, “बेटा, मैं तुम्हें डाँटना नहीं चाहता, लेकिन जब तुम कि सी अपरिचित या मेहमान से मिलो, तब शिष्टाचार का ध्यान रखा करो, नहीं तो सारे परिवार की बेइजती हो जाएगी।”

चाचा जी की बातों से शर्मिंदा होकर शेखर ने पूछा, ” चाचा जी शिष्टाचार क्या होता है?”.

चाचा जी ने प्यार से समझाते हुए उसे बताया, “बेटा, दूसरों के साथ किया गया अच्छा व्यवहार ही ‘शिष्टाचार’ कहलाता है।” ” तो मैं अच्छा व्यवहार कैसे करूँ?”

दारी के साथ किया गया अच्छा हाही शेखर ने उत्सुकता से पूछा।

चाचा जी बोले, जी होता है?

“देखो बेटा, जब भी तुम किसी से मिलो, तो उसे ‘नमस्ते’ करना मत भूलो। कल तुमने मेरे मित्र को नमस्ते भी नहीं की और बिना कुछ कहे उसके घर से वापस भी आ , गए।”

शेखर को अब अपनी गलती का अहसास हो रहा था। चाचा जी ने आगे बताया, “बातचीत करते समय भी हमें बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि कोई तुम्हें कुछ दे, तो उसे ‘धन्यवाद’ कहना चाहिए।

कभी भी कोई ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए, जो दूसरों को बुरी लगे। हमेशा अच्छी तरह सोच-विचार कर ही बोलो। बातें करते समय केवल अपनी बात मत कहो, बल्कि दूसरों की भी सुनो। दूसरों से उनकी निजी बातें मत पूछो। दूसरों के दुख में सहानुभूति प्रकट करो। अगर ज्ररा-सी भी गलती हो जाए, तो माफ़ी माँगना मत भूलो।”

Top 5 Best Moral Stories In Hindi For Class 10
Top 5 Best Moral Stories In Hindi For Class 10

” और चाचा जी हमारे यहाँ कोई मेहमान आए तो?” शेखर ने पूछा। “अगर तुम्हारे यहाँ अतिथि आएँ, तो खुशी से मुस्कुराते हुए उनका स्वागत करो; उन्हें उचित स्थान पर बैठाओ और उनका अच्छी तरह सेवा-सत्कार करो।

अतिथि के साथ खाना खाते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखो कि पहले अतिथि को भोजन मिलना चाहिए, बाद में तुम खाना खाओ। अतिथि से पहले भोजन करना अशिष्टता के अंतर्गत आता है।”

“जब भी तुम दूसरे के यहाँ जाओ तब पहले दरवाजे पर लगी घंटी बजाओ और घर के लोगों के द्वारा अंदर बुलाने पर ही प्रवेश करो। वहाँ कोई भी ऐसा कार्य मत करो, जो दूसरों को बुरा लगे। वहाँ का कोई भी सामान कभी मत छेड़ो और यदि कोई सामान देखना भी चाहो, तो घर के मालिक से विनम्रतापूर्वक अनुमति अवश्य लो। अगर तुम किसी से कोई वस्तु लो, तो उसे समय पर लौटाना कभी मत भूलो… समझ गए! “

“हाँ, चाचा जी, ये सारी बातें मैं हमेशा ध्यान में रखूँगा! क्या शिष्टाचार से जुड़ी और

भी बातें हैं?” शेखर ने पूछा। चाचा जी बोले, “हाँ. कुछ और भी जरूरी बातें होती हैं, जिनका हमें ध्यान रखना चाहिए, जैसे- अगर कभी तुम्हें मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर आदि धार्मिक स्थानों पर जाना पड़े, तो वहाँ के नियमों का पालन करना चाहिए। सभी धार्मिक स्थानों के नियमों का पालन कर हम उन धर्मों के प्रति आदर व्यक्त करते हैं।

