हेलो दोस्तों मै हूँ केशव आदर्श और आपका हमारे वेबसाइट मोरल स्टोरीज इन हिंदी (Moral Stories in Hindi) में स्वागत है आज जो मै आपको कहानी सुनाने जा रहा हु |
उसका नाम है Class 2 Short Moral Stories In Hindi – कक्षा 2 लघु नैतिक कहानियाँ हिंदी में | यह एक Moral Stories For Kids और Motivational Story In Hindi और Best Class 9 Short Moral Stories In Hindi – कक्षा 9 लघु नैतिक कहानियाँ हिंदी में | की कहानी है और
Class 9 Short Moral Stories In Hindi – कक्षा 9 लघु नैतिक कहानियाँ हिंदी में – इस कहानी में बहुत ही मजा आने वाला है और आपको बहुत बढ़िया सिख भी मिलेगी | मै आशा करता हु की आपको ये कहानी बहुत अच्छी तथा सिख देगी | इसलिए आप इस कहानी को पूरा पढ़िए और तभी आपको सिख मिलेगी | तो चलिए कहानी शुरू करते है
आज की कहानी – Class 9 Short Moral Stories In Hindi – कक्षा 9 लघु नैतिक कहानियाँ हिंदी में |

1. नटखट राजीव – ( Naughty Rajeev )
Moral Stories in Hindi for Class 9 – राजीव जयपुर में रहता है। गर्मियों की छुट्टियों में वह अकसर अपने मामा जी के यहाँ जाया करता है।राजीव जयपुर में रहता है। गर्मियों की छुट्टियों में वह अकसर अपने मामा जी के यहाँ जाया करता है। उसके मामा जी आगरा में रहते हैं। इस बार ऐसा हुआ कि घर में मरम्मत का कार्य होने से राजीव की माता जी को उसे आगरा ले जाने का समय न मिला। उसके पिता जी को अपने कार्यालय से अवकाश न मिल सका।
सो उसकी माता जी ने उसके मामा जी को फ़ोन करके आगरा से बुला लिया। उसके मामा जी उसे अपने साथ आगरा ले गए। राजीव के मामा जी का नगर में वस्त्रों का शोरूम है।

सो उन्हें दिनभर फुरसत नहीं रहती। राजीव का ममेरा भाई रचित और वह दिनभर घर पर खेलते रहते।
Moral Stories in Hindi for Class 9 – राजीव ऊधमी बहुत था। एक पल भी वह खाली न बैठता था। कभी कुछ तोड़ता- फोड़ता तो कभी किसी जीव-जंतु को सताता। कभी ऊपर-नीचे भागता, तो कभी दीवारों पर चढ़ता।
अपनी शरारतों से वह न जाने कितने काम बिगाड़ देता था। हर काम में हाथ डालता, स्वयं करने की कोशिश करता। कभी बिल्ली के बच्चे को सताता तो कभी गली में से कोई पिल्ला उठा लाता और उसकी पूँछ खींचता हुआ उसे नचाता फिरता। मामी उसे डाँटती कि किसी प्राणी को सताओगे तो भगवान दंड देगा।
वह दिनभर उसके पीछे भागती फिरती पर वह न मानता था। राजीव की संगति में रहकर रचित भी शरारती होता जा रहा था। एक दिन राजीव के पिता का पत्र आया कि वे आगरा राजीव को लेने आ रहे हैं। – story in hindi for class 9
राजीव जब से आगरा आया था, नगर को पूरी तरह घूम नहीं पाया था। मामा जी ने कार्यक्रम बनाया कि शुक्रवार को सभी ताजमहल और लालकिला देखने चलेंगे; क्योंकि शुक्रवार को टिकट नहीं लगता।
उस दिन शुक्रवार था। मामा जी की छुट्टी थी। वे राजीव और रचित को घुमाने ले गए और कई सुंदर सुंदर स्थान दिखाए। उन्होंने ताजमहल और लालकिला भी देखे।
राजीव की शरारतें कम होने का नाम न ले रही थीं। अब वह अपने घर चला जाएगा, यह सोचकर उसकी मामी उसे कुछ नहीं कहती थीं।
Moral Stories in Hindi for Class 9 – अगले दिन शाम की बात है, राजीव रचित को लेकर चुपके से छत पर जा चढ़ा। आज वह मामी से छिपाकर पतंग और डोर लाया था। मामी छत पर चढ़ने और पतंग उड़ाने से रोकती थीं, सो वह बिना बताए यह सब कर रहा था।
घोड़ी देर बाद ही मामी को ऐसा लगा कि राजीव छत पर चढ़ गया है। उन्होंने नीचे से उसे आवाज़ लगाई। “अभी आ रहा दे हूँ मामी,” कहकर राजीव फिर से पतंग उड़ाने लगा। मामी परेशान हो रसोईघर में जाकर काम करने लगी ।
राजीव खूब देर तक पतंग उड़ाता रहा। पतंग उड़ाते समय वह आगे बढ़ता-पीछे हटता। कभी छत पर बढ़ता तो कभी मुंडेर पर चढ़ता। उसे ठीक से उड़ानी तो आती नहीं थी। इसलिए पतंग सँभालने को इधर-उधर दौड़ रहा था।

