1. सच्चा उपासक
Top Moral Stories In Hindi for Class 10 – एक बार नारद मुनि के मन में यह विचार आया कि वे विष्णु जी के सबसे बड़े उपासक हैं। उनके बराबर और कोई दूसरा नही हैं। विष्णु जी के मुँह से भी वे यही सुनना चाहते थे। यही उन्होंने एक दिन भगवान विष्णु से पूछा- “भगवन् सच्चा उपासक कौन है?”
विष्णु जी ने नारद जी की आशा के विपरीत उत्तर दिया “धरती का एक किसान।” यह सुनकर नारद चौंक गए। उन्होंने -” कैसे भगवन्?” पूछा-‘
विष्णु जी ने कहा – ” नारद! इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा । “
नारद ने विष्णु का काम सहर्ष स्वीकार कर लिया। ईश्वर का काम, भक्त न करें ऐसा कैसे हो सकता था? विष्णु जी ने नारद को एक तेल से भरी हुई कटोरी दी। काम था कि तेल से भरी कटोरी लेकर नारद पूरे भू-मंडल की परिक्रमा कर आएँ। पर साथ में यह भी शर्त थी कि कटोरी का एक बूँद भी तेल धरती पर न गिरे।
नारद तेल से भरी कटोरी लेकर सावधानी से चल रहे थे। कटोरी से एक बूंद तेल न गिरे, इस बात का उन्हें पूरा ध्यान था। इस तरह परिक्रमा करते हुए भू-मंडल की परिक्रमा पूरी हुई। वे अत्यंत प्रसन्न थे। प्रभु के दिए काम में उन्हें सफलता मिली थी। अतः वे प्रसन्नतापूर्वक विष्णु जी के पास पहुंचे और बोले. “अब बताइए प्रभुजी धरती का किसान आपका सच्चा उपासक कैसे हो सकता है?”

विष्णु जी ने मुस्कराकर कहा-“नारद तेल से भरी कटोरी को लेकर भू-मंडल की परिक्रमा करते समय तुमने कितनी बार मेरा नाम लिया था? नारद ने कहा- “एक बार भी नहीं, प्रभु जी !” विष्णु जी- “क्यों?” नारद “इसलिए कि प्रभु मैं आपके दिए गए काम को कर रहा था। उस काम को करते समय मेरा पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित था।”
विष्णु जी ने कहा- “नारद किसान का काम भी मेरा दिया हुआ है। काम तो वह भी उस काम को पूरी लगन से करता है। पर कम-से-कम एक बार सुबह और शाम मेरा नाम अवश्य लेता है। “
नारद को प्रभु की बात समझ में आ गई। उन्होंने कहा “मैं समझ गया प्रभु! अपने काम को पूरी निष्ठा से करते हुए आपका नाम लेने वाला आपका सच्चा उपासक है।”
2. हृदय परिवर्तन
प्रस्तुत पाठ में बताया गया है कि महात्मा बुद्ध एक अंगुलिमाल डाकू का हृदय परिवर्तन कर देते हैं, यह किस प्रकार होता है? आइए, इसके बारे में जानने का प्रयत्न करें।
प्राचीन काल की बात है कि बने जंगल में एक भयानक डाकू रहता था। लोग उसे अंगुलिमाल के नाम से जानते थे। वह डाकू बड़ा क्रूर था। वह अकारण लोगों की हत्या करके उनकी उँगलियाँ काट लेता था और उन उंगुलियों की माला बनाकर यह अपने गले में पहनता था।
इससे लोग उसे अंगुलिमाल कहने लगे। उसने एक हजार लोगों को मारने की प्रतिज्ञा की थी। गिनती करने के लिए यह प्रत्येक व्यक्ति की उँगली काटकर माला में पिरो लेता था। चारों ओर उसका आतंक था। लोग उसके नाम से ही भय खाते थे। कोई भी उस जंगल से न गुजरता था।