हमेशा ध्यान रखो कि किसी की धार्मिक भावना को ठेस न पहुँचे। “

“राष्ट्रीय पर्वो के बारे में तुम जानते ही हो इन पर्वों को मनाने के अपने नियम होते हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है! जब भी राष्ट्रगान गाया जाए, सावधान की मुद्रा में खड़ा होना चाहिए। जो बच्चे शिष्टाचार के नियमों का पालन करते हैं, वे ‘शिष्ट’ कहलाते हैं। शिष्ट बच्चों से सभी प्यार करते हैं, क्योंकि वे सभी को अच्छे लगते हैं। “

“जी, चाचा जी, अब मैं इन सभी बातों का ध्यान रखूंगा और एक शिष्ट बच्चा बनकर दिखाऊँगा” शेखर ने बहुत उत्साह से कहा। उसकी ऐसी बातें सुनकर चाचा जी बहुत खुश हुए और उन्होंने उसकी पीठ थपथपाते हुए शाबाशी दी।

बच्चों को शिष्टाचार का अर्थ समझाएँ और बताएँ कि उन्हें शिष्टाचार का पालन क्यों करना चाहिए।

2. नौकर की मूर्खता [ Foolishness of Servant ]

एक बार एक मालिक ने अपने नौकर से कहा. .” बैंगन बहुत अच्छा लगता है। आज हम बैंगन खाएँगे।” मालिक की बात सुनकर नौकर बोला, “हाँ मालिक, अवश्य खाइए। यह तो सारी सब्जियों का राजा है, तभी तो इसके सिर पर मुकुट है! “

मालिक के कहने पर नौकर ने बैंगन बना दिया और मालिक ने जी भरकर खाया।।

शाम को अचानक मालिक के पेट में दर्द होने लगा। उसने नौकर को बुलाकर कहा, “बैंगन बहुत बुरा होता है, जब से खाया है, तब से पेट में दर्द हो रहा है। आज के बाद मैं कभी बैंगन नहीं खाऊँगा।”

नौकर खड़े-खड़े सिर हिलाता रहा और मालिक की बात खत्म होते ही बोला, “बिलकुल मालिक, बैंगन तो होता ही बहुत बुरा है, तभी तो भगवान ने इसका रंग काला बनाया और नाम भी ‘बेगुण’ रख दिया।”

नौकर की बात सुनकर मालिक बहुत हैरान हुआ और बोला, “सुबह तो तुम इसकी बहुत तारीफ़ कर रहे थे, अब क्या हो गया? सब्जियों का यह राजा ‘बेगुण’ कैसे बन गया?”
नौकर मुसकराते हुए बोला, “मालिक, मैं आपका नौकर हूँ, बैंगन का नहीं। आप जैसा चाहेंगे, मैं वैसा ही तो बोलूँगा, आपकी हाँ में हाँ मिलाना ही तो मेरा काम है!”

Top 5 Best Moral Stories In Hindi For Class 10
Top 5 Best Moral Stories In Hindi For Class 10

मालिक का यह नौकर खाना तो बहुत अच्छा बनाता था, परंतु था एकदम मूर्ख! एक दिन मालिक ने नौकर से मनपसंद खाना बनाने को कहा। नौकर ने स्वादिष्ट व्यंजन तैयार कर दिए और भोजन करने के लिए अपने मालिक को बुलाया।

मालिक तैयार हो रहा था, इसलिए उसने नौकर को खाना परोसने के लिए कहा। जब मालिक खाना खाने के लिए बैठा, तो उसने देखा कि नौकर ने पानी नहीं रखा है। यह देखकर मालिक बोला, “अरे! तुमने पानी नहीं रखा?” नौकर को थका-सा देखकर मालिक बोला, “तुम यहीं बैठो, मैं ले आता हूँ। तुम बस खाने को देखते रहना!”

जब मालिक पानी लेकर आया, तो उसने देखा कि थाली में एक कुत्ता मुँह मार रहा है और पास ही बैठा नौकर टकटकी बाँधे खाने की ओर देख रहा है। यह देख मालिक चिल्लाते हुए बोला, “मूर्ख! देखते नहीं, कुत्ता खाना खा रहा है और तुम बैठे-बैठे देख रहे हो?”