सहसा एक पतंग कटकर उड़ती-गिरती राजीव की छत की ओर आई। राजीव रचित को अपनी पतंग की डोर थमाकर कटी पंतग की ओर लपका। जैसे ही उसका पैर मुंडेर पर पड़ा, वह स्वयं को सँभाल न सका और धड़ाम से आँगन में आ गिरा। – short story in hindi for class 9
‘घड़ाम’ की आवाज़ सुनकर मामी रसोईघर से निकलीं। राजीव फर्श पर पड़ा कराह रहा था। मामी ने जल्दी से दौड़कर उसे उठाया। वह ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था। मामी ने तुरंत उसके मामा जी को फ़ोन किया। वे. जल्दी से घर आए।
Moral Stories in Hindi for Class 9 – मामा जी राजीव को तुरंत समीप के अस्पताल में ले गए। डॉक्टर ने जाँच की तो पाया कि गिरने की वजह से राजीव के पैर की हड्डी टूट गई है। अतएव उन्होंने डेढ़ महीने तक के लिए राजीव के पैर पर प्लास्टर बाँध दिया।
अब राजीव चल-फिर नहीं पाता था। सारा दिन चारपाई पर चुपचाप पड़ा रहता था। वह यही सोचता रहता कि यदि मैं मामी की बात मान लेता, पतंग न उड़ाता तो मेरी हड्डी न टूटती।
story writing in hindi for class 9 – बड़ों का कहना न मानने के कारण ही मुझे यह फल भुगतना पड़ा। राजीव की मामी ने उसके लिए अच्छी-अच्छी बहुत-सी पुस्तकें मँगवा दीं। वह बिस्तर पर लेटा लेटा उन्हें पढ़ता। पुस्तकों से उसे स्वयं को अच्छा बनाने की प्रेरणा मिली।
डेढ़ माह बीत गया। अब राजीव बिल्कुल ठीक हो गया है। अब वह बिल्कुल बदला हुआ राजीव है। वह बात-बात में जिद नहीं करता, बड़ों का कहना मानता है। किसी को सताता नहीं है, दूसरों की सहायता करता है।
यह पुस्तकें पढ़ने से मिली प्रेरणा का ही परिणाम है।
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2. जल ही जीवन है ( The Water Is Life )
ग्रीष्मावकाश पर मीरा ननिहाल गई। उसका ननिहाल दिल्ली में है। ननिहाल जाते समय उसकी सहेली चकोर का पत्र उसे मिला था। चकोर ने पत्र में लिखा था कि ननिहाल से लौटने पर अपने सारे अनुभव पत्र के माध्यम से उसे लिख भेजे। मीरा कल ननिहाल से लौट आई थी।।
यात्रा की थकान मिटाकर आज वह पत्र लिखने बैठ गई है।।
मैं कल ही अपने ननिहाल से लौटी थी और आज तुम्हें पत्र लिखने बैठ गई हूँ।
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चकोर, मैं 21 मई को नानी के यहाँ जाने के लिए रवाना हुई थी। 22 मई की प्रातः 8 बजे मैं मम्भी और पापा के साथ रेलगाड़ी द्वारा दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँची। वहाँ मेरे मामा जी अपनी कार लेकर हम लोगों को लेने के लिए आए हुए थे। दिल्ली की गर्मी देखकर मैं घबरा रही थी।

Hindi kahani lekhan for class 9 – इतनी अधिक गर्मी लखनऊ में भी मैंने नहीं देखी। मामा जी कार द्वारा हमें घर ले गए। गाड़ी में ए.सी था, सो कुछ राहत अनुभव हुई। लगभग पैंतालीस मिनट में हम नानी के घर पहुँच गए। घर जाकर मैंने पानी माँगा। नानी ने मुझे फ्रिज से बोतल निकालकर पानी दिया। मैं थकी हुई थी। सो नानी के शयनकक्ष में जाकर सो गई।
वर्षा कम होती है और नदियों में कूड़ा-कचरा डाला जाता है। इस प्रकार न तो धरती की प्यास पाती है, न नदियों की और रहा-सहा पानी गंदगी की भेंट चढ़ जाता है।
बेटी, सच पूछो तो बढ़ती आबादी पानी को जैसे सुखा डाल रही है, उसे विषैला बना रही है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि बिना पानी के जीवित नहीं रहा जा सकता। यह बात केवल एक परिवार या नगर ही नहीं, सारी दुनिया की है। हमें एक समय पानी का प्रयोग करते हुए दूसरे समय के लिए। बचाकर रखना होगा, तभी काम चलेगा।
जानती हो चकोर, नानी की बात कितनी महत्त्वपूर्ण है? जल ही जीवन है, यह वास्तविक तथ्य है। यदि लोगों को पीने के लिए शुद्ध, ताज़ा व शीतल जल न मिलेगा, तो उनकी क्या दशा होगी?
