जादुई कुकर | Best Magic Story | Bedtime Stories | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Kahaniyan 2022

Moral Stories in Hindi for Class 9 | Best Short Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi for Class 9

  • ढोल ( The Drum )
  • चींटी की चढ़ाई ( Ant’s climb )
  • अक्ल बड़ी या भैंस ( Brain Over Brawn )
  • रेस्क्यू मिशन ( Rescue Mission )

1. ढोल ( The Drum )

Moral Stories in Hindi – एक थी जादूगरनी चुस्त और चालाक। उसके पास जादू की एक पिटारी थी। उसमें एक से बढ़कर एक जादू भरा था। उसी पिटारी में जादू की जूतियाँ भी थीं जिन्हें पहनकर वह जहाँ चाहे चली जाती थी।

एक दिन जादूगरनी घूम-फिरकर लौटी। काफ़ी थक गई थी। आँखों में नींद भर आई थी। उसने नींद में जूतियों को जैसे ही उछाला, वे पास पड़े कूड़े के ढोल में जा गिरीं। जादूगरनी चादर तानकर सो गई।

जूतियाँ जादू की थीं। कूड़े के ढोल की पेंदी टूटी थी। कुछ न कुछ कमाल तो होना ही था। जूतियाँ उस में से निकल, ढोल के नीचे पहुँच गईं और ऐसे चिपक गईं, जैसे ढोल के पैर लगे हों।

फिर क्या था, जूतियों के चिपकते ही ढोल चलने लगा। जादू का करिश्मा! उस ढोल में सोचने-समझने की शक्ति भी आ गई। वह इस कमरे से उस कमरे में कुछ देर तक इसी तरह चक्कर काटता रहा।

एकाएक ढोल को एक बात सूझी, “एक जगह खड़े-खड़े बरसों बीत गए। पैर लगे ही हैं तो क्यों न इसका फ़ायदा उठाऊँ। ” संयोगवश जादूगरनी दरवाज़ा बंद करना भूल गई थी। ढोल दरवाज़े से निकल, गली में

आ गया। कुत्ते भौंकने लगे, मगर ढोल ने परवाह न की। वह बढ़ता ही गया। चलते-चलते गली के नुक्कड़ पर जा पहुँचा। दो बच्चे स्कूल से लौट रहे थे। उनमें से एक बहुत शरारती था।

ढोल को चलते देख दोनों ताली बजाकर हँसने लगे। शरारती बच्चा बोला, “देख मोनू, यह चाबी वाला ढोल है। किसी ने चाबी भरकर इसे छोड़ दिया है। मैं अभी इसे पकड़ता हूँ।” कहते-कहते बस्ता नीचे रख, वह पीछे भागा।

ढोल सावधान हो गया। बच्चे को अपने पीछे आते देख उसने लंबी छलाँग लगाई। अंदर का कुछ कूड़ा बच्चे के ऊपर आ गिरा। वह जब तक कूड़ा झाड़ता, ढोल उसकी आँखों से ओझल हो गया।

भाग-दौड़ में ढोल एक रिक्शे से जा टकराया। रिक्शेवाले ने बचाव के लिए ज़ोर से ब्रेक मारी, तो रिक्शा उलट गया। उसमें बैठा एक मोटा आदमी ‘धम्म’ से सड़क पर आ गिरा। वह चीखने-चिल्लाने लगा।

Moral Stories in Hindi for Class 9 | Best Short Moral Stories in Hindi
Moral Stories in Hindi for Class 9 | Best Short Moral Stories in Hindi

रिक्शावाला गुस्से में ढोल के पीछे भागा, मगर ढोल हाथ नहीं आया। ढोल को उछलते दौड़ते देख, सभी लोग हैरान थे। कोई उसे भूत समझ रहा था। तो कोई कह रहा था, “यही वह उड़न तश्तरी है, जो सितारों के लोक से आती है। शायद वहाँ के लोग इसमें छिपे हुए हमारे शहर की सैर कर रहे हैं!”

