जादुई कुकर | Best Magic Story | Bedtime Stories | Hindi Kahani | Moral Stories | Hindi Kahaniyan 2022

Best Short Moral Stories In Hindi For Class 8

Short Moral Stories In Hindi For Class 8

  • चोर पकड़े गए [Thieves were Caught]
  • ऐ भाई! ज़रा देख के चलो [O Brother! Walk Carefully]
  • दास और शेर ( The Slave And Lion )
  • बाबा जी का बक्सा [ The Box Of Baba Ji ]

1. दास और शेर ( The Slave And Lion )

Short Moral Stories In Hindi For Class 8 -यह कहानी एक दास की है, जिसका नाम एंड्रोक्लीज था। उसे उसके मालिक ने बाजार से खरीदा था। मालिक उसके साथ पशुओं जैसा व्यवहार करता था और उसे भरपेट भोजन भी नहीं देता था। कभी-कभी तो खाना देने के बदले मालिक उसे कोड़े से भी मारता था!

एक दिन मौका पाकर एंड्रोक्लीज मालिक के घर से भाग गया। पकड़े जाने के डर से वह रातभर भागता रहा। सुबह होते होते वह एक जंगल में पहुँच चुका था। जंगल में उसे एक पहाड़ की खोह दिखाई दी। वह बिना कुछ सोचे उसमें प्रवेश कर गया।

रातभर भागने के कारण वह बहुत थक गया था. इसी कारण लेटते ही उसे नींद आ गई। अचानक एक देश आवाज सुनकर यह जाग गया। उसने देखा कि एक विशालकाय शेर थोड़ी ही दूरी पर जोर-जोर से दहाड़ रहा है। इतना भयंकर दृश्य देखकर उसके होश उड़ गए और मारे घबराहट के वह काँपने लगा।

शेर पहाड़ की खोह के मुँह पर ही खड़ा था, इसलिए एंड्रोक्लीज वहाँ से भाग भी नहीं सकता था। लाचार होकर वह शेर के आक्रमण की प्रतीक्षा करने लगा, लेकिन शेर ने एंड्रोक्लीज को देखकर भी उस पर हमला नहीं किया। वह तो पहाड़ की खोह के बाहर ही बैठकर कराहने लगा और अपने दाएँ पंजे को उठा-उठाकर चाटने लगा।

कुछ देर तो एंड्रोक्लीज शेर को देखता रहा, परंतु थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुआ कि शेर उस पर हमला नहीं करना चाहता, बल्कि उसकी मदद पाना चाहता है।

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एंड्रोक्लीज साहस करके शेर के पास पहुँचा। उसे देखकर शेर ने अपना दायाँ पंजा उठा दिया। एंड्रोक्लीज ने देखा कि उसमें एक बड़ा-सा काँटा चुभा था, जिसके कारण पंजे से खून बह रहा था। उसने शेर के पंजे से काँटा खींचकर बाहर निकाल दिया। इसके बाद उसने शेर के पंजे को सहलाना शुरू कर दिया।

थोड़ी ही देर में उसके पंजे से खून का निकलना बंद हो गया। शेर एंड्रोक्लीज के इस व्यवहार से बहुत प्रभावित हुआ और उसका पालतू बनकर उसके साथ मित्र जैसा व्यवहार करने लगा। अब दोनों साथ-साथ जंगल में घूमते, शिकार ए करते और उसी पहाड़ की खोह में एक साथ सोते। इसी तरह दो वर्ष बीत गए।

एक दिन जंगल में घूम रहे कुछ लोगों ने एंड्रोक्लीज को पहचान लिया और यह खबर उसके मालिक को दे दी। मालिक ने बादशाह से प्रार्थना की और बादशाह ने सिपाहियों से एंड्रोक्लीज को पकड़वाकर जेल में बंद करवा दिया।

एंड्रोक्लीज को भागने के अपराध में शेर से लड़ाई करने की सजा दी गई। सजा के दिन एक भूखे व खूंखा शेर को पिंजरे में बंद कर दिया गया। लड़ाई देखने वालों की भीड़ बहुत ज्यादा हो गई थी। थोड़ी ही देर में एंड्रोक्लीज को भी उस भूखे शेर के सामने डाल दिया गया।

