tit for tat

Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi

जैसे को तैसा – (Tit for Tat) – Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi

करता था सो क्यूं किया, अब करि क्यूँ पछिताय ।

Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi – बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ ते खाय ॥ एक बार तीन डाकू वेश बदलकर किसी नगर में आए। वे किसी ऐसे घर की खोज में थे, जहाँ उन्हें लूटने के लिए अच्छा धन मिल जाए घूमते-घूमते उन्हें एक धनी व्यक्ति का मकान दिखाई दिया। वे उसमें घुस गए उन्होंने वहाँ से सोने-चाँदी के गहने और रुपये लूट लिए। लूट का सारा सामान लेकर वे जंगल में भाग गए। वहाँ पहुँचकर वे एक पेड़ के नीचे बैठ गए और लूट का धन आपस में बाँटने लगे।

धन बाँटने के बाद उन्हें बहुत जोर की भूख लगी, इसलिए सोचा कि कुछ खा लिया जाए । उन्होंने अपने एक साथी को खाना लाने के लिए नगर में भेज दिया। शेष दोनों डाकू वहीं बैठकर उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगे।

खाना लेने गए डाकू ने पहले स्वयं भरपेट खाना खाया। उसके बाद उसने अपने साथियों के लिए खाना खरीदा । खाना लेकर वह जंगल की ओर चलने ही वाला था कि उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि यदि उसके साथी मर जाएँ तो सारे गहने और रुपये उसे मिल जाएँगे। यही सोचकर उसने खाने में विष मिला दिया और मन ही मन प्रसन्न होता हुआ जंगल की ओर चल दिया। उसे पूरा विश्वास हो गया था कि अब लूट का सारा धन उसे ही मिलेगा

इधर जंगल में उसके दोनों साथी काफी देर से खाली बैठे उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। अचानक उनमें से एक के मन में आया कि यदि वे अपने तीसरे साथी को मार दें तो यह सारा धन केवल हम दोनों में ही चैटेगा। उसने यह बात अपने दूसरे साथी को बताई। दोनों की नीयत खराब हो गई और उन्होंने अपने तीसरे साथी को मारने का निश्चय कर लिया।

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जैसे ही तीसरा डाकू खाना लेकर अपने साथियों के निकट पहुँचा उन्होंने उसके पेट में कटार भोंककर उसकी हत्या कर दी। अब दोनों डाकुओं ने बैठकर प्रसन्नतापूर्वक अपने साथी द्वारा लाया हुआ खाना खाया। खाना खाते ही भोजन में मिला हुआ विष उनके शरीर में फैलने लगा। वे बुरी तरह तड़पने लगे और थोड़ी

देर में ही उनके प्राण निकल गये। तीनों डाकू मर गए क्योंकि उनकी नीयत में खोट आ गया था। लूट का सारा धन ज्यों-का-ज्यों ही पड़ा रह गया।

उन्हें अपने किये का फल मिल गया। सच ही कहा गया है कि जो जैसा करता है, वैसा ही | भरता है अथवा जैसी करनी वैसी भरनी ।

मनुष्य को किसी भी लालच से अनुचित कार्य नहीं करना चाहिए। लालच मनुष्य को अंधा बना देता है। दूसरों के लिए कुआँ खोदने वाले खुद ही उसमें जा गिरते हैं।

दयालु मनुष्य (Merciful Man) – Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi

दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान ।

तुलसी दया न छोड़िए, जब तक घट में प्रान ॥

अयोध्या के परम प्रतापी राजाओं में महाराज दिलीप का नाम बहुत प्रसिद्ध है। वे रामचन्द्र जी से चार पीढ़ी पहले हुए थे। वे परम वीर, प्रजापालक और जीवों पर दया करने वाले थे। उनकी पत्नी का नाम सुदक्षिणा था। विवाह के पश्चात् कई वर्ष बीत जाने पर भी उनके यहाँ कोई संतान नहीं हुई, जिसके कारण पति-पत्नी दोनों अत्यधिक दुःखी रहने लगे ।

एक बार वे दोनों अपने कुलगुरु वशिष्ठ के आश्रम में गए। गुरु वशिष्ठ ने उनका समुचित सत्कार किया और उनके आने का कारण पूछा।

वशिष्ठ के प्रश्न को सुनकर महाराज दिलीप ने विनयपूर्वक कहा, “गुरुदेव ! आपकी कृपा

से हमारे राज्य में चारों ओर सुख-शान्ति है, किन्तु हमें अभी तक पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई । यदि आपका आशीर्वाद मिल जाए तो हमारी यह मनोकामना पूर्ण हो सकती है।” महाराज दिलीप की इच्छा सुनकर गुरु वशिष्ठ ने थोड़ी देर सोचा और फिर बोले, “राजन् ।

यदि तुम दोनों पति-पत्नी हमारी गाय नन्दिनी की मन लगाकर सेवा करो तो इसके आशीर्वाद से तुम

दोनों की मनोकामना पूर्ण हो सकती है।”

उसी दिन से राजा दिलीप और उनकी पत्नी सुदक्षिणा ने आश्रम में नन्दिनी गाय की सेवा

करनी शुरू कर दी। महाराज दिलीप उसे वन में चराने ले जाते। महाराज दिलीप छाया की गाय के साथ लगे रहते। जब गाय चलती तो वे भी साथ लते, जब वह कहीं रुकती तो ये भी जाते, यदि वह कहीं पर बैठकर विश्राम करने लगती तो राजा भी यहीं बैठ जाते। यही क्रम काफी दिनों तक चलता रहा।

एक दिन महाराज दिलीप प्रतिदिन की जंगल में नन्दिनी को चरा रहे थे। हरी हरी घास को रुचिपूर्वक चर रही थी। चारों और प्रकृति की सुन्दर छटा बिखरी हुई थी महाराज दिलीप उस सौन्दर्य में खो गये। तभी उन्हें गाय के रेमाने की आवाज सुनाई दी। दिलीप चौंककर पलटे तो देखा कि एक शेर ने नन्दिनी को दबोच रखा है। वह उसके पंजों में फैसो छटपट रही है।

राजा का हाथ तुरन्त अपने तरकश पर गया। उन्होंने वाण निकालना चाहा, परन्तु हाथ चिपककर रह गया। राजा को आश्चर्यचकित होता देखकर शेर ने कहा, “राजन् बाण निकाल की चेष्टा मत करो। मैं कोई साधारण शेर नहीं हूँ। तुम मुझे मार नहीं सकते। यह गाय मेरा भोज है। मैं इसे खाकर अपनी भूख मिटाऊँगा।”

महाराज दिलीप समझ गए कि अवश्य इस शेर को कोई देवी शक्ति प्राप्त है। उन्होंने कहा “यदि तुम कोई साधारण शेर होते तो मेरे बाण के प्रभाव से बच नहीं सकते थे। अब तुमसे मे यही प्रार्थना है कि तुम इस गाय को छोड़ दो। इसके स्थान पर मेरा मांस खाकर अपनी भूख शा कर ली।”

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शेर ने कहा, “किन्तु राजन् तुम्हारा जीवन तो बहुमूल्य है तुम्हारे पास तो ऐसी लाखों होंगी, फिर इस गाय के लिए तुम अपना जीवन क्यों बलिदान करना चाहते हो ?”

महाराज दिलीप ने कहा, “हे सिंह मैं एक क्षत्रिय राजा है, इसलिए अपने प्राण देकर भी | दीन-हीन प्राणियों की रक्षा करना मेरा धर्म है अतः तुम इस गाय को छोड़ दो और मुझे खाकर अपनी भूख मिटाओ।”

ऐसा कहकर महाराज दिलीप शेर के सामने सिर झुकाकर बैठ गये। तभी आकाश से राजा पर पुष्प वर्षा होने लगी। नन्दिनी की आवाज राजा के कानों में पड़ी, “उठो, पुत्र यहाँ कोई शेर नहीं है। यह सब मेरी माया थी। यह तुम्हारी परीक्षा थी। तुम वास्तव में जीवों के रक्षक हो। मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम्हें शीघ्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी।” वरदान पाकर राजा बहुत प्रसन्न हुए।

नन्दिनी के आशीर्वाद से महाराज दिलीप के यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम रघु

यही रखा गया। उसी के नाम पर उस वंश का नाम ‘रघुवंश’ पड़ा।

न जीवों पर दया करना तथा उनकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। यही सच्ची मानवता है। दयालु मनुष्य की सभी मनोकामनाओं को ईश्वर पूर्ण करता है। दया मनुष्य का भूषण है और मनुष्य को इसे खोना नहीं चाहिए।

श्रमशील होना (To be Laborious) – Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi

बच्चों, आप सभी ने पेड़ों पर, झाड़ियों में और खेतों में गिलहरी को दौड़ते हुए देखा होगा । आपने गिलहरी के शरीर पर पड़ी धारियों को भी देखा होगा। क्या आप जानते हैं कि गिलहरी के शरीर पर ये धारियाँ कैसे पहाँ ? गिलहरी के शरीर पर बनी इन धारियों के सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है :

भगवान राम को अयोध्या का राज्यभार सौंपे जाने की घोषणा हो चुकी थी। राजतिलक की तैयारियाँ चल रही थीं कि तभी राजा दशरथ की दूसरी रानी कैकेयी ने उनसे दो वरदान माँग लिए । एक वरदान में उसने रामचंद्र जी के लिए चौदह वर्ष का वनवास तथा दूसरे वरदान में अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का सिंहासन माँगा।

रामचंद्र जी अपने पिता की आज्ञा मानकर अपनी पत्नी सीता तथा छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वन को चले गए। वन में लंका का राजा रावण सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया। रामचंद्र जी ने हनुमान, सुग्रीव, जामवंत तथा अन्य वानरों को संगठित कर लंका पर आक्रमण कर सीता जी को मुक्त कराने की योजना बनाई |

यह कार्य बड़ा कठिन था लंका तक पहुँचने के मार्ग में दूर-दूर तक फैला विशाल सागर था। समस्या थी, उस विशाल सागर को पार करने की। रामचंद्र जी के पास ऐसा कोई साधन नहीं था जिससे सागर को पार कर लंका तक पहुँचा जा सके।

काफी विचार-विमर्श के बाद सागर पर पुल बनाने का निश्चय किया गया, यह बड़ा ही कठिन कार्य था । किंतु परिश्रमी व्यक्ति के सामने बड़ी से बड़ी समस्या भी सरल हो जाती है।

कार्य प्रारंभ हो गया । नल, नील नाम के दो कुशल वानर पत्थरों पर ‘राम-राम’ लिखकर समुद्र में डाल रहे थे। दूसरे वानर मिट्टी भर-भरकर डाल रहे थे।

राम-लक्ष्मण सारे कार्य का निरीक्षण कर रहे थे और घूम-घूमकर वानरों का उत्साह बढ़ा रहे थे। सभी वानर पूरे उत्साह व लगन के साथ समुद्र पर पुल बनाने के कार्य में जुटे हुए थे ।

अचानक रामचंद्र जी की दृष्टि एक गिलहरी पर पड़ी। उन्होंने देखा कि गिलहरी ने पहले समुद्र के पानी में डुबकी लगाई, फिर वह दौड़कर किनारे पर आई किनारे पर आकर वह धूल में लेट गई, इससे उसके सारे शरीर पर मिट्टी लग गई। वह फिर दौड़कर पानी में गई।

श्रमशील होना (To be Laborious) - Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi
श्रमशील होना (To be Laborious)

बाहर आकर यह फिर मिट्टी में लेटी तथा फिर समुद्र में डुबकी लगाने चली गई। वह इसी क्रिया को बार-बार दोहरा रही थी।

पहले तो रामचंद्र जी इस क्रिया को गिलहरी का खेल समझ रहे थे, लेकिन जब गिलहर बहुत । देर तक यही काम करती रही तो उनके मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उन्होंने बड़े प्रेम गिलहरी को अपने पास बुलाया और उससे पूछा, “तुम क्या कर रही हो, इससे तुम्हें क्या लाभ है?”

गिलहरी हाथ जोड़कर बोली, “हे महाराज आप एक पुण्य कार्य के लिए तथा पापी को दंड देने के लिए सागर पर पुल बना रहे हैं। आपके सभी सेवक इस कार्य में जी-जान से जुटे हुए हैं। मैं एक तुच्छ जीव हूँ। मैं भी आपके इस पुण्य कार्य में हाथ बँटाना चाहती थी।

मैंने बहुत सोचा, तब मेरे मन में एक विचार आया कि मैं छोटी हूँ तो क्या हुआ। मैं भी पुल बनाने के कार्य में आपकी सहायता कर सकती हूँ, थोड़ी ही सही किंतु मैं अपनी इस क्रिया द्वारा कुछ मिट्टी तो समुद्र में डाल ही रही हूँ।”

रामचंद्र जी को गिलहरी की बात सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। वे गिलहरी से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने गिलहरी को बड़े प्रेम से अपने हाथों से उठाकर गोद में बिठाया। वे बोले, “प्रिय गिलहरी तुम धन्य हो । तुम श्रम के महत्त्व को समझती हो। यदि छोटा प्राणी भी लगन से परिश्रम करे तो वह बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है।

” उन्होंने सभी वानरों के समक्ष गिलहरी द्वारा किये जा रहे कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने गिलहरी को शाबाशी देते हुए बड़े प्यार से उसकी पीठ पर अपना हाथ फिराया। कहते हैं कि उसी समय से गिलहरी की पीठ पर भगवान राम की अंगुलियों के निशान पड़ गए, जिन्हें आज भी धारियों के रूप में देखा जा सकता है।

हमें सदैव श्रमशील होना चाहिए चाहे परिस्थितियाँ कितनी ही कठिन क्यों न हों, ह साहस नहीं खोना चाहिए।

दो मित्र – (Two Friends) – Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi

दूर असत् से रहें, बने हम सत्पथ के अनुगामी !

राग-द्वेष से मुक्त रहें हम, जड़-चेतन के स्वामी ॥

किसी गाँव में दो मित्र धर्मबुद्धि और पापबुद्धि रहा करते थे। एक दिन उन्होंने सोचा कि नगर में जाकर धन कमाया जाए क्योंकि धन के बिना व्यक्ति का सम्मान नहीं होता। शुभ मुहूर्त देखकर दोनों मित्र धन कमाने की इच्छा से नगर की ओर चल पड़े ।

नगर पहुँचकर उन्हें एक सेठ के यहाँ नौकरी मिल गई। धर्मबुद्धि अत्यंत योग्य था। अपन बुद्धि-बल से उन्होंने थोड़े ही समय में पर्याप्त धन कमा लिया। धन कमाने के बाद उनके मन अपने गाँव लौटने की इच्छा हुई। अतः एक दिन वे अपने गाँव की ओर चल पड़े।

जैसे ही ग निकट आया तो पापबुद्धि ने कहा, “मित्र हमें सारा धन अपने साथ लेकर गाँव में नहीं जान ! चाहिए। अधिक धन देखकर लोग हमसे माँग सकते हैं, घर में चोरी भी हो सकती है। क्यों न हम थोड़ा-सा धन लेकर गाँव में चलें और शेष धन को यहीं किसी वृक्ष के नीचे दबा दें। आवश्यकत “पड़ने पर हम इस धन को भी ले जाएँगे।”

धर्मबुद्धि अपने मित्र की बात से सहमत हो गया। उन्होंने थोड़ा-थोड़ा धन अपने पास रख लिया और शेष धन एक घड़े में रखकर बरगद के एक पेड़ के नीचे खोदकर दबा दिया

इसके बाद दोनों अपने-अपने घर चले गए। अगले ही दिन पापबुद्धि ने पेड़ के नीचे से धन का घड़ा निकाल लिया। उसमें से धन निकालकर अपने पास रख दिया और खाली घड़े में पत्थर भरकर वहीं दबा दिया। एक-दो दिन बाद धर्मबुद्धि ने पापबुद्धि से कहा, “आओ मित्र, वृक्ष के नीचे से वह धन निकाल लाएँ। मुझे कुछ

धन की आवश्यकता है।”

पापबुद्धि उसके साथ चल दिया। जब धर्मबुद्धि ने पेड़ के नीचे से पड़े को खोदकर निकाला तो देखा कि घड़े में धन की जगह पत्थर भरे हुए हैं। यह देखकर पापबुद्धि सिर पीट-पीटकर रोने लगा, “यह तूने क्या किया, धर्मबुद्धि? सारा धन चुरा लिया। मुझे मेरे हिस्से का धन दे दे, नहीं तो मैं न्यायालय में जाऊँगा।”

धर्मबुद्धि समझ गया कि उसे ठग लिया गया है। उसने कहा, “धन मैंने नहीं चुराया है पापबुद्धि ! तू चोर है। मैं नहीं।”

दो मित्र - (Two Friends) - Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi
दो मित्र – (Two Friends)

लड़ते-झगड़ते दोनों न्यायालय पहुँचे । न्यायाधीश ने सारा मामला ध्यानपूर्वक सुनने के बाद

पूछा, “तुम्हारा कोई गवाह भी है ?” पापबुद्धि तुरंत बोल उठा, “हाँ श्रीमान् मेरा गवाह बन देवता है। आप कल वन में चलिए वहाँ वन देवता बताएगा कि चोर कौन है ?”

रात को पापबुद्धि ने अपने वृद्ध पिता को धन निकालने की सारी बात बताकर कहा, “जंगल में बरगद का वृक्ष है। आप उसकी खोखर में बैठ जाना। जब कोई पूछे कि चोर कौन है तो कहना -” धर्मबुद्धि चोर है।” वह रात में ही अपने पिता को पेड़ की खोखर में बैठा आया।

दूसरे दिन सवेरे ही धर्मबुद्धि, पापबुद्धि, न्यायाधीश और कुछ अन्य कर्मचारी जंगल में बरगद के पेड़ के पास पहुंचे, जहाँ धन गड़ा था। न्यायाधीश ने पापबुद्धि से कहा, “वन देवता से पूछो कि चोर कौन है ?”

पापबुद्धि ने दोनों हाथ जोड़कर कहा, “हे वन देवता ! यताओं, हम दोनों में से किसने धन चुराया है ?”

पेड़ की खोखर के भीतर से आवाज आई, “धन धर्मबुद्धि ने चुराया है। धर्मबुद्धि चोर है।

धर्मबुद्धि यह सुनकर कुछ सोचने लगा । उसने आसपास से घास-फूँस इकट्ठा कर उसे पेड़ के खोखर में रखा तथा उसमें आग लगा दी। थोड़ी ही देर में आग खोखर के अन्दर पहुँच गई। खोखर के भीतर बैठा हुआ पापबुद्धि का पिता चिल्लाया, “बचाओ, मुझे बचाओ । कोई मुझे इस खोखर से बाहर निकालो। मैं जल रहा हूँ।”

बड़ी कठिनाई से धर्मबुद्धि ने उसे आग से बाहर निकाला। उसका आधे से अधिक शरीर जल चुका था। मरने से पहले उसने न्यायाधीश को पूरी कथा सुनाई और कहा कि चोरी पापबुद्धि ने की है। न्यायाधीश ने पापबुद्धि को चोर ठहराया। उसे चोरी के आरोप में जेल भिजवा दिया।

धर्मबुद्धि को अपना धन वापस मिल गया।

हमें सदैव सत्य मार्ग का ही अनुसरण करना चाहिए। सत्य ही ईश्वर है। विजय सदा सत्य की ही होती है, असत्य की नहीं।

बड़ों की बातें – (Elder’s Talks) – Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi

एक नगर में एक पहलवान रहता था। उसका नाम जीसुख था। वह बहुत हष्ट-पुष्ट था। दूर-दूर तक उसकी जोड़ का पहलवान नहीं था। वह अनेक कुश्तियाँ जीत चुका था । उसने बहुत से शिष्य बना रखे थे। उनसे जो भेंट मिलती थी, उससे जीसुख की आजीविका चलती थी परन्तु कुछ समय बाद सभी शिष्य भाग गए।

अब तो जीसुख की आय के साधन बंद हो गए। भूख मरने की नौबत आ गई। उसने सोचा कि परदेश में जाकर रोजगार करना चाहिए।

जीसुख का पिता मनसुख बहुत बुद्धिमान था। वह दुनिया की ऊँच-नीच को अच्छी तरह जानता था। जीसुख अपने पिता से आज्ञा लेने के लिए गया। तब पिता ने उससे कहा- “बेटा, यह पागलपन अपने दिमाग से निकाल दो। जब तुम यहाँ कुछ काम नहीं कर सकते तो बाहर जाकर कौन-से पहाड़ तोड़ोगे ?”

जीसुख बोला “पिताजी! यात्रा करने से बहुत से लाभ होते हैं। तरह-तरह के लोगों से मिलना होता है। विद्वानों ने कहा है कि अपना घर छोड़ने के बाद ही आदमी धनी बनता है।”

पिता ने कहा- “तुम्हारी बात ठीक हो सकती है। लेकिन यात्रा से लाभ उन लोगों को होते हैं जो व्यापारी, विद्वान, गायक और कारीगर होते हैं। बेटा ! तुम्हारे पास चारों में से एक भी गुण नहीं हैं, तुम्हें तो बस अपने बल का घमंड है। लेकिन सब जगह बल प्रयोग से सफलता नहीं मिलती है। यदि तुम बिना मौके जोर दिखाने की कोशिश करोगे तो मुसीबत में भी पड़ सकते हो।”

जीसुख ने जवाब दिया “पिताजी इस समय मेरे शरीर में बल है। यदि चाहूँ तो दहाड़

! दहाड़त हुए शेर को भी मार गिराऊँ। फिर मैं परदेश में जाकर क्यों नहीं कमा सकता ?” पिता बोले- “यदि तुमने ठान ही ली है जाने की, तो मैं तुम्हें कैसे रोक सकता हूँ।”

जीसुख ने बिस्तर बाँधा और परदेश की ओर चल दिया। उस जमाने में लोग पैदल यात्रा करते थे। चलते-चलते जीसुख एक नदी के किनारे पहुँचा वहाँ एक नाव किनारे पर खड़ी थी। कुछ लोग पैसे दे देकर नाव में बैठ रहे थे।

जीसुख ने कहा ” अरे भाई मल्लाह ! मेरे पास इस समय देने के लिए कुछ नहीं है। तुम

मुझे नाव में बैठा लो । यदि ईश्वर ने मेरी सुन ली तो मैं लौटते वक्त तुम्हारा किराया चुका दूँगा।” मल्लाह ने जीसुख पहलवान की बात सुनी तो वह ठहाका लगाकर हँसा ।

फिर बोला “यदि मैं तुम जैसे मुफ्तखोरों को नाव पर बिठाता रहूँगा तो अपने बच्चों को क्या खिलाऊँगा ? पहलवान साहब! अपनी ताकत के भरोसे मत रहो। यह ताकत तुम्हें नदी पार नहीं करा सकती ।” इतना कहकर मल्लाह ने नाव का लंगर खोल दिया।

जीसुख ने चिल्लाकर कहा “अरे भाई मुझे भी बिठा लो मेरे पास जो कपड़े हैं वह ले

लेना।” मल्लाह ने पहलवान को नाव में बैठा लिया। पहलवान ने बैठते ही मल्लाह को पीटना शुरू कर दिया। यह देखकर दूसरा मल्लाह अपने साथी को बचाने के लिए दौड़ा। जीसुख ने उसकी भी

धुनाई कर दी।

पहले मल्लाह ने कहा- “पहलवान साहब, हम पर दया करो। हमें किराया मत देना ।। “

नाव नदी पर चल दी । लेकिन मल्लाहों के मन में पहलवान के प्रति घृणा पैदा हो गई। वे

उससे बदला लेने की सोचने लगे।

बड़ों की बातें - (Elder's Talks) - Moral Stories In Hindi For Class 10 | Short Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi
बड़ों की बातें – (Elder’s Talks)

नाव धीरे-धीरे तैरती हुई नदी के बीच में पहुँची तो मल्लाहों ने चीखना शुरू कर दिया “नाव खतरे में है। तुममें से यदि कोई साहसी और बलशाली हो तो खंबे पर चढ़ जाए और नाव की रस्सी पकड़ ले वरना यह नाव डूब जाएगी।”

मल्लाहों की चाल काम कर गई। जीसुख पहलवान अपने बल के घमंड में सबकुछ भूल

गया। उसने रस्सा पकड़ा और उछलकर खंभे पर जा बैठा । जीसुख का खंभे पर चढ़ना था कि मल्लाह ने झटका देकर उसके हाथ से रस्सा खींच लिया

और नाव को आगे बढ़ा दिया। जीसुख नाव की तरफ ताकता रह गया। वह दो दिन तक भूखा प्यासा खंभे पर बैठा रहा ।

तीसरे दिन वह नींद में भरकर नदी में गिर पड़ा। वह तैरना नहीं जानता था लेकिन हाथ-पैर मार हुआ वह किसी तरह नदी के किनारे जा लगा।

उसने सत्तू खाकर अपनी भूख शांत की और आगे का मार्ग पकड़ा।

थोड़ी दूर चलने के बाद उसे बड़ी तेज प्यास लगी। इधर-उधर निगाहें दौड़ने पर उसे एक कुआँ दिखाई दिया। वह कुएं के पास आया। कुछ लोग पैसे देकर पानी पी रहे थे। जीसुख पास पैसे कहाँ थे। उसने पानी वाले से कहा “भाई! मुझे भी पानी पिला दो ।”

उस आदमी ने बिना पैसों के पहलवान को पानी नहीं पिलाया। पहलवान को क्रोध अ

गया। वह पानी पिलाने वाले से झगड़ा करने लगा। झगड़ा देखकर उसके बहुत से साथी आ गए।

उन्होंने पहलवान को रुई की तरह धुन दिया। पहलवान बहुत लज्जित हुआ। तभी वहाँ एक आदमी ने कहा- “मुझे तो यह आदमी डाकू जान पड़ता है। चलो, पुलिस को खबर कर दें।” 3. स इतना सुनना था कि पहलवान सिर पर पाँव रखकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ। संयोग से रास्ते

में पहलवान को अपने ही मुहल्ले का एक आदमी मिल गया। उसने पहलवान का हालचाल पूछ तो उसने दुःख भरी कहानी सुनाई।

वह आदमी जीसुख को अपने साथ ले गया। उसने उसे घर तक पहुँचाया

। -घर आकर उसने अपने पिता को सारा हाल सुनाया। फिर पिता के पैरों पर गिरकर बोला “यदि मैं आपकी सीख मान लेता तो मुझे यह मुसीबत नहीं उठानी पड़ती।”

बच्चों घर-परिवार में दादा-दादी तथा माता-पिता सदा शिक्षाप्रद बातें बताते रहते हैं उनकी सीख समय पर बहुत काम आती है। इसलिए उनकी शिक्षाओं का आदर करना चाहिए।

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