एक दिन महात्मा बुद्ध को उस डाकू के आंतक की जानकारी मिली। लोगों में भय व्याप्त देख उन्होंने अंगुलिमाल से भेंट करने की सोची। वे जंगल की ओर चल दिए। मार्ग में मिलने वाले लोगों ने उन्हें बहुत मना किया और समझा कि डाकू उन्हें मार डालेगा। परंतु थे मुस्कुराते हुए सरल भाव से चलते रहे। उन्होंने लोगों से कहा कि उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाएगा। वे व्यर्थ ही चिंतित हो।

किसी कार्य को करने के लिए इ निश्चय के साथ शपथ लेना ‘प्रतिज्ञा’ कहलाता है। 17 घने सुनसान जंगल से होकर महात्मा बुद्ध चले जा रहे थे। थोड़ी दूर जाने पर एक भयानक दैत्याकृति को उन्होंने झाड़ियों से निकलते हुए देखा। काले रंग और उँचे कद का वह बलिष्ठ पुरुष किसी दैत्य के समान लगता था। उसकी लाल-लाल आंखो से क्रोध टपक रहा था। उसके चेहरे पर बड़ी-बड़ी भूं उसे और भी डरावना बना रही थी।
“कौन है? ठहर जाओ! तुम्हे पता नहीं, यहाँ मेरे भय के कारण कोई नहीं आता? क्या तुम्हें पता नहीं मैं लोगों को मार डालता हूँ।” डाकू गुस्से से बोला। महात्मा बुद्ध मुस्कुराए और बोले- “मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है। मैं तुमसे एक प्रश्न का उत्तर चाहता हूँ. बसा” कोई मुस्कुराकर उससे प्रश्न करे, यह डाकू के लिए एक नई बात थी।
“भाई, सामने के वृक्ष से भार पत्तियाँ तोड़ लाओ।” अंगुलिमाल चुपचाप पनियाँ तोड़ लाया।
बुद्ध ने कहा-” अब एक काम और करो, यहाँ से तुम इन पक्षियों को तोड़ कर लाए हो, वही लगा आओ।”
अंगुलिमाल बोला- “ऐसा कैसे हो सकता है ?”
बुद्ध ने कहा- ” तुम जानते हो कि जो तोड़ लिया गया हो, वह जुड़ता नहीं। फिर तुम तोड़ने का काम क्यों करते हो? लोगों की हत्या क्यों करते हो? उनकी उँगलियों क्यों काटते हो?”
अंगुलिमाल की समझ में यह बात आ गई। उसका हृदय परिवर्तित हो गया। वह महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा।
3. रक्षाबंधन का त्योहार
प्रस्तुत पाठ में बताया कि हमारे पर्व मन की प्र को लेकर आते हैं। ऐसा स्पोहार रक्षाबंधन है, 5 बारे में बच्चों को कराया गया है।
आज रक्षाबंधन है, कीर्ति अपने भाई पारस के लिए एक सुंदर राखी लाई है। वह नहा नए कपड़े पहनकर अपने भाई के आने की प्रतीक्षा कर रही है।
राखी कीर्ति ने राखी की थाली सजाई है। उसमें घी का दीपक धागे का एक सूत्र, जिसको एक कटोरी मे रखा है और उसके साथ मिठाई रखी है। जलाया है। तिलक के लिए केसर घोलकर, उसमें चावल डालकर कृष्ण की कलाई पर राखी ब इसलिए कृष्ण ने उसकी लाज पारस भी नए कपड़े पहनकर आता है।
वह अपने सिर पर रूमाल रखता है। अब कीरि तिलक लगाती है, उसकी कलाई पर राखी बांधती है और फिर वह उसको मिठाई खिलाती है।। अपनी जेब से एक सौ रुपये का नोट निकालकर कीर्ति को देता है।