एंड्रोक्लीज को शेर के सामने जैसे ही डाला गया, वह एंड्रोक्लीज की ओर झपटा। अपने सामने शेर के रूप में साक्षात मृत्यु को देखकर एंड्रोक्लीज ने आँखें बंद कर लीं. लेकिन दहाड़ते हुए शेर ने एकाएक अपनी दहाड़ बंद कर दी और एंड्रोक्लीज के पैरों पर लोटकर उसे चाटना शुरू कर दिया।

एंड्रोक्लीज ने अपनी आँखें खोलीं। आँखें खोलते ही वह पहचान गया कि यह तो वहीं शेर है, जिसके साथ उसने जंगल में दो वर्ष बिताए थे। उसने शेर के सिर पर प्यार से हाथ फेरा. तो शेर की आँखों से आँसू बहने लगे।

आसपास बैठे सभी लोग यह दृश्य। देखकर हैरान रह गए। बादशाह भी शेर और मनुष्य की ऐसी मित्रता देखकर बहुत प्रभावित हुआ। बादशाह ने एंड्रोक्लीज को अपने पास बुलाकर उसकी और शेर की मित्रता के बारे में पूछा। एंड्रोक्लीज की कहानी सुनकर बादशाह बहुत खुश हुआ और उसने शेर के साथ उसे भी हमेशा के लिए स्वतंत्र कर दिया।

बच्चों को समझाएँ कि प्रेम के बल पर हम किसी को भी अपना मित्र बना सकते हैं. साथ-साथ उन्हें स से सबंधित जानकारी दें। इसके अतिरिक्त उन्हें मनुष्य और पशु से कुछ सुनाएँ

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2. बाबा जी का बक्सा [ The Box Of Baba Ji ]

जेम्स के बाबा जी एक बड़ा बक्सा लाते हैं। बक्से के चारों ओर मोटा रंग-बिरंगा कागज़ लिपटा हुआ है। वे बक्सा लाकर बड़ी मेज पर रखते हैं और बच्चों से पूछते हैं।) बाबा जी अच्छा, बच्चो! बताओ इस बक्से में क्या है?

सोनिया: ढेर सारे खिलौने।

जेम्स: ढेर सारी मिठाइयाँ

बाबा जी: नहीं दोनों गलत हैं।

जेम्स : लगता है, आप बक्से में दाल चावल, मिर्च-मसाले भरकर लाए हैं। : अरे, नहीं। यह तो तुम्हारी पसंद की

बाबा जी: कोई चीज है।

सोनिया: (सोचते हुए) क्या चीज़ हो सकती है?

जेम्स : क्या आप कहानियों की बहुत-सी पुस्तकें तो इसमें भरकर नहीं ले आए हैं? बाबा जी नहीं बेटे ! इसमें तो खेलने खिलाने वाला कुछ है। लेकिन यह इतना हठी है कि अपने-आप खेलता नहीं है। इसका जरा-सा कान दबा दो तुरंत तुम्हें खेल दिखा देगा।

जेम्स: तो बाबा जी क्या इसमें कोई जादूगर छिपा बैठा है?

बाबा जी: नहीं, नहीं। लोग कहते हैं, यह चलता है, पर यह चलता बिलकुल नहीं है। एक जगह बैठा रहता है। बैठे-बैठे चलता है।

जेम्स: (आश्चर्य से चलता है, फिर भी एक जगह बैठा रहता है? बड़ी अजीब बात है! जो चीज चलेगी, वह एक जगह भला कैसे रह सकती है?

बाबा जी: हाँ, यही तो बात है! अपने मस्तिष्क पर जोर दो नहीं बता पाओगे, तो बुद्ध

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बच्चे कहलाओगे।

सोनिया: अच्छा बाबा जी, बताइए इसका रंग कैसा है?

