Best 5 Short motivational story in Hindi

1. राई का पहाड़

Best 5 Short motivational story in Hindi – बहुत पुरानी बात है। एक बेल के पेड़ के नीचे एक खरगोश रहता था। एक दिन वह बेल के पेड़ के नीचे लेटा लेटा सोच रहा था कि अगर यह धरती फट जाए तो क्या होगा ! धम्म! तभी ज़ोर से कुछ गिरने की आवाज़ आई खरगोश ने सोचा कि धरती सचमुच फट गई। वह एकदम उठा और छलाँग मारकर ज़ोर से भागा। भागते-भागते रास्ते में उसे एक दूसरा खरगोश मिला। उसने पूछा, “खरगोश भाई! क्या बात है? तेज़ी से कहाँ भागे जा रहे हो?”

पहले खरगोश ने ज़रा रुककर कहा, “देखते क्या हो, धरती फट गई है! ” दूसरे खरगोश को कुछ भी समझ नहीं आया। वह भी डर के मारे उसके पीछे-पीछे भागने लगा। बस, दोनों भागने लगे।

कुछ दूर जाकर उन्हें और खरगोश मिले। डर के मारे वे भी भागने लगे। आगे जाकर एक हिरन मिला। वह भी उनके साथ भागने लगा। रास्ते में सूअर, बारहसिंघा, भैंसा, गाय, गैंडा, भालू और हाथी मिले।

सब-के-सब उनके पीछे भागने लगे। इस तरह थोड़ी ही देर में जंगल के पशुओं की एक लंबी कतार बन गई। जंगल के इतने सारे पशुओं को एक साथ भागते देख शेर हैरान होकर,

दहाड़ा, ” अरे भाई! तुम सब क्यों भाग रहे हो?”

“महाराज! धरती फट गई है।” सब एक साथ बोले । शेर ने तुरंत कहा, “आप में से किसी ने धरती को फटते हुए देखा ?” एक कोने से आवाज़ आई, “महाराज!

पीछे-पीछे क्यों भागा ?

हाथी जानता है।” हाथी ने गैंडे का नाम लिया। गैंडे ने भैंसे का भैंसे ने बारहसिंघे का, बारहसिंघे ने सूअर का सूअर ने हिरन का और हिरन ने खरगोशों का नाम लिया।

राई का पहाड़ - Best 5 Short motivational story in Hindi
Khargosh in राई का पहाड़

पहले खरगोश ने झटपट कहा, “महाराज! मैं जंगल में एक बेल के पेड़ के नीचे लेटा हुआ था। इतने में धम्म की धरती फटने जैसी आवाज़ हुई। मैं उठकर भागा और ये सब एक के बाद एक मेरे पीछे भागे।”

शेर ने सभी पशुओं को शांत होने के लिए कहा और खरगोश की ओर मुड़ा, “मुझे उस स्थान पर ले चलो जहाँ वह आवाज़ हुई थी।”

सभी शेर और खरगोश के साथ वहाँ पहुँचे। खरगोश डर से काँप रहा था कि पता नहीं उस जगह पर क्या हाल हुआ होगा । हिम्मत करके खरगोश ने धीरे से उस बेल के पेड़ की तरफ़ इशारा किया। शेर ने (क) शेर ने खरगोश को कहाँ ले चलने के लिए कहा?

झुककर उस जगह के चारों ओर नज़र घुमाई और ज़ोर से हँस पड़ा। हैरान खरगोश ने मुड़कर वहाँ देखा तो वहाँ एक बड़ा-सा पका हुआ बेल पड़ा था। बस, फिर क्या था, उसकी समझ में सारी बात आ गई। हँसते हुए बोला, “क्या खरगोश भाई ! बेल गिरने से भी भला धरती फटती है? तुमने राई का पहाड़ ही बना दिया।” हँसते-हँसते सबके पेट दुखने लगे।

2. तरकारी एकता जिंदाबाद

Best 5 Short motivational story in Hindi – ( एक दुकान पर तरह-तरह की सब्ज़ी तरकारियाँ रखी हुई थीं। वैसे तो सभी प्यार से रहती थीं परंतु एक दिन उनमें नोंक-झोंक होने लगी ।) भिंडी : मैं कोमल और नाजुक हूँ। मेरी सब्ज़ी बच्चे, जवान, बूढ़े सभी पसंद करते हैं।

पर करेले भाई, तुम तो कड़वे हो। तुम क्यों इतना अकड़े रहते हो?

करेला : माना कि तुम नाजुक हो और मैं खुरदुरा व कड़वा हूँ, परंतु गुणों में मेरा

कोई ‘मुकाबला नहीं है! चीनी के रोगी मेरा रस पीते हैं और सब्ज़ी खाते हैं। अरबी : भाई, मेरी उपेक्षा क्यों कर रहे हो! मैं ज़मीन के नीचे पैदा होती हूँ और गाँठदार हूँ। लोग मुझे भी खूब पसंद करते हैं। चाहे भूनकर खाओ या रसदार, मैं स्वादिष्ट ही लगती हूँ। (बैंगन से न रहा गया। वह बोल उठा।)

बैंगन : तुमने अपनी-अपनी कह ली। अब मेरी सुनो। मेरी दो प्रजातियाँ हैं। लंबी और गोल | मैं हर मौसम में उपलब्ध हूँ और सबकी पसंद हूँ। (पालक अपने हरेपन पर इतरा रहा था। वह कहाँ पीछे रहता।)

पालक: तुम लोग अपने पर इतना क्यों इतरा रहे हो? क्या मेरे गुणों को नहीं जानते? कमज़ोरी दूर करने में मेरा कोई जवाब नहीं है। मुझमें सोहा तथा अन्य विटामिन भरपूर मात्रा में है दुनिया में ऐसा कौन है, जिसने मेरे गुणों की तारीफ़ न की हो?

मटर और मैं हूँ सदाबहार मज़ेदार मटर मटर और पनीर की सब्ज़ी किसने न खाई होगी? आलू और मटर की सब्ज़ी भी शानदार होती है। कुछ लोग मुझे चावल में बनाते हैं, कुछ लोग कचौड़ी भरकर बनाते