नौकर डर गया और कँपकँपाती आवाज में बोला, “मालिक, आपने तो केवल खाने को देखने के लिए कहा था, कुत्ते को भगाने के लिए थोड़े ही कहा था; आप कुत्ते को भगाने के लिए कहते, तो मैं उसे जरूर भगा देता! “

नौकर का ऐसा जवाब सुनकर मालिक ने माथा पीट लिया और झल्लाते हुए घर से बाहर चला गया।

3. डॉ. होमी जहाँगीर भाभा [ Dr. Homi Jahangir Bhabha ]

भारत विलक्षण प्रतिभाओं की जन्मस्थली रहा है। यहाँ विभिन्न कालों में अपने क्षेत्र में अद्भुत कार्य करने वाली विभूतियों का जन्म हुआ है। ऐसी ही विभूतियों में से एक थे- डॉ० होमी जहाँगीर भाभा । उनको भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक के रूप में जाना जाता है।

30 अक्तूबर, 1909 ई० को मुम्बई के एक संपन्न पारसी परिवार में उनका जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुम्बई के कैथेड्रल ग्रामर स्कूल में प्राप्त की। 15 वर्ष की उम्र में सीनियर कैंब्रिज परीक्षा पास कर उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया।

उसके बाद उन्होंने रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से बी०एससी० की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।

कैंब्रिज में भाभा की रुचि सैद्धांतिक भौतिकी में बढ़ने लगी। इस बात की जानकारी उन्होंने अपने पिता जी को दी। पिता जी ने पुत्र की भावनाओं को समझते हुए उसकी आर्थिक मदद जारी रखी। सन् 1930 में उन्होंने मैकेनिकल साइंस में प्रथम श्रेणी में एम०एससी० की उपाधि प्राप्त की।

Top 5 Best Moral Stories In Hindi For Class 10
Top 5 Best Moral Stories In Hindi For Class 10

आर०एच० फाउलर के निर्देशन में सैद्धांतिक भौतिकी में डॉक्टरेट करते समय उन्होंने कैवेंडिस लेबोरेटरी में भी काम किया। उस लेबोरेटरी में उनका संपर्क दुनिया के कई नामी वैज्ञानिकों से हुआ।

उस दौरान उन्हें कई छात्रवृत्तियाँ भी प्राप्त हुई। जनवरी 1933 में भाभा ने कॉस्मिक किरणों पर अपना प्रथम वैज्ञानिक शोध-पत्र प्रकाशित किया। उस पत्र के कारण उन्हें 1934 ई० में आइजक न्यूटन छात्रवृत्ति प्रदान की गई।

उससे तीन वर्षों तक अध्ययन में मदद मिली। सन् 1935 में ‘इलेक्ट्रॉन-पोजीट्रॉन स्कैटरिंग पर उन्होंने अपना दूसरा शोध-पत्र प्रकाशित किया। इस क्षेत्र में भाभा के अतुलनीय योगदान के कारण आगे चलकर इसे ‘भाभा स्कैटरिंग’ के नाम से जाना जाने लगा। उसके बाद भी उन्होंने अपने कई शोध-पत्र प्रकाशित किए।

सन् 1937 में उनको वरिष्ठ छात्रवृत्ति मिली। इससे कैंब्रिज में अपना शोधकार्य जारी रखने में उनको मदद मिलती, मगर 1939 ई० में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया, जिसके परिणामस्वरूप उनको भारत आना पड़ा।

उन्होंने बंगलौर में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध भौतिकीविद सी०वी० रमण के मार्गदर्शन में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के भौतिकी विभाग में रोडर के पद पर कार्य किया।

उसी समय सर दोराब टाटा ट्रस्ट की ओर से उनको एक स्पेशल रिसर्च ग्रांट मिला। इसी से उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट में कॉस्मिक रे रिसर्च यूनिट की स्थापना की और प्वॉइंट पार्टिकल की गति के सिद्धांत पर कार्य प्रारंभ किया।