बाबा जी: रंग ? रंग है गोरा-काला।

सोनिया: बाबा जी, भला ऐसा कैसे हो सकता है? रंग या तो काला होगा या गोरा

बाबा जी: लो, और पता बताते हैं। यह कभी एक दिन भी विद्यालय में पढ़ने नहीं गया है। पर यह बड़ा ज्ञानी है। लाखों, करोड़ों का हिसाब कुछ सेकंड में लगा देता है। आज इसका सब ओर बोल-बाला है। विद्यालय में, दफ्तर में रेलवे स्टेशन पर यह तुम्हारी पढ़ाई में भी सहायक है और खेल में भी सबकी बात छापकर बताता है।”

जेम्स: समझ गया, बाबा जी, समझ गया। इसका नाम ‘क’ से शुरू

शाबाश बच्चो! यह कंप्यूटर है।

बाबा जी: ठीक।

जेम्स : इसके नाम का अंतिम अक्षर है

बाबा जी : बिलकुल ठीक। अब इसका नाम

ताओ।

जेम्स : (खुश होकर) कंप्यू….

सोनिया (खुशी में उछलकर) टर!

बाबा जी: शाबाश बच्चो यह कंप्यूटर है। आखिर तुमने इसे पहचान ही लिया। यह तुम्हारे काम आएगा। पर इसे छेड़कर खराब मत कर देना।

पाठ एक पहली पर आधारित संवाद है। बच्चों को ऐसी अन्य पहेलियाँ भी बुझाएँ। साथ ही पहेलियों को रचना करने में उसकी सहायता करें।

3. ऐ भाई! ज़रा देख के चलो [O Brother! Walk Carefully]

वह देखो! आओ, तुम्हें एक तमाशा दिखाऊँ! क्या करोगे? तुम गौरव को फिर गिराने की सोच रहे हो, ना हाँ! उस दिन कितना मज़ा किया था. हमने! वह पास आ रहा है। ( भागकर जाता है। एक पत्थर उठाकर ठीक रास्ते के बीचोंबीच रख देता है।)

गौरव (गाता हुआ)

बढ़े चलो, बढ़े चलो है राह है आसान

जल्दी ही पहुँच जाऊँगा रुकना न मेरा….

(धड़ाम से गिर जाता है।)

(ताली बजाते हुए) राघव: गिर गया! गिर गया!

(गौरव उठने की कोशिश करता है।)

(हँसते, ताली बजाते हुए) उठ भाई, उठ!

सभी बच्चे : दिखता नहीं तो सड़क पर क्यों चलता है? शर्म आनी चाहिए, तुम्हें। एक तो उसे गिरा दिया, दूसरे हँसी उड़ा रहे हो। राघव, मैं तुम्हारी माँ को बताऊँगा

सुखमीत: चलो गौरव, तुम्हें घर छोड़ दूँ। तुम्हें चोट लगी है। कुछ दवा लगानी होगी। लो, छड़ी पकड़ लो और मेरा हाथ भी। (जाते हैं।) (उधर देखते हुए) गए! चलो, खेलें! (खेलते हैं।) अरे! उधर आसमान को तो देखो, कैसा लाल-काला दिखाई दे रहा है।

लगता है, बादल आ रहे हैं।

असलम: नहीं-नहीं! यह काली आँधी है। भागो, घर भागो ।

राघव: भागते हैं। तेज हवा का झोंका और फिर आंधी आ जाती है।) मेरा घर दूर है। मैं कैसे पहुँचूँगा दौड़ते हुए ओह ओह! यह क्या? अरे, मेरी आँखों में कितनी मिट्टी घुस गई है। कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा।

(दरवाजे पर खड़े हैं) राघव ! बहुत तेज आँधी आ रही है।

गौरव और सुखमीत इधर आ जाओ।

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राघव नहीं, मैं घर जा रहा हूँ।

(राघव दरवाजा खटखटाता है।)

राघव: माँ-माँ! दरवाजा खोलो!