तभी कमरे में माँ आ जाती है। पारस माँ से पूछ “माँ, रक्षाबंधन का त्योहार क्यों मनाया जाता | माँ, कीर्ति और पारस को बताती है
रक्षाबंधन के त्योहार का भाई बहिन के लिए बहुत महत्त्व है। रक्षाबंधन भाई बहिन के प् बंधन है। रक्षाबंधन के दिन हर बहिन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और उसके जीवन की कामना करती है। भाई अपनी बहिन को कुछ भेंट देता है और आजीवन उसकी रक्षा का वचन देता है।
तब कीर्ति अपने भाई पारस के सुखी होने की कामना करती है और पारस भी अपनी प्यार बहिन को वचन देता है कि वह आजीवन उसकी रक्षा करेगा।
4. बहादुर बालक (Brave Boy)
प्रस्तुत पाठ में कुलदीप नामक बालक की बहादुरी के विषय में विभिन्न घटनाओं द्वारा बताया गया है।
बंगाल में हुगली नदी के तट पर कृष्ण नगर नाम का एक शहर है। पहले यह शहर एक छोटा सा कस्बा था। कृष्ण नगर में एक विद्यालय था, जिसमें आस-पास के गाँवों के बच्चे आकर पढ़ते थे। इसी विद्यालय में दसवीं कक्षा में एक बच्चा केया नामक गाँव से पढ़ने आता था। उसका नाम कुलदीप था।
बालक कुलदीप न केवल पढ़ने-लिखने में चतुर था, बल्कि खेलकूद और अन्य कार्यों को करने का भी शौकीन था। वह विद्यालय के ही छात्रावास में रहता था। एक दिन कुलदीप हुगली नदी के तट पर संध्या को भ्रमण के लिए गया। वहाँ एक वृद्धा घास का गट्टर लिए खड़ी थी। उसका गट्टर काफ़ी भारी था। वह उसे उठा नहीं पा रही थी।
उसने वहाँ से गुजरने वाले अनके लोगों से गट्ठर उठाने में सहायता करने के लिए कहा, पर किसी ने भी उसकी बात नहीं सुनी।।
बालक कुलदीप वृद्धा के पास पहुँचा और उसने वृद्धा से पूछा ” क्या बात है माँ?” वृद्धा ने कुलदीप से गट्ठर उठाने के लिए कहा। कुलदीप ने तत्काल घास के गट्टर को उठाया, पर वह बहुत भारी था। कुलदीप ने यह सोचकर कि वृद्ध माँ यह घास का गट्ठर न उठा सकेगी, उसने उसे स्वयं सिर पर ही रख लिया।
“अरे अरे यह क्या कर रहे हो, बेटा!” वृद्धा ने कहा “रहने दो माँ, यह गट्ठर बहुत भारी है। इसे उठाने में तुम्हें कष्ट होगा। मैं ही इसे तुम्हारे घर पहुँचा दूंगा।”
यह कहकर कुलदीप वृद्धा के आगे-आगे चल पड़ा। वृद्धा के लाख कहने पर भी कुलदीप ने गर वृद्धा को नहीं दिया और उसके घर पहुँचा दिया। वृद्धा ने कुलदीप को बहुत-बहुत आशीर्वाद दिया।
रविवार का दिन था। दोपहर का समय था। कुलदीप अपने छात्रावास बैठकर पढ़ रहा था। उसने खिड़की से बाहर झांककर देखा कि एक अंग्रेज उसका पानी पी लिया था और पैसे मांगने पर उसे पीट रहा था। ने किसी नारियल वाले से तीन नारियल लेकर भारत दुस्तान में रहने या याला प्रत्येक नागरिक ‘हिंदुस्तानी’ कहलाता है।
हिंदुस्तानी बालक कुलदीप से यह अन्याय नहीं देखा गया। वह उठा और यहाँ आकर उसने अंग्रेज से नारियल वाले को पैसे देने के लिए कहा। अंग्रेज भला उसकी बातें क्यों सुनता ?