अनोखा दृश्य था। ढोल आँखों के आगे से गुज़र रहा था, मगर उसे पकड़ने की हिम्मत किसी में नहीं थी। तभी किसी ने पुलिस को फ़ोन किया। एक ने फ़ायर ब्रिगेड को भी सूचना दे दी। कुछ ही देर में टनटन करती फ़ायर ब्रिगेड की गाड़ी चौराहे पर आ खड़ी हुई। ढोल चौराहे से कुछ ही दूर था।

Moral Stories in Hindi – उसे पकड़ने के लिए पुलिस के सिपाही राइफ़ल ताने खड़े थे। लगता था वे ढोल से निपटने के लिए कमर कसकर तैयार खड़े हैं।

मगर बात ही पलट गई। हुआ यह कि ढोल आगे बढ़ने के बजाय एकदम पीछे लौटा। सरपट भागने लगा। उसी ओर से एक ताँगा आ रहा था। ढोल को देख घोड़ा बिदक गया। चारों ओर भगदड़ मच गई।

पुलिसवालों की समझ में कुछ नहीं आया। फ़ायर ब्रिगेड वाले घबराहट में इधर-उधर भागते घोड़े को काबू में लाने लगे। इसी बीच ढोल सड़क से लगी एक गली में घुसा। सामने एक चाट-पकौड़ी वाले का ठेला आ रहा था। ढोल को भागता वह भी घबरा गया। ऐसी अद्भुत

चीज़ उसने आज तक न देखी थी। वह आँखें मलने लगा। तब तक ढोल उसी के पास आकर रुक गया। चाट की सुगंध ने उसे था, “अब तक झूठे पत्तों का स्वाद लिया है। आज असली चाट खाकर देखी जाए।” वह उछलने लगा। ढोल की हरकत देख, चाटवाले की चीख निकल गई। वह ‘भूत-भूत’ चिल्लाता हुआ भागा। दूसरे लोग भी भागने लगे।

इधर जादूगरनी की आँख खुली। उसने चारपाई के नीचे जूतियों को टटोला। पर जूतियाँ वहाँ नहीं थीं। वह इधर-उधर ढूँढने लगी। तभी उसे कूड़े के ढोल का ध्यान आया। सामने नज़र पड़ी तो देखा कि कूड़े का ढोल गायब था। जादूगरनी सोच में पड़ गई। उसने ध्यान से दरवाज़े की ओर देखा। ज़मीन पर जूतियों के निशान थे। पल भर में वह सारी बात समझ गई कि जादुई जूतियों ने ही कुछ न कुछ गुल खिलाया है।

उसने जादू की झोली उठाई। उसमें से जादुई शीशा निकाला। होठों से कुछ बुदबुदाई । शीशे पर तीन फूँक मारीं। शीशा जैसे टेलीविज़न की स्क्रीन बन गया। ढोल जहाँ-जहाँ से गुज़र रहा था और जो-जो कर रहा था, सारा कुछ शीशे में दिखाई देने लगा।

ढोल की शैतानी देखकर जादूगरनी को हँसी आ गई। तभी उसे शीशे में पुलिस की गाड़ी दिखाई दी। वह घबराई सोचने लगी, “कहीं ढोल के साथ जादुई जूतियाँ भी पुलिस के कब्जे में न चली जाएँ!’ ” जादूगरनी ढोल को पकड़ने भागी । ढोल के पास पहुँच गई। वहाँ भीड़ इकट्ठी थी।

जादूगरनी ने मंत्र पढ़कर हवा में हाथ हिलाया। तभी जूतियों ने चलना बंद कर दिया। अब ढोल को पकड़ना आसान था। जादूगरनी ढोल पकड़ने में सफल हो गई। सभी लोग चिल्लाए, “ढोल पकड़ा गया। “

वह किसी तरह खींचकर ढोल को घर लाई जादुई जूतियों को उठाकर झोले में रखा। फिर ढोल को कोने पर रख दिया। दूसरे ही दिन जादूगरनी ने एक बढ़ई बुलाया। ढोल के छोटे-छोटे पर बनवाए। इसके बाद अपने अपनी मालकिन की निगाह में अब उसकी भी इज्जत बढ़ गई। अब कूड़े का ढोल कोई मामूली कूड़ेदान नहीं रह गया था!