(दरवाजा खोलते हुए) इतनी देर तक कहाँ थे? आँधी-तूफान का भी

माँ – राघव, ध्यान नहीं।

माँ, मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। मेरी आँखों में मिट्टी भर गई है। चलो, आँखें धुलवा दूं। (आँखें लगाती हैं।)

अब थोड़ी देर लेट जाओ।

माँ, मेरी आँखों में बहुत दर्द है. ये खुल ही नहीं रही हैं।

राघव- आँधी रुक ही नहीं रही। डॉक्टर चाचा को फोन करती हूँ, आँधी रुकते ही चले आएँ। (फ़ोन करती हैं।)

(डॉक्टर साहब आते हैं।)

मैंने राघव की आँखों में दबा डाल दी है, पट्टी भी लाया हूँ। बाँध देता हूँ।

यह अब आराम करे। (माँ और डॉक्टर चले जाते हैं।)

गौरव का घर पास ही है। क्यों न उससे क्षमा माँग लूँ। मैंने उसके साथ

डॉक्टर- राघव, ठीक नहीं किया।

(चुपके-चुपके घर से बाहर आता है।) राघव: (ठोकर खाकर गिरता है) ओह! एक तो आँखों पर पट्टी….

गौरव: देखकर चलो भाई रुको, रुको! मैं उठाता हूँ। हाँ-हाँ, कहाँ जा रहे थे? ऐसे, अब खड़े हो जाओ। कहीं चोट तो नहीं लगी?

तुमसे क्षमा माँगने आज मेरी आँखों पर पट्टी बंधी है। आज मुझे पता चला… जाने दो। बस कह

राघव – दो, क्षमा कर दिया।

गौरव – मैं सुखमीत को बाहर तक छोड़ने आया था कि तुम्हारी आवाज सुनी। तुम तो मेरे मित्र हो, क्षमा कैसी ! मैं अपनी धुन में गाता हुआ जा रहा था। पत्थर का पता ही नहीं चला। गिर गया। तुम्हारा कोई दोष नहीं। हम दोनों मित्र हैं। (धीमे स्वर में) हाँ मित्र हैं। अब हम मित्र ही रहेंगे।

बच्चों को पहले एकांकी तथा नाटक में अंतर बताएं। फिर यह नाटक पढ़ाएँ तथा बच्चों को समझाएँ कि से आपस में मिल-जुलकर रहें तथा सदा एक-दूसरे को मदद करें।

4. चोर पकड़े गए [Thieves were Caught]

किसी गाँव में बहुत चोरी हुआ करती थी। चोरों के कारण गाँव के लोगों का जीना मुश्किल हो गया था। गाँववाले प्रतिदिन चोरों को पकड़ने की नई-नई तरकीबें बनाते, लेकिन सब धरी की धरी रह जातीं। गाँव के सरपंच- चौधरी साहब भी इस समस्या का समाधान जल्दी करना चाहते थे।

एक रात, चौधरी साहब चारपाई पर लेटने ही वाले थे कि उन्हें कमरे की खिड़की के पास दो-तीन आदमी खड़े दिखाई दिए। उन्होंने कड़ककर पूछा, “कौन है?”

किसी ने उत्तर नहीं दिया। चौधरी साहब समझ गए कि आज चोरों ने मेरा ही घर चुना है। शोर मचाने का मतलब था, चोरों को भगाना और ऐसा करके गाँव से चोरी समाप्त नहीं की जा सकती थी; इसलिए उन्होंने एक तरकीब सोची; तांकि चोरों को पकड़कर गाँव में शांति का परिवेश बनाया जा सके। चौधरी साहब पास की चारपाई पर लेटी पत्नी से बोले, “अजी! सुनती हो? मेरी इच्छा खीर खाने की है। तुम थकी हो, मैं खुद बना लेता हूँ। सुबह-सुबह खाएँगे! “

ऐसी बातें सुनकर चौधरी साहब की पत्नी को पहले तो कुछ हैरानी हुई, पर शीघ्र ही वह समझ गई कि कोई-न-कोई बात जरूर है; नहीं तो चौधरी साहब ऐसी अजीबोगरीब बातें कभी नहीं करते।