Moral Stories in Hindi for Class 9 – मैंने टी०वी० पर देखा था, गरीब बस्तियों में लोग पानी के लिए सरकारी दोटियों पर बड़े-बड़े बर्तन लेकर खड़े रहते हैं, परंतु सभी को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाता। लोग सहते है, इस कारण वे समय पर न तो काम पर पहुँच पाते हैं, न ही अपने आवश्यक कार्य कर पाते हैं।

देश के कई भागों में लोग पानी की कमी के कारण पलायन कर जाते हैं। प्रदूषित पानी से पेट व त्वचा के गंभीर रोग हो जाते हैं।
अंत में नानी की ही सलाह को आवश्यक समझती हूँ कि हमें जल के प्रयोग को सीमित करना होगा, जल बचाना होगा परंतु यह मी आवश्यक है कि जल को प्रदूषित होने से बचाना होगा।
शेष मिलने पर। Moral Stories in Hindi for Class 9
3. अनोखा उपहार ( Unique Gift )
Moral Stories in Hindi for Class 9 – आदित्य के जन्मदिन का आयोजन था। माँ और मीनू दीदी ने हॉल को खूब सजाया था। आज छत पर हलवाई को बैठाया गया था। वह अपने तीन सहायकों के साथ स्वादिष्ट व्यंजन बना रहा था।
आदित्य के कुछ मित्र तो सुबह ही घर पर आ गए थे। वे आदित्य से क्षण भर को भी दूर नहीं हो रहे थे। सभी इस प्रकार प्रसन्न थे जैसे उनका ही जन्मदिन हो । Moral Stories in Hindi for Class 9
सायंकाल तक आदित्य के सभी मित्र आ गए थे। खूब धूमधाम से जन्मदिन मनाया गया। आदित्य के सभी मित्र कोई-न-कोई उपहार लाए थे। वह संपन्न परिवार का था। उसके अधिकांश मित्र भी धनी परिवारों के थे।
सभी का उसके घर में आना-जाना था। उनकी माताओं ने पारिवारिक संबंधों को ध्यान में रखते हुए सुंदर व कीमती उपहार भेजे थे। Moral Stories in Hindi for Class 9
विदा होते समय जो भी मित्र उपहार देता, आदित्य उसके उपहार की प्रशंसा करता और धन्यवाद देता। उसका एक मित्र अनुराग चुपचाप एक ओर खड़ा यह सब देख रहा था। वह सामान्य परिवार से था और आदित्य का सहपाठी था। Moral Stories in Hindi for Class 9
उसके पास कीमती उपहार खरीदने को पैसे न थे, सो उसने उपहार अपनी माता से कहकर घर पर ही तैयार करवाया था। अनुराग कुशाग्र बुद्धि का छात्र था, सो आदित्य उसका सम्मान करता था।
यूँ आदित्य भी उससे कम न था। अनुराग मन-ही-मन सोच रहा था कि यहाँ तो सभी धनवान हैं। मुझे ऐसे बालकों से केवल स्कूल में ही संबंध रखना चाहिए। तभी आदित्य की उस पर दृष्टि पर गई । वह तेज़ी से उसकी ओर बढ़ा।
वास्तव में आदित्य अनुराग की झिझक समझ रहा था। “तुम यह क्या लाए हो? लाओ, मुझे दो। मैं खोलता हूँ,” यह कहते हुए उसने आदित्य के हाथ से पैकेट लेकर खोल दिया। Moral Stories in Hindi for Class 9
यह सुंदर प्लास्टिक के पारदर्शी डिब्बे में एक सुंदर सी गुड़िया थी। गुड़िया की आँखें बड़ी प्यारी थीं। आदित्य के अन्य मित्र जो यह देखने आ गए थे, सोच रहे थे कि यह कैसा उपहार है। देने के लिए इसे कुछ और नहीं मिला क्या?

अनुराग ने बताया कि यह गुड़िया उसकी माँ ने तैयार की है। आदित्य भी गुड़िया को बड़े गौर से उलट-पुलटकर देख रहा था। मित्रों को लगा कि इतनी सुंदर तो यह है नहीं, जितनी कि आदित्य प्रशंसा किए जा रहा है।
वे समझ गए कि वह अनुराग का मन रखने के लिए ही वह ऐसा कर रहा है अन्यथा उनके सुंदर व मूल्यवान उपहारों के सामने इस साधारण सी गुड़िया का क्या महत्त्व अब तक अनुराग का संकोच भी दूर हो चुका था। वह उत्साहित होकर आगे बढ़ा। उसने गुड़िया की पीठ में छिपे प्लग को निकालकर सामने बिजली के बोर्ड पर लगा दिया और कमरे की सारी लाइटें बंद करवा दीं। Moral Stories in Hindi for Class 9
गुड़िया की आँखों में लगे दो लाल-नीले बल्ब चमकने लगे। कमरे में बहुत थोड़ा सा प्रकाश हो गया। अनुराग कहने लगा, “यह गुड़िया ‘नाइट लैंप’ का काम भी करेगी।”
“मैं समझ गया। यह अनुराग की बुद्धि का कमाल है,” आदित्य हँसकर बोला।
अनुराग ने सकुचाते हुए बताया कि उसने लैंप की ऐसी कल्पना करके ही माँ से गुड़िया बनवाई थी। अनुराग का यह अनोखा उपहार अलग ही चमक रहा था। उसके साथ भावनाएँ तो जुड़ी ही थीं, साथ में मौलिकता भी थी। सत्य है, बहुत पैसा खर्च करके भी हम दूसरों को वह प्रसन्नता नहीं दे सकते, जो स्वयं कोई मौलिक वस्तु तैयार करके दे सकते हैं। Moral Stories in Hindi for Class 9