उस समय तो उनका राज था। एक हिंदुस्तानी लड़का उससे इस तरह की बात कहे यह उसे कैसे बर्दाश होता? . उसने कुलदीप पर घूंसे से वार कर दिया। फिर क्या था? कुलदीप ने उस अंग्रेज को नीचे गिराकर उसकी डंडे से जमकर पिटाई की। कुलदीप ने नारियल वाले को पैसे दिलवाकर ही अंग्रेज को एक दिन वन में घूमते-घूमते कुलदीप का एक खूंखार बाघ से सामना हो गया।
कुलदीप ने उस बाघ को मार डाला। उस समय कुलदीप की आयु लगभग 16 वर्ष की थी। आगे चलकर यही बालक एक महान क्रांतिकारी बना। इस देशभक्त ने भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति भी दी। आज भी कुलदीप की गाथाओं की चर्चा प्रत्येक बंगालियों की जुबान पर है।
5. चेतन और तौलिया (Chetan and Towel)
प्रस्तुत पाठ के माध्यम से बच्चों को स्वच्छता के प्रति सचेत किया गया है।
जाड़ों की छुट्टियाँ चल रही थी। चेतन अपनी नानी के घर आया हुआ था। चेतन नानी के पास आकर कभी अपने पैरों को तो कभी शरीर को खुजलाने लगता था। यह देखकर नानी चेतन से बोली “चेतन, तुमने दो दिन से स्नान नहीं किया। मैंने तुम्हें कई बार समझाया कि रोज नहाना चाहिए। जाओ, पहले नहाकर आओ।” अब बेचारे चेतन को स्नानघर की ओर जाना पड़ा। नानी ने कहा-” पहले अपना तौलिया लाओ, फिर स्नानघर में जाना।”
चेतन ने तौलिया लाकर नानी के हाथों में पकड़ा दिया। “छिः छिः! यह है तुम्हारा तौलिया। यह तो तुमसे भी ज्यादा गंदा है। अब मुझे तुमसे पहले तुम्हारे तौलिए को नहलाना पड़ेगा।” नानी ने कहा। नानी ने बाल्टी में गर्म पानी लेकर उसमें सर्फ डाला, फिर तेजी से हाथ से हिलाकर खूब झाग उठाए और तौलिया भिगो दिया। चेतन पास में खड़ा नानी को यह सब करते हुए देख रहा था। “अरे! तुम्हारे तो मुँह से भी बदबू आ रही है। जाओ पहले दाँतों
पर ब्रश करो।” नानी में चेतन से कहा। मानी में चेतन के पूरे शरीर पर मालिश की, फिर गुनगुने पानी से साबुन मल-मल कर उसे महलाया। अलमारी में रखे एक स्वच्छ तौलिए से रगड़कर पूरा शरीर पीछा और बोली- “तुम जब तक कपड़े पहनी। तब तक मैं तुम्हारे तौलिए को नहला दूँ।”

नानी ने रगड़-रगड़ कर तौलिया धोया, तो वह भी चेतन की तरह चमक उठा। नानी ने तौलिए को साफ पानी से निचोड़ा और सूखने के लिए धूप में डाल दिया। वीलि हवा में लहराने लगा। नानी बोली- “देखो चेतन, तुम्हारा तौलिया भी नहाकर अपने आपको हल्का महसूस कर रहा है।” यह देखों, खुशी से नाच रहा है। अब देखा तुमने नहाने का कमाल। नहाकर बेजान तौलिए में भी फुर्ती आ गई है। कहो अब तुम्हारा क्या विचार है?”
मालिश – शरीर पर तेल या क्रीम को हथेलियों से रगड़ना ‘मालिश’ कहलाता है।
“मी मालिश और गुनगुने पानी से महाकर तो आज मजा आ गया। शरीर में ऐसी चुस्ती फुर्ती आई है कि उड़ने का मन करता है। काश! मेरे की पंख होते! आज से हम दोनों स्वच्छ रहेंगे।” चेतन ने चहकते हुए कहा । “दोनों कौन?” नानी से पूछा।
“मैं और मेरा तौलिया ” चेतन ने मुस्कराकर कहा |
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