उस समय भारत में एक भी ऐसा इंस्टीट्यूट नहीं था, जहाँ न्यूक्लीयर फिजिक्स, कॉस्मिक रेज, हाइ इनर्जी फिजिक्स तथा अन्य उन्नत विषयों में मौलिक कार्यों के लिए अनिवार्य सुविधाएँ उपलब्ध हों। इसी कमी ने भाभा को मार्च 1944 में सर दोराब जे० टाटा ट्रस्ट के पास फंडामेंटल फिजिक्स में शोध कार्यों के लिए विभिन्न विभागों की स्थापना के लिए प्रस्ताव भेजने के लिए बाध्य किया।

अप्रैल 1944 में इस ट्रस्ट के संस्थापकों ने भाभा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया तथा उन्हें ऐसा इंस्टीट्यूट स्थापित करने में आर्थिक मदद दी। मुम्बई का नाम इस प्रस्तावित इंस्टीट्यूट के लिए चुना गया। उस काम में मुम्बई सरकार ने भी संयुक्त संस्थापक की भूमिका निभाई।

सन् 1945 में ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ नाम से इस इंस्टीट्यूट की स्थापना हुई तथा 1948 ई० में परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन किया गया, जिसके प्रथम अध्यक्ष भाभा बनाए गए। आगे चलकर भाभा को लगा कि लंबे समय तक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए तकनीक विकसित करना इस इंस्टीट्यूट के द्वारा संभव नहीं है।

इसलिए उन्होंने इस उद्देश्य की पूर्ति से संबंधित एक अलग प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए मुम्बई सरकार को प्रस्ताव भेजा। मुम्बई सरकार ने इस प्रयोगशाला के लिए ट्रॉम्बे में 1200 एकड़ भूमि अधिग्रहित की। आगे चलकर 1954 ई० में एटॉमिक एनर्जी एस्टेबलिस्मेंट ट्रॉम्बे (ए०ई०ई०टी०) कार्य करना शुरू किया। उसी साल परमाणु ऊर्जा विभाग की भी स्थापना की गई।

सन् 1950 में भाभा ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा फोरम में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तथा 1955 में स्वीट्जरलैंड के जेनेवा में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त

राष्ट्र संघ कॉन्फ्रेंस को भी अध्यक्षता की। 24 जनवरी, 1966 ई० को एक विमान हादसे में माउंट ब्लैक (फ्रांस) में उनका निधन हो गया। उस समय वे ऑस्ट्रिया के वियना में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक में भाग लेने जा रहे थे।

उनके निधन के बाद ट्रॉम्बे के परमाणु ऊर्जा केंद्र का नाम भाभा के सम्मान में ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र’ कर दिया गया। डॉ० होमी जहाँगीर भाभा एक कुशल वैज्ञानिक तथा प्रशासक तो थे ही उनकी रुचि चित्रकला तथा संगीत में भी थी। वे ऐसे वैज्ञानिक थे, जो कभी-कभी ही पैदा होते हैं। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स, स्पेस साइंस, रेडियो एस्ट्रोनॉमी तथा माइक्रोबायोलॉजी में रिसर्च को भी बढ़ावा दिया।

4. पेड़ की कहानी [ Story of a Tree ]

मार्च का महीना था। एक सुबह, रवि अपने घर के सामनेवाले बाग में टहलने के लिए गया। उस दिन मौसम बहुत सुहावना था। हल्की हल्की हवा चलने से पेड़-पौधे झूम रहे थे। (ऐसा सुंदर दृश्य देखकर रवि सहसा ही बोल पड़ा?” वाह! पेड़ हैं धरती की शान इनसे जीवन और जहान!”