अनुराग का यह अनोखा उपहार अलग ही चमक रहा था। उसके साथ भावनाएँ तो जुड़ी ही थीं, साथ में मौलिकता भी थी। सत्य है, बहुत पैसा खर्च करके भी हम दूसरों को वह प्रसन्नता नहीं दे सकते, जो स्वयं कोई मौलिक वस्तु तैयार करके दे सकते हैं। स्वयं बनाकर दी गई कोई भी वस्तु अमूल्य होती है। वह प्रयोग करने वाले को निरंतर उस स्नेह की याद दिलाती रहती है। मूल्य वस्तु का नहीं, उसके साथ जुड़ी भावना का होता है। अनुराग का यह उपहार सुदामा के चावलों जैसा था।
4. डाकू और साहसी ( Robber and Adventurer )
हम सभी खेतों में दिन-रात कठोर परिश्रम करके जैसे-तैसे कुछ अर्जित करते हैं और ये हमारी वर्षों की खून-पसीने की कमाई को उठाकर ले जाएँगे, सोचकर ही उसका खून खौल उठा। Moral Stories in Hindi for Class 9
“अन्यायी और आततायी से डरना अपराध है। अन्याय को चुपचाप सहने से ही अन्यायी को बल मिलता है। मैं इनका सामना करूँगा,” ऐसा मन-ही-मन सोचकर विजय चुपचाप नीचे उतरने लगा।
डाकू अनेक थे और वह अकेला था, इसलिए उसने युक्तिपूर्वक कार्य करना उचित समझा। वह अँधेरे में छिपते हुए घर से बाहर निकला। बरामदे में रखी कुल्हाड़ी उठाई और बाहर पेड़ों के झुरमुट में छिपकर खड़ा हो गया।
डाकू एक-एक करके भीतर से सामान लेकर निकलने लगे। जो भी डाकू बाहर आता, वह उसी पर कुल्हाड़ी से वार करता। अँधेरे के कारण डाकू उसे ठीक से देख न पाए थे। दो डाकू बुरी तरह घायल हो गए थे।

डाकुओं ने सोचा कि गाँव वाले जाग गए हैं, अब वे घेर लिए जाएँगे। कुल्हाड़ी का वार और पकड़े जाने के भय से वे सामान छोड़-छोड़कर भागने लगे। भागते हुए एक घायल डाकू को विजय ने पकड़ लिया।
Moral Stories in Hindi for Class 9 – अब तक गाँव में जाग हो गई थी। ग्रामीण टॉर्च, लालटेन और लाठी-डंडे आदि लेकर अपने घरों से निकल पड़े थे। यह पता लगा कि उस रात डाकुओं ने बारह घरों में डकैती डाली थी, परंतु विजय की बुद्धिमानी से वे अपने साथ थोड़ा-सा ही सामान ले जा पाए थे।
विजय के साहस की सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उसी के कारण अनेक घरों की रक्षा हो सकी थी। इतना ही नहीं, जिस घायल डाकू को विजय ने पकड़ा था, पुलिस ने उससे डाकू दल का भेद उगलवा लिया था। Moral Stories in Hindi for Class 9
घोर संकट की स्थिति में भी साहस तथा बुद्धिमत्ता से कार्य किया जाए, तो विजय जैसा छोटा बालक भी अनेक लोगों की रक्षा कर सकता है। Moral Stories in Hindi for Class 9
उस आतंक मचाने वाले डाकू दल के पकड़ जाने से ग्रामीण राहत का अनुभव कर रहे थे। अब वे चैन की नींद सो सकते थे। Moral Stories in Hindi for Class 9
सत्य है, साहस और परोपकार के लिए आयु नहीं, संस्कार ही सहायक होते हैं, तभी तो अल्पायु बच्चे भी वह कार्य कर देते हैं, जिन्हें बड़े भी नहीं कर पाते |
5. सेब की कहानी
वर्तमान समय में फलों की कोई दुकान ऐसी न होगी, जहाँ सेब नजर न आता हो। कभी सेब धनी लोगों का फल था, परंतु आज यह एक सामान्य फल है। सेब का उत्पादन कश्मीर और हिमाचल में होता है।
वहाँ की जलवायु ही सेब के अनुकूल है। यहीं से पूरे देश में सेब की आपूर्ति होती है। कश्मीर और हिमाचल प्रदेश अपने यहाँ पाए जाने वाले लाल रसीले सेब के लिए दुनिया में जाने जाते हैं।
लगभग 90 वर्ष पूर्व भारतवर्ष में सेब पैदा नहीं होता था। मूलतः सेब भारतीय फल नहीं है। यह अमेरिकी फल है। बीसवीं सदी के प्रारंभ में इसे भारत लाया गया। इसे लाने वाले सज्जन थे- सैमुअल इवान स्टोक्स |
इक्कीस वर्ष की अवस्था में सैमुअल का भारत आगमन हुआ था। फिलाडेल्फिया (अमेरिका) का एक डॉक्टर दंपति भारत के कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए चंदा एकत्र कर रहा था। सैमुअल को जब इसका पता चला, तो उसके मन में उनके साथ कार्य करने का विचार आया। उसने भारत आने की ठान ली।