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2. चींटी की चढ़ाई ( Ant’s climb )

अपने नन्हें-नन्हें पैरों से चींटी ने एक दिन पहाड़ पर चढ़ना शुरु किया। उसका शरीर बहुत छोटा था- एक नन्हें, काले तिल की तरह। मगर इरादे पहाड़ से भी ऊँचे थे। उसे पहाड़ पर चढ़ते सभी ने देखा। खरगोश ने, घोड़े ने, ऊँट ने और हाथी ने भी। सब उसे देखकर खूब हँसे ।

खरगोश ने कहा, “अरी चींटी, क्या मरने का इरादा है?”

घोड़ा हिनहिनाया, “देखो तो इस अदनी-सी चींटी को अपना शरीर देखती नहीं। यदि पैरों के नीचे आ जाए, तो दम निकल जाए। चली है पहाड़ फतह करने!”

ऊँट ने कहा, “भई, है तो अजीब बात! ” हाथी गरदन हिलाकर बोला, “खुद को बहादुर समझ रही है। बड़े-बड़े सपने हैं, और कुछ नहीं। “

चींटी ने सब सुना, पर सुनकर भी सभी सामना करते हुए चींटी दिन-रात मौखिक प्रश्न की बातें अनसुनी कर दीं। वह चुपचाप आगे बढ़ती गई। ‘मुझे क्या जरूरत है हर किसी की भली-बुरी बातों या मजाक का जवाब दूँ? मुझे जो करना है,

वह करके दिखा दूँगी और तब लोगों के मुँह हैरानी से खुले के खुले रह जाएँगे,’ यह सोचकर चींटी मज़बूत कदम रखते हुए आगे बढ़ती गई। कड़ी धूप और आँधी-तूफ़ानों का कि ऊँट, हाथी, घोड़ा, सभी उसे ने देखा? चीनी के दाने की तरह नन्हा-सा दिखाई पड़ रहा था। चलते-चलते आखिर छोटे नज़र आने लगे। खरगोश तो (ग) ऊँचाई पर से खरगोश कैसा दिखाई पड़ रहा था?

” वाकई ये बड़े-बड़े लोग तो यहाँ तक आ भी नहीं सकते। ये सिर्फ़ डींगें हाँकना जानते हैं,” सोचकर चींटी हौले से मुस्कुराई । कुछ पल सुस्ताने के बाद, वह आगे की योजना बनाने लगी।

आधी चढ़ाई पूरी हो चुकी थी। पर आधा पहाड़ चढ़ना अभी लेकिन अब मुश्किलें ज़्यादा थीं। आगे की चढ़ाई में पहाड़ बिल्कुल सीधा और चिकना था।

पैर ठीक से जमते नहीं थे, और उस पर से गिरने का मतलब था — मौत! एक और दिक्कत भोजन की थी, क्योंकि इतनी ऊँचाई पर चावल, गेहूँ या चीनी के बिखरे हुए दाने बहुत कम मिल पाते थे।

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“यहाँ तक आकर वापस लौट गई तो सारी मेहनत बेकार जाएगी!” चींटी ने मन ही मन अपने संकल्प को मज़बूत किया। वह और ज़्यादा मज़बूत कदमों से चढ़ने लगी। उसने पीठ पर पहले से इकट्ठे किए हुए दाने भी उठा रखे थे।

आखिर चींटी की मेहनत और हिम्मत रंग लाई। वह पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ने में सफ़ल हो गई।

लौटकर सभी को उसने अपनी यात्रा के अनुभव सुनाए। पहाड़ के बारे में नई-नई बातें बताईं, “वहाँ हरे-भरे पेड़ थे। वहाँ फूलों की घाटी थी और वहाँ हीरे की तरह जगमगाती शिलाएँ थीं।