रवि की बातें आसपास के पेड़ सुन रहे थे। एक पेड़ बोला, “तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद कि तुमने हमारी उपयोगिता समझी। यहाँ बहुत से बच्चे रोज घूमने और खेलने आते हैं, परंतु आज तक किसी ने ऐसी बात नहीं कही। तुम अच्छे बच्चे लगते हो। अगर तुम्हें जल्दी न हो, तो क्या तुम एक कहानी सुनोगे?”

कहानी का नाम सुनते ही रवि बहुत खुश हुआ। वह बोला, “हाँ-हाँ, आप कहानी सुना सकते हैं, लेकिन यह कहानी किसकी है?” तब पेड़ ने कहा, “मैं तुम्हें पेड़ों की कहानी सुनाना चाहता क्या तुम हमारी कहानी सुनोगे?”

सहमति पाकर पेड़ ने कहानी सुनानी शुरू कर दी आज हम तुम्हें सुंदर दिख रहे हैं। तुम हमारी सुंदरता पर मुग्ध हो रहे हो। जानते हो, हमें ऐसा रूप प्राप्त करने में बहुत समय लगा है। प्रारंभ में तो हम केवल छोटे-से बीज थे |

फिर इस बाग के माली ने हमें मिट्टी में गाड़ दिया। वहाँ अंधकार में पड़े-पड़े हम ब गए थे, फिर एक दिन उसने हमारे ऊपर की मिट्टी पर पानी डाल दिया। पानी पाकर हमारी नींद टूट गई और प्यास भी बुझ गई। पानी का स्पर्श पाकर हम कुछ शीतल हुए और छोटे-छोटे अंकुरों के रूप में बाहर झाँकने लगे।

जब हम भूमि के अंदर थे, तब बाहर के दृश्यों को देखने की हमारी बहुत इच्छा थी। अब वह इच्छा पूरी होने लगी थी। धीरे-धीरे हम अंकुरों से पौधे बने। धूप, वर्षा, सर्दी झेलते हुए हमारे तन बढ़ते रहे और आज हम विशालकाय पेड़ बन चुके हैं।

हम सभी अपनी छाया से तुम्हें हमेशा सुख प्रदान करते रहते हैं। हम तुम्हारे द्वारा छोड़ी गई अशुद्ध वायु को ग्रहण कर तुम्हें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। हम इतना महत्वपूर्ण काम करते हैं, लेकिन लोग पैसों के लालच में हमें कटवा देते हैं। वे यह नहीं जानते कि ऐसा करके कुछ रुपए तो जरूर कमाए जा सकते हैं, लेकिन स्वास्थ्य की जो हानि होगी, उसकी भरपाई संसार के सारे धन से भी नहीं हो पाएगी!

Top 5 Best Moral Stories In Hindi For Class 10
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लोगों की सेवा करना हमारा परम उद्देश्य है। कभी-कभी तो लोगों की सेवा करने में हम अपने तन को भी कटाने के लिए तैयार हो जाते हैं। यहाँ तक कि हमारी मृत्यु के बाद भी हमारे शरीर तुम सबके काम आते हैं।

हम सब तुमसे प्रार्थना करते हैं कि तुम अपने आसपास रहनेवाले लोगों और अपने मित्रों को समझाओ कि हमारी संख्या कभी कम न होने दें, क्योंकि अगर हम ही नहीं रहेंगे, तो इस संसार में कुछ भी नहीं रहेगा…. लोग शुद्ध भोजन, जल और वायु के लिए भी तरस जाएँगे! इन सभी समस्याओं का समाधान यही है कि अधिक-से-अधिक पेड़ लगाओ, उनकी देखभाल करो और हर प्रकार का लाभ उठाओ!

इतना कहकर पेड़ चुप हो गया। रवि ने प्रतिज्ञा की, ‘मैं हर देश एक पौधा लगाऊँग और नियमपूर्वक सबकी देखभाल करूँगा!’