उसके माता-पिता को यह बात पसंद न आई, परंतु 26 फरवरी, 1904 को वह डॉक्टर दंपति के साथ भारत आ गया।
भारत आकर सैमुअल कुष्ठ रोगियों के लिए काम करने लगा, परंतु यहाँ के गरम मौसम के चलते वह बीमार रहने लगा। सैमुअल रोगियों के साथ-साथ गाँव वालों की भी हर प्रकार से सहायता किया करता । शीघ्र ही
वह सबका चहेता बन गया। इसी दौरान उसने एक पहाड़ी लड़की से विवाह कर लिया और सदा के लिए भारत का हो गया। उस समय तक भारत में सेब जापान से मँगवाए जाते थे। हालाँकि ब्रिटेन के सेब भी यहाँ मिल जाते थे, परंतु उनका स्वाद खट्टा होता था। सन् 1915 के आसपास सैमुअल को अमेरिका जाने का अवसर मिला।

वहाँ उसे लुसियाना की नर्सरी में स्टार्क ब्रदर्स द्वारा उगाए जाने वाले रेड डिलीशियस सेबों के बारे में पता लगा। सैमुअल इनके नमूने भारत ले आया और उन्हें अपने चाय के बागान में लगा दिया।
सन् 1926 के आसपास ये सेब बाज़ार में आ गए। मीठे-रसीले लाल-लाल सेबों को लोगों ने हाथों-हाथ खरीद लिया और उनकी माँग तेज़ी से बढ़ने लगी।
गाँववालों को आलू और आलूबुखारे के स्थान पर इनकी खेती करना अधिक लाभदायक लगा। सैमुअल ने भी रेड डिलीशियस सेव उगाने में उनकी सहायता की और देखते-ही-देखते सारे हिमाचल प्रदेश में सेव की खेती होने लगी।
सैमुअल की तरह ही सेब कब भारतीय बन गए, यह किसी को पता ही नहीं चला। अब तो यह फल पूरी तरह से भारत का ही बन चुका है।
यहाँ विशेष रूप से जानने योग्य बात यह भी है कि सैमुअल था तो विदेशी, परंतु उसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वह जब यहाँ आया था, तो भारत अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था।
सैमुअल भी उस लड़ाई में सम्मिलित हो गया। वह महात्मा गांधी व लाला लाजपत राय जैसे प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं के साथ जेल गया।
6. गंगा की गाथा
मैं एक नदी हूँ। लोग मुझे भारत की सबसे महान और पवित्र नदी मानते हैं। मेरा नाम गंग है। मेरा उद्गम हिमालय की गंगोत्री हिमानी से हुआ है। मैं गोमुख नामक स्थान पर हिमानी से निकलती हूँ।
इस स्थान पर मेरी धारा नन्ही और पतली है। यहाँ लोग भागीरथी कहते हैं। हिमानी की बर्फ पिघल पिघलकर मेरी धारा में मिलती रहती है, इसीलिए मैं सदानीरा हूँ। भागीरथी के नाम से बहती हुई मैं गंगोत्री पहुँचती हूँ।
यह एक तीर्थस्थान यहाँ गंगोत्री का प्रसिद्ध मंदिर है, जहाँ देश-विदेश से यात्री आते हैं। वे मेरे अत्यंत ठंडे और निर्मल जल में स्नान करते हैं।
“नहा-धोकर वे मंदिरों में मेरी मूर्ति की पूज करते हैं। मुझे यह सब कुछ बहुत अच्छा लगता है। मेरी छाती गर्व से फूल जाती है। नाचती, कूदती और कलकल करती हुई मैं आगे बढ़ती इस पहाड़ी मार्ग में मेरा प्रवाह बहुत तेज हो । जाता है। मैंने यहाँ पहाड़ों की बड़ी-बड़ी चट्टानों को काट रास्ता बनाया है।

इससे मेरी घाटी कहीं-कहीं बहुत गहरी हो गई है। यहाँ बड़े-बड़े पत्थर मेरी धारा में लुढ़ककर आ जाते हैं। बल खाती और शोर मचाती मैं देवप्रयाग पहुँचती हूँ। यहाँ मेरी सखी अलकनंदा मुझसे आकर मिलती है। इस मिलन के बाद मेरी धारा और तेज़ हो जाती है। देवप्रयाग के बाद लोग मुझे गंगा के नाम से पुकारते हैं।
गंगा के नाम से मैं ऋषिकेश पहुँचती हूँ। यहाँ मेरी धारा पर तारों से बना एक पुल है, जिसका नाम लक्ष्मण झूला है। यात्रियों के चलने से यह पुल हिलने-डुलने लगता है। यहाँ अनेक भव्य मंदिर हैं। मेरी धारा के दोनों ओर साधु-संन्यासियों के अनेक आश्रम हैं। इन आश्रमों में वे तपस्या करते हैं।
ऋषिकेश के बाद मैं हरिद्वार पहुँचती हूँ। यह एक बहुत प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। हरिद्वार में पूरे साल मेरे तट पर कोई-न-कोई मेला लगा रहता है, लेकिन इनमें कुंभ का मेला सबसे बड़ा होता है।
यह प्रत्येक बारह वर्ष बाद लगता है। कुंभ के मेले में देश के कोने-कोने से लाखों लोग आते हैं। हरिद्वार में मेरी धारा से एक नहर निकाली गई है। लोग इसे गंगानहर कहते हैं।