चौधरी साहब रसोईघर में जाकर खीर बनाने लगे। तभी उन्हें रसोईघर की खिड़की के पास से कुछ आवारों सुनाई पड़ीं, पर अंधेरा होने के कारण वे किसी को देख नहीं पाए। खीर बनाते-बनाते चौधरी साहब जोर से बोले, “अजी सुनती हो? आजकल चोरी बहुत हो रही है। अपने सारे जेवर रसोईघर में से आओ। मैं उन्हें आटे के बोरे में छिपा दूंगा। उधर चोर अलमारी में माल ढूँढ़ते रह जाएँगे, इधर आटे के बोरे में तुम्हारे जेवर पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे! “

इतना कहकर चौधरी साहब फिर बोले, “लो, बन गई पिस्तेवाली बढ़िया खीर इसे ठंडा होने के लिए रख रहा हूँ. सुबह खाएँगे। तुम्हारे जेवर भी आटे के बोरे में छिपा दिए हैं।

चलो अब सो जाते हैं।”

चौधरी साहब अपने कमरे में गए और कमरे का दरवाजा जोर से बंद कर दिया, जिससे चोरों को लगे कि वे सो गए हैं। फिर वे दरवाजे के एक छोटे से छेद से रसोईघर में होने वाली गतिविधियाँ देखने लगे।

चौधरी साहब टकटकी लगाए दरवाजे के छेद से देख रहे थे, पर उन्हें कोई दिखाई नहीं दे रहा था। एक बार तो चौधरी साहब को भी लगा कि वहम हो गया है, पर लगभग आधे घंटे बाद एक आदमी रसोईघर की खिड़की से अंदर आया; उसके पीछे-पीछे दो आदमी और आ गए।

तभी उनमें से एक बोला, “आज तो चौधरी की सारी होशियारी धरी की धरी रह जाएगी। आटे के बोरे में जेवर छिपाकर बहुत चालाक बनता है। हमें ऐसी क्या जरूरत है। कि चौधरी के कमरे में जाकर अलमारी तोड़ें? आटे का बोरा जिंदाबाद”

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इस पर दूसरा आदमी बोला, “अरे, लगता है, तूने चौधरी की पूरी बात नहीं सुनी। आटे का बोरा बाद में देखेंगे, पहले बोलो, मीठी खीर ज़िंदाबाद! अरे भाई, क्या तुमने नहीं

सुना? सबसे पहले पेट पूजा. उसके बाद काम दूजा!”

चौधरी साहब अब दरवाजे के छेद से झाँक झाँककर उनकी हरकतों को देख रहे थे। और मुस्कुरा रहे थे, क्योंकि इन चोरों को पकड़ने के लिए चौधरी साहब ने जो योजना बनाई थी, वह अब लगभग पूरी हो रही थी।

चोर मजे से चौधरी साहब की बनाई हुई खीर खा रहे थे और उसकी तारीफ़ कर रहे थे, किंतु थोड़ी ही देर बाद उनकी आवाजों का आना बंद हो गया। चौधरी साहब ने छेद से झाँककर देखा, तो तीनों चोर गहरी नींद में सो रहे थे।

चौधरी साहब जानते थे कि अब क्या करना है। उन्होंने तुरंत फोन करके पुलिस को इस घटना की सूचना दी। लगभग दस-पंद्रह मिनट में पुलिस चौधरी साहब के घर पहुँच गई और रसोईघर में सोते चोरों को गिरफ्तार कर लिया गया।

पुलिस अफसर ने चौधरी साहब से पूछा, “चौधरी साहब, आपने इन्हें ऐसा क्या खिला दिया कि ये सब मजे से सोने लगे?” अफसर की बात सुनकर चौधरी साहब जोर से बोले, “खीर में नींद की गोलियाँ जिंदाबाद! “

बच्चों को समझाएँ कि हमें प्रत्येक समस्या का ठंडे दिमाग से समाधान निकालना चाहिए क्योंकि जल्दबाजी में किए गए कार्यों के परिणाम सही नहीं होते।

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