प्यारे बच्चो! अगर तुम भी रवि की तरह शुद्ध वातावरण में रहना चाहते हो, तो जब भी तुम्हें समय मिले, अपने पास के किसी बाग में जाओ और पौधे लगाओ। पौधे लगाने व उनकी देखभाल करने में बाग का माली तुम्हारी सहायता जरूर करेगा।

बच्चों को पौधे लगाने के लिए प्रेरित करें साथ-साथ उन्हें उनके घरों के आसपास स्थित उन सरकारी केंद्रों के नाम व पते भी बताएँ जहाँ पौधे मुफ्त उपलब्ध कराए जाते हों।

5. देश का गौरव [ Honour of Nation ]

एक बार अपने देश के महान संत स्वामी रामतीर्थ जी जापान गए। एक दिन ये रेल से यात्रा करते समय रास्ते में पड़ रहे प्रत्येक स्टेशन पर फलवाले की खोज कर रहे थे। उन दिनों फल ही उनका भोजन था, लेकिन उस दिन उन्हें कहीं भी फल खाने को नहीं मिले थे। एक नए स्टेशन पर उतरकर वे अपने साथी से बोले, “शायद जापान में फलों की कमी है।”

जिस समय रामतीर्थ जी यह बात कह रहे थे, उस समय एक जापानी युवक प्लेटफॉर्म पर खड़ा था। जैसे ही उसने ये शब्द सुने, वह दौड़कर कहीं गया और कुछ ही मिनटों में ताजे फलों की एक टोकरी ले आया। टोकरी लेकर वह रामतीर्थ जी के पास गया और बहुत आदर के साथ बोला, “लीजिए, आपको फलों की जरूरत थी!”

युवक को देखकर रामतीर्थ जी ने सोचा कि वह कोई फलवाला है और उन्हें बेचने के लिए मेरे पास आया है। उन्होंने उस युवक से उन फलों के दाम पूछे. पर उसने दाम नहीं बताए। रामतीर्थ जी के बार-बार पूछने पर वह बोला, “अगर आप इनके दाम देना ही चाहते हैं, तो कृपया इतना करें कि अपने देश में किसी से यह न कहें कि जापान में फलों की कमी है। इन फलों के उचित दाम यही होंगे।”

उस युवक का उत्तर सुनकर स्वामी जी बहुत खुश हुए, क्योंकि उसने अपने कार्य से अपने देश का गौरव बढ़ा दिया था।

आइए, अब एक अन्य घटना के बारे में पढ़ें। किसी देश का युवक जापान में पढ़ने के लिए गया। उसने वहाँ के एक सरकारी पुस्तकालय की सदस्यता ली। एक दिन वह पुस्तकालय से एक पुस्तक लाया और उसमें से एक दुर्लभ चित्र निकाल लिया। पुस्तक लौटाते समय जब पुस्तकालय के अधिकारी ने पुस्तक की जाँच की तो उसमें कमी पाई गई। अधिकारी ने दुर्लभ चित्र युवक के कमरे से बरामद कर लिया, फलतः युवक को जापान से निकाल दिया गया।

इस घटना के बाद उस पुस्तकालय के बाहर एक बोर्ड लगा दिया गया कि उस देश का (जिसका वह युवक था) कोई भी निवासी इस पुस्तकालय में प्रवेश नहीं कर सकता।

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इस प्रकार, हमने देखा कि पहली घटना में युवक ने अपने देश का नाम ऊँचा कर दिया, लेकिन दूसरी घटना में युवक ने न केवल अपना, बल्कि अपने देश का भी अपमान कराया। इन दोनों घटनाओं से केवल यह स्पष्ट होता है कि

प्रत्येक नागरिक अपने देश के साथ बँधा हुआ है। अपने कार्यों से वह अपने देश का नाम ऊँचा भी कर सकता है और उसे अपमानित भी। बच्चो ! हमें कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे अपने देश के मान-सम्मान व प्रतिष्ठा को हानि पहुँचे।

बच्चों को इस पाठ का मूल उद्देश्य समझाएँ: साथ-साथ यह भी बताएँ कि किन कार्यों से अपने देश का मान-सम्मान बढ़ सकता है।

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