इस नहर से लाखों हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। हरिद्वार में बिजली की भारी मशीनें बनाने का कारखाना है। इस कारखाने को चलाने के लिए मैं ही पानी देती हूँ।
हरिद्वार के बाद मैं मैदानी भाग में प्रवेश करती हूँ। यहाँ मेरी धारा की गति मंद हो जाती है। धीरे-धीरे बहती हुई मैं कानपुर पहुँचती हूँ। कानपुर उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध औद्योगिक नगर है। इस नगर में कपड़ा बनाने और चमड़े की वस्तुएँ बनाने के अनेक कारखाने हैं। ये कारखाने ढेर सारा गंदा पानी मेरी धारा में डाल देते हैं।
कानपुर से चलकर मैं इलाहाबाद पहुंचती हूँ। इस नगर की लोग प्रयाग भी कहते हैं। यहीं यमुना और सरस्वती से मेरा संगम होता है। संगम पर प्रत्येक बारहवें वर्ष कुंभ का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से लाखों यात्री आते हैं। यात्री दिन-रात मेरे तट पर ही रहते हैं।
कुछ दिनों के लिए मेरे तट पर तबुआ का एक बड़ा-सा नगर बस जाता है। प्रयाग से मैं फिर आगे बढ़ती हूँ।
निरंतर बहना मेरा स्वभाव है। बहते बहते मैं वाराणसी पहुँचती हूँ। वाराणसी को लोग काशी भी कहते हैं। यह प्राचीन ऐतिहासिक नगर है। यह एक महान् तीर्थस्थान और संस्कृत विद्या का केंद्र है। वाराणसी के बाद घाघरा, गंडक, कोसी, सोन आदि कई नदियाँ मुझमें समा जाना है।

अब मेरा पाट बहुत चौड़ा हो जाता है। बिहार राज्य से बहती हुई मैं पश्चिम बंगाल पहुँचती हूँ। पश्चिम बंगाल में मैं दो धाराओं में बँट जाती हूँ। पूर्व की ओर मेरी मुख्य धारा बांग्लादेश में चली जाती है। दूसरी धारा दक्षिण की ओर मुड़कर बंगाल की खाड़ी में मिन्न जाती है। इस धारा के ऊपरी भाग को लोग फिर भागीरथी कहते हैं।
इसका दक्षिणी भाग हुगली कहलाता है। इसी के किनारे कोलकाता महानगर बसा है। कितनी अजीब बात है कि भारत की प्रमुख नदी होते हुए भी मेरा एक नाम नहीं है। उद्गम से लेकर मुहाने तक मेरे कई नाम पड़ गए हैं। यह भारतवासियों की विभिन्न इच्छाओं को व्यक्त करते हैं।
इसीलिए में भारत की सबसे पवित्र नदी मानी जाती हूँ। गोमुख से हरिद्वार तक मेरा जल चाँदी जैसा चमकता है। मेरी धारा में पड़ा सिक्का भी दूर से दिख जाता है। लेकिन मुझे दुःख है कि कानपुर के बाद मेरा जल गंदा हो जाता है।
मुझे प्रसन्नता है कि लोगों का ध्यान अब इस गंदगी की ओर गया है। भारत सरकार ने मेरे इस जल को शुद्ध करने का बीड़ा उठाया है। सरकार का एक पूरा विभाग इस काम में लगा है।
मुझे उस दिन की प्रतीक्षा है जब मेरा जल शुद्ध हो जाएगा और गोमुख से लेकर सागर तक, गंगा का जल चाँदी जैसा चमचम करेगा। तभी सही अर्थों में, मैं जीवनदायिनी नदी कहलाऊँगी।
7. पहले सोचो, फिर करो
“गुंजन, अब सो जाओ,” माँ थके-से स्वर में बोलीं। उनकी आँखों में नींद मरी हुई थी। परंतु गुंजन को नींद कहाँ आने वाली थी। वह तो सोच रहा था कि माँ सो जाएँ और वह चुपके से अखिल के घर खेलने चला जाए।
माँ गुंजन की इस शरारत को समझ रही थीं। वे बोली, “देखो गुंजन, इस कड़ी गर्मी में बाहर लू में खेलने जाओगे तो निश्चित ही बीमार पड़ोगे। कल तुम्हें मेरे साथ नानी के यहाँ चलना है। बीमार पड़ गए, तो यहीं छोड़ जाऊँगी तुम्हें, समझ लेना।”
गुंजन कुछ न बोला परंतु जैसे ही माँ की आँख लगी, वह तुरंत उठा और दबे पाँव कमरे से बाहर भाग गया। जाने के पहले एक बार उसने सोचा भी था कि पता लगने पर माँ नाराज होंगी, परंतु मन ने कहा कि माँ तो हर बात पर टोकती ही रहती हैं।

अखिल अपने घर के बाहर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। दोनों बाग की ओर दौड़ लिए और वहाँ पहुँचकर पेड़ों पर चढ़ते-उतरने लगे। लू चल रही थी। कड़ी धूप पड़ रही थी परंतु दोनों को भला इसकी परवाह भी क्या थी? पेड़ों पर चढ़ते और डाल पकड़कर लटकते, कूदते । तितलियों के पीछे भागते, पकड़म-पकड़ाई खेलते।
दोपहर बीतने को थी, तब गुंजन को घर की याद आई। वह सिर में हलका दर्द भी अनुभव” कर रहा था। पसीने में भीगा हुआ वह दबे पाँव घर में घुसा और कमरे में जाकर लेट गया। दर्द बढ़ता जा रहा था परंतु ‘माँ डाँटेंगी’, यह सोचकर चुप था। अचानक दर्द बढ़ने लगा तो वह कराहने लगा। उसकी कराह सुनकर माँ दौड़ी हुई आईं।
“क्या हुआ? क्या बात है? बोलो,” माँ ने चिंतित होते हुए पूछा।
“सिर में बहुत दर्द हो रहा है,” वह सहमकर बोला।
माँ ने उसके माथे पर हाथ रखा तो पाया कि वह तप रहा था। “कहाँ गए थे तुम क पूछा माँ ने ।
“अखिल के साथ बाग में,” कहकर गुंजन अचानक रो पड़ा। उसका दर्द और बेचैनी हर पल बढ़ते ही जा रहे थे। “दोपहरी में अखिल के साथ बाग में खेले होंगे न?” माँ ने पूछा।
गुंजन ने रोते-रोते सिर हिला दिया। माँ उस समय तो कुछ न बोलीं। चुपचाप थर्मामीटर उसे ज्वर था। नापा तो 105 डिग्री बुखार था। उन्होंने फ्रिज से बर्फ़ निकाली और उस पर कप की पट्टी रखकर गुंजन के माथे पर रखने लगीं। दो घंटे बाद जाकर कहीं बुखार कुछ हलका पड़ा। शाम को जब पापा आए, तो वे गुंजन को डॉक्टर के यहाँ ले गए। “लू लगने से बुखार आ गया लाई है,”
ऐसा डॉक्टर का कहना था। गुंजन को आठ-दस दिन कड़वी गोलियाँ और कैप्सूल खाने पड़े। लस्सी, शरबत, आइसक्रीम सब बंद हुए, सो अलग। गुंजन के बीमार पड़ने के कारण उस वर्ष वे गर्मी की छुट्टियों में नानी के यहाँ न जा सके थे। सारा दोष गुंजन को ही दिया जाता था। पापा कहते, “माँ का कहना मानता, पड़ता और सभी नानी के यहाँ जाते ।” तो बीमार न
एक दिन जब माँ ने भी ऐसा ही कहा तो गुंजन तुनककर बोला, “ओफ्हो, बीमार पड़ गया तो – इसमें मेरा क्या दोष?”

माँ बोली, “देखो गुंजन, अभी तक तो तुम बीमार थे, इसलिए मैं कुछ न बोली। मैं भी तुमसे बहुत दिनों से बहुत कुछ कहना चाहती थी। सच बात तो यह है कि तुम अपने आगे किसी की
सुनते ही नहीं, इसलिए बार-बार हानि उठाते हो, साथ ही पूरे परिवार को परेशानी में डालते
हो। बेटा, ज़रा सोचो, क्या टोकना तुम्हारे दुख का कारण बनता है? तुम्हें दुखों से बचाने हेतु ही तो मैं टोकती हूँ। जो बच्चे माँ-बाप का कहा मानते है, वे परिवार के हित में होते हैं अन्यथा सबको परेशानी में डालते हैं।
उस दिन मेरा कहना मानते तो तुम्हें लू न लगती और बुखार न चढ़ता। गर्मी की छुट्टियाँ नानी के यहाँ हरिद्वार में बिताते, रोजाना गंगा जी में स्नान करते और यहाँ-वहाँ घूमते।”
गुंजन की समझ में अपनी गलती आ रही थी। वह माँ के आँचल में मुँह छिपाकर बोला, “माँ, मैं तुम्हारी हर बात मानूँगा। अब कभी जिद न करूँगा। फिर तो अच्छा बन जाऊँगा न माँ? फिर तो
तुम मुझे खूब प्यार करोगी ना?”
“अपनी बात याद रखना,” मुस्कराते हुए बोलीं माँ। गुंजन हँसते हुए माँ के गले से लिपट गया, बोला- “अब कभी जिद करूँ तो बताना!”
8. बुद्धिमान बालक
पाटलिपुत्र के महाराज नंद अपने सभी सभासदों की बुद्धि परीक्षा लेते हैं। परंतु एक बालक इस बुद्धि परीक्षा को पास करता है। यह बालक बड़ा होकर चंद्रगुप्त के नाम से प्रसिद्ध होता है।
(पाटलिपुत्र के महाराज नंद का राजदरबार । महाराज नंद की राजसभा सजी हुई है। महाराज राजसिंहासन पर बैठे हैं। सभासद लोग भी अपने-अपने आसनों पर आसीन हैं। राजसभा में लोहे के पिंजरे में एक शेर कैद है। शेर असली नहीं, नकली है। मोम का बना हुआ बहुत सुंदर शेर । यह इतना सजीव है कि देखने में लगता है, मानों अभी झपट पड़ेगा।)
महाराज नंद : मैं आज सभी सभासदों की बुद्धि परीक्षा लेना चाहता हूँ। क्या सब लोग तैयार हैं?
सभी सभासदः (एक साथ) महाराज ! हम सभी तैयार हैं। आज्ञा कीजिए।
महाराज नंद (पिंजरे की ओर संकेत करके) देखो, जो व्यक्ति इस मजबूत पिंजरे को खोले बिना खाली कर देगा, उसे मैं सबसे अधिक बुद्धिमान समझँगा । जो यह कार्य कर सके, वह सामने आए।

(सभी सभासद देर तक गर्दन नीची करके सोचते रहते हैं। कोई नहीं बोलता। सभा में सन्नाटा छा जाता है। तभी एक बालक खिलखिलाता हुआ राजसभा में प्रवेश करता है।) बालक : (ठहाका मारकर) अरे! इतनी छोटी-सी बात पर सारी राजसभा मौन बैठी है! यह काम तो बहुत सरल है। मुझे कहें तो पिंजरा खोले बिना चुटकी
बजाते ही पिंजरा खाली कर दूँ।
महाराज नंद : (क्रोध में आकर) मूर्ख बालक! बाहर जाकर खेलो। जिस कठिन समस्या को सारी सभा हल न कर सकी, उसे तुम अज्ञानी बालक कैसे हल कर पाओगे ?
: (आत्मविश्वास सहित) महाराज! मुझे आदेश दें तो मैं यह समस्या अवश्य हल कर दूँगा ।
महाराज नंद : ठीक है। तुम प्रयत्न कर लो। पर स्मरण रखना, यदि तुम पिंजरा ख…
बालक : महाराज ! यह सब आपकी ही कृपा है! महाराज नंद : (मंत्री से) मंत्री जी, इस बालक को उचित पुरस्कार दिया जाए। मंत्री : जो आज्ञा महाराज!
पुरस्कार लाया जाता है। महाराज बालक को पुरस्कार देते हैं। सभी सभासद तालिय बजाकर उसका उत्साह बढ़ाते हैं।
(बड़ा होकर यही बालक सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।)
9. रंगों का पर्व : होली
पर्वों का मानव-जीवन में विशेष महत्व है। ये जीवन की नीरसता को दूर करके मन में • उल्लास और आनंद का रस घोलते हैं। ये पर्व या त्योहार सभी धर्मों में मनाए जाते हैं जो हमें आपसी भाईचारा तथा असत्य पर सत्य की विजय का पाठ पढ़ाते हैं। यदि हम आपसी भेदभाव को मिटा दें तो हर दिन पर्व के समान बीते ।
हमारा देश त्योहारों का देश है। यहाँ समय-समय पर अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। इसी श्रृंखला में होली का अपना विशेष महत्व है। आज पिंकी और अन्नू बहुत खुश वे अपने माता-पिता के साथ रंग-गुलाल और पिचकारी खरीदने जा रहे थे। बाज़ार में चारों तरफ रंग गुलाल और पिचकारियाँ सजी थीं। पिंकी ने मछली के आकार की पिचकारी खरीदी और अन्नू खरीदी। ने बन्दूक वाली पिचकारी थे।
पिंकी, अन्नू दोनों बहुत ही खुश थे और इंतज़ार कर रहे थे कि कब सुबह हो और वे रंग खेलें। पिंकी ने माँ से पूछा, “माँ, हम लोग होली क्यों मनाते हैं?” माँ ने पिंकी को समझाते हुए बताया, “होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, इसी दिन होलिका
जलाई जाती है। दूसरे दिन रंग और गुलाल खेला जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भक्त प्रह्लाद की बुआ ‘होलिका’ को भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन ही प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने की आज्ञा दी थी, जिससे प्रहलाद आग में जलकर भस्म हो जाए।
होलिका को आग में न जलने का वरदान था इसलिए वह अपने भाई की सलाह पर प्रहलाद को गोदी में लेकर जलती आग में बैठ गई। लेकिन होलिका भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। तभी से होलिका दहन की प्रथा चली आ रही है।
अगले दिन रंग खेला जाता है। लोग एक-दूसरे पर रंग-गुलाल डालते हैं, फाग गाते हैं तथा एक-दूसरे के गले मिलते हैं। पिंकी ने माँ की बातें बहुत ध्यान से सुनी।
दूसरे दिन प्रातः ही पिंकी और अन्नू उठ गए। वे अपनी-अपनी पिचकारी और बाल्टी में रंग का पानी लेकर घर से बाहर आ गए।) पड़ोस के बच्चे गोलू, राजू, चिंटू, रेखा, गीता आदि एकत्र हो गए। सभी ने एक-दूसरे पर खूब रंग और गुलाल डाला।

पिंकी के माताजी एवं पिताजी के साथ पड़ोस के लोग होली खेलने आए। वे आपस में गले मिल रहे थे और एक-दूसरे को गुलाल
रंगों का पर्व होली लगा रहे थे। उसी समय एक टोली आई जिसमे एक आदमी ढोल बजा रहा था; सभी बच्चे ढोल की धुन पर नाचने-गाने लगे। दोपहर में रंग खेलने के बाद पिंकी और अन्नू नहा-धोकर नए वस्त्र पहनकर अपने मित्रों के यहाँ मिलने गए। उन्होंने खूब मिठाइयाँ और गुजियाँ भी खाईं।
रात को बच्चे पिताजी के पास जाकर बैठे, तब पिताजी ने बच्चों को समझाया, “बच्चो! होली का त्योहार ऊँच-नीच, छोटे-बड़े का भेद-भाव मिटाता है। सभी को एकता, प्रेम और स्नेह का संदेश देता है। हमें होली अच्छे रंगों से खेलनी चाहिए। किसी पर कीचड़, ग्रीस या अन्य गंदी चीजें नहीं डालनी चाहिए। इससे शरीर की त्वचा को हानि पहुँचती है।
कभी-कभी आँखों में रंग चले जाने से आँखें खराब होने का भी डर रहता है, इसलिए रंग सावधानी से खेलना चाहिए। हमारे देश में कई प्रकार से होली खेली जाती है। (ब्रज की होली बहुत प्रसिद्ध है, यहाँ फूलों की होली तथा लट्ठमार होली देखने के लिए दूर-दूर के राज्यों एवं विदेशों से लोग आते हैं।), पिताजी की बातें सुनकर बच्चे बहुत प्रभावित हुए।
बच्चो! इस दिन हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम जीवन में मिल-जुलकर आपसी मेल-जोल बढ़ाएँगे तथा एकता और सच्चाई के मार्ग पर चलेंगे ।