” पहाड़ की अजीबोगरीब गुफ़ाओं के बारे में भी बताया। यह सुनकर खरगोश, हाथी, घोड़ा और ऊँट दाँतों तले उँगली दबाकर रह गए।

सबसे ज्यादा शर्मिंदा था मोटा हाथी बोला, “मुझे माफ़ कर दो, चींटी बहन। हमने तुम्हारे इरादों को नहीं समझा। सबने चींटी से माफ़ी माँगी।” चींटी एक क्षण चुपचाप देखती रही, फिर बोली, “आप लोगों का कसूर नहीं। मैं तो

आप सबका आभार मानती हूँ। आपके व्यवहार ने मेरे हौंसले को दोगुना कर दिया वरना कहाँ मैं अदनी-सी चींटी और कहाँ आसमान छूता पहाड़…” और चींटी हँसने लगी बड़ी ही मोहक, मीठी हँसी ।

3. अक्ल बड़ी या भैंस ( Brain Over Brawn )

एक जंगल था। उसमें एक बहुत बड़ा तालाब था। तालाब के किनारे एक पुराना पेड़ था। उस पर एक बंदर रहता था। वह बहुत अक्लमंद था। इसलिए सब लोग उसे अक्लू कहते थे।

दोपहर का समय था। अक्लू पेड़ पर बैठा था। तभी वहाँ भैंस आई। वह तालाब में घुसकर नहाने लगी । बड़ी देर के बाद जब वह तालाब से निकली, तो उसका शरीर मिट्टी और कीचड़ से सना हुआ था। उसे इस तरह देखकर अक्लू बड़ी ज़ोर से खीं खीं करके हँसने लगा।

यह देखकर भैंस तो बिगड़ गई। वह गुस्से से बोली, ” तुम्हें अपने से बड़ों से सलीके से पेश आना चाहिए। इस तरह उनका मज़ाक उड़ाना अच्छी बात नहीं है।” भैंस ने गुस्से से नथुने फुलाए, “नीचे आ, अभी मज़ा चखाती हूँ।”

“अरे! जा अपना काम कर,” अक्लू ने अकड़ कर कहा, “कैसी बड़ी? इतना बड़ा शरीर है, पर अक्ल ज़रा भी नहीं पाई।” इस बार अक्लू और ज़ोर से हँसा और खुशी से इधर-उधर कूदने लगा।

भैंस को अक्लू की बातें बहुत बुरी लगीं। वह लाल-पीली होकर बोली, “तो फिर आओ नीचे! इस बात का फ़ैसला हो ही जाए कि कौन बड़ा है, तुम या मैं?” भैंस और अक्लू की बहस सुनकर जंगल के दूसरे जानवर भी वहाँ आ पहुँचे।

सबने तय किया कि किसी-न-किसी तरह इस झगड़े को निपटाया जाए। शाम हुई। जंगल के सभी जानवर तालाब के किनारे इकट्ठे हुए। सबकी राय से यह तय हुआ कि दोनों में से जो भी उस तालाब को बीच से पहले पार कर जाएगा, उसी को बड़ा माना जाएगा।

इस मुकाबले का फ़ैसला करने के लिए शेर को न्यायाधीश बनाया गया और लोमड़ी को वकील ।

जंगल के सभी जानवर मुकाबला देखने के लिए उत्सुक थे। वे सब तालाब के उस पार जाकर बैठ गए। इधर अक्लू और भैंस रह गए। अक्लू बहुत परेशान था। उसे तैरना नहीं आता था। वह सोचने लगा कि इतना बड़ा तालाब वह कैसे पार करेगा! तभी (क) भैंस कहाँ नहाने लगी?

गीदड़ बोला, “जैसे ही मैं ‘हुआँ-हुआँ’ की आवाज करूंगा, तालाब में तैरना शुरू कर देना।” अब तो, अक्लू की परेशानी और बढ़ गई। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

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गीदड़ ने ‘हुआँ-हुआँ’ की आवाज़ की। भैंस तैयार खड़ी थी। वह तालाब में उतर गई । अब अक्लू ने भी अपनी अक्ल लगाई उसे एक तरकीब सूझी। उसने पानी में एक छलाँग लगाई और तालाब की तरफ झुकी हुई डाल पर जा पहुँचा। भैंस अभी थोड़ी ही दूर तक गई थी। अक्लू वहीं से कूदा और ‘धम्म’ से भैंस को पीठ पर आकर बैठ गया।

भैंस ने उसे गिराने के लिए अपनी पूँछ चलाई, पर अक्लू ने उसकी पूँछ को झपटकर पकड़ लिया।

जंगल के जानवर अक्लू की इस चतुराई को देखकर चकित रह गए। वे ज़ोर-ज़ोर से तालियाँ बजाने लगे। वे सब देखने के लिए उत्सुक थे कि पहले कौन किनारे तक पहुँचता है।

अभी किनारा थोड़ी दूर पर ही था कि अक्लू ने छलाँग लगाई और ‘धम्म’ से किनारे पर पहुँच गया! सारे जानवर अक्लू की अक्लमंदी और जीत पर खुशी से चिल्ला उठे।

4. रेस्क्यू मिशन ( Rescue Mission )

विनायक तेज़ी से स्कूल के गेट में घुसा। पहली घंटी बजने से पहले ही उसे अपनी कक्षा में पहुँच जाना चाहिए न! घर से तो वह ठीक समय पर ही निकला था। उसके रेस्क्यू मिशन ने ज्यादा ही समय ले लिया था। सोचते ही उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ गई। सड़क के किनारे से स्कूल जा रहे विनायक की नज़र उस पिल्ले पर पड़ी।

सड़क पर दोनों ओर से गाड़ियाँ तेज़ी से इधर-उधर आ-जा रही थीं। किस ओर जाऊँ उसे समझ नहीं आ रहा था। बस इसी डर से वह पिल्ला चिल्ला रहा था। उसकी हालत देखकर विनायक का दिल पसीज गया। बेचारा वह पिल्ला!… किसी मोटरगाड़ी, बस या ट्रक के पहिए के नीचे दबकर कहीं अपनी जान न गँवा दे। कोई उसकी तरफ़ ध्यान भी तो नहीं दे रहा था।

बस यही सोचकर विनायक ने आगे बढ़ने की कोशिश की। अनगिनत गाड़ियाँ बड़ी तेज़ी से इधर से उधर और उधर से इधर दौड़ती जा रही थीं। इसलिए वह सड़क के दोनों तरफ़ बारी-बारी से देख रहा था।

उसी समय विनायक ने एक दारोगा जी को अपनी ओर साइकिल पर सवार होकर आते देखा। “अंकल, अंकल! दारोगा अंकल!” चिल्लाते हुए वह उनके सामने दौड़ता हुआ जा खड़ा हुआ।

“अंकल जी!… बेचारा वह पिल्ला… देखिए न वहाँ… सड़क के बीच में….” यह कहते हुए विनायक ने कुत्ते के पिल्ले की तरफ़ इशारा किया। “अरे… रे! यह कहाँ से सड़क पर जा पहुँचा?” कहते हुए दारोगा पिल्ले की ओर करुणा से देखने लगे।

” अंकल क्या इन भागती गाड़ियों को थोड़ी देर के लिए रोक सकेंगे? मैं उसे उठा लाऊँगा। प्लीज़ अंकल….।” विनायक ने उन्हें हिलाते हुए कहा ।

दारोगा ने बड़े प्यार से विनायक की पीठ थपथपाई और जेब से सीटी निकाली। अगले ही क्षण उसे बजाते हुए सड़क के बीचों-बीच जा पहुँचे। विनायक भी उनकी आड़ में चलता चला गया। दारोगा ने जल्दी ही अपने दोनों हाथ कंधे की सीध में फैलाए और गाड़ियों को रुकने का इशारा करने लगे।

आने-जानेवाली सभी गाड़ियाँ अपनी रफ़्तार कम करते हुए आगे-पीछे रुक गईं। रास्ता साफ़ देख विनायक दौड़ते हुए गया और पिल्ले को गोद में उठाकर सड़क के किनारे ले आया। उसके सुरक्षित स्थान पर पहुँचते ही दारोगा अंकल ने अपने हाथ नीचे कर गाड़ियों को चलने की अनुमति दी। अंकल की ओर देखा । विनायक ने दारोगा उसके हाथ में वह थरथर काँप रहा था।

पिल्ला डर के मारे “शाबाश बेटा! इस पिल्ले को सड़क से तो ले आए पर अब इसका क्या करोगे?” दारोगा अंकल ने उससे पूछा। “मैं इसे सड़क के किनारे छोड़कर नहीं जा सकता अंकल, क्योंकि यह फिर से सड़क पर जा सकता है।” किसकी सहायता ली ?

Moral Stories in Hindi for Class 9 | Best Short Moral Stories in Hindi
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दारोगा अंकल ने क्या किया?

“हाँ! तुम ठीक कहते हो। फिर इसका क्या करनेवाले हो?”

“मैं अभी तो स्कूल जा रहा हूँ अंकल । ” “सही है, तब तो स्कूल के पास कहीं छोड़ देना।”

“नहीं, इसे देखते ही स्कूल के कुछ शरारती लड़के इसे तंग करेंगे। यह वैसे ही डरा हुआ है, और भी परेशान हो जाएगा।” विनायक ने तुरन्त जवाब दिया। इस पर दारोगा अंकल थोड़ी देर सोचते रहे।

अरे! याद आया। मैं इसे ले जाकर ‘ब्लूक्रॉस सोसाइटी’ में दे आऊँगा। वे लोग जानवरों की बड़ी अच्छी तरह से देखभाल करते हैं। ” “वाह! यह ठीक रहेगा। मैंने भी इसके बारे में सुना है लोगों की सेवा करनेवाली रेडक्रॉस सोसाइटी की तरह जानवरों की सेवा करनेवाली ‘ब्लुक्रॉस सोसाइटी’, वही है न अंकल ?”

“हाँ! हाँ… वही मैं बहुत हिफ़ालत से इसे वहाँ पहुँचा दूंगा। अब तुम जल्दी जाओ वरना तुम्हें स्कूल के अंदर जाने नहीं दिया जाएगा। और हाँ, हाथ ज़रूर धो लेना।” दारोगा अंकल ने समझाया।

“ठीक हैं अंकल कहते हुए विनायक पिल्ले को सहलाने लगा।” तुम अच्छे लड़के हो तुम ज़रूर अपने माँ-बाप का और स्कूल का नाम रोशन करोगे। तुम्हारे जैसे बच्चों से ही देश का भला होगा।” दारोगा ने उसे शाबाशी देते हुए कहा और आगे बढ़ गए। उनके साथ जाते हुए उस पिल्ले को देखकर विनायक को लगा कि वह बड़ी कृतज्ञता भरी नज़रों से उसकी ओर देख रहा है।

5. यातायात के साधन

चलना मनुष्य का स्वभाव है। वह अपने जीवन में न जाने कितनी यात्राएँ करता है। उसके लिए उसे सवारी की ज़रूरत भी होती है। वह पैदल कितना चल सकता है। दूर जाने के लिए साधन ज़रूरी होते हैं। उन्हें हम यातायात के साधन कहते हैं। शुरु में ज्यादा सवारियाँ नहीं थीं। लोग अधिकतर पैदल चलते थे।

कुछ लोग हाथी, घोड़ा, खच्चर, ऊँट आदि जानवरों की पीठ पर चढ़कर यात्राएँ करते थे। जबकि कुछ लोग घोड़ागाड़ी पर चलते थे। बैलगाड़ी गाँव के लोगों की प्रिय सवारी थी।

लगभग दो सौ वर्ष पहले रेलगाड़ी का आविष्कार हुआ। इसमें भाप के इंजन लगे होते थे। बाद में डीज़ल और बिजली के इंजन आ गए। आज आगे बढ़ते-बढ़ते हम मेट्रो रेल और बुलेट रेल के युग में आ गए हैं। मेट्रो रेल दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों की सबसे प्रमुख सवारी है। तेज़, साफ़-सुथरी और सुविधाजनक।

हमारे देश में बुलेट रेल भी शुरु होने वाली है। इसकी गति लगभग तीन सौ किलोमीटर प्रति घंटे होगी। आने वाले समय में लोग उसको खूब पसंद करेंगे। दुनिया के कुछ दूसरे देशों में बुलेट रेल बहुत पहले से चल रही है।

बिजली से चलने वाली रेलगाड़ियों से प्रदूषण बहुत कम होता है। इनकी गति भी बहुत तेज़ होती है।

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आने-जाने के लिए सड़क यातायात का भी काफ़ी महत्त्व है। आज गाँव-गाँव तक पक्की सड़कें बन चुकी हैं। महानगरों में सड़कों का जाल बिछा हुआ है। फिर भी ट्रैफ़िक जाम। है न अजूबा !

गाँवों और छोटे शहरों से महानगरों तक आने-जाने के लिए लंबे-चौड़े महामार्ग वाहन चलते हैं। बसों, कारों, ट्रकों, मोटर साइकिलों, स्कूटरों और तिपहिया वाहनों से सड़कें भरी होती हैं। आज ज़्यादातर लोग पैदल नहीं चलना चाहते हैं। लोग बसों, कारों, साइकिलों आदि पर चढ़कर यात्रा करते हैं। स्कूल बस बच्चों को घर से ले जाकर घर तक छोड़ आती हैं। अधिकतर लोग किसी न किसी सवारी पर चढ़कर काम पर जाते हैं।

करोड़ों गाड़ियों और वाहनों के चलने से प्रदूषण बहुत फैलता है। इसलिए आजकल बैटरी और गैस से चलने वाले ई-रिक्शा, कार, बस आदि चलाए जा रहे हैं। ये सड़कों पर धुआँ नहीं छोड़ते।

सवारियों की कहानी चली है तो हवाई जहाज़ को कौन भूल सकता है। शुरु में पक्षियों .को देखकर मनुष्य के मन में विचार आया कि वह भी उड़ सकता है।

खूब कोशिशें हुई। जब राइट बंधुओं ने हवाई जहाज़ उड़ाया तो लोग खुशी से नाच उठे। बाद में तेज़ उड़ाने भरने वाले हवाई जहाज़ बने। आज तो आवाज़ की गति से भी अधिक तेज़ी से उड़ने वाले जेट विमान और रॉकेट बनाए जा चुके हैं। हवाई से दूर के स्थानों तक बहुत कम समय में पहुँचा जा सकता है। इसके लिए अनेक शहरों में हवाई अड्डे बनाए गए हैं। रॉकेट की सहायता से वैज्ञानिक अंतरिक्ष की यात्रा करते हैं।

आपने चंद्रयान, मंगलयान आदि के बारे में सुना उन्हें भेजने में भी रॉकेट की मदद ली जाती है।

हवा में उड़ने की तरह नदियों और समुद्र के रास्ते से यात्रा करना भी मनुष्य को बहुत पसंद है। शुरू में छोटी-छोटी नावें बनाई गई। आगे चलकर पानी के बड़े-बड़े जहाज़ बने। पानी के भीतर चलने वाले जहाज़ पनडुब्बी का आविष्कार हुआ।

इस तरह विज्ञान ने हमें यातायात के एक से बढ़कर एक साधन प्रदान किए। हमने यातायात के क्षेत्र में बहुत प्रगति कर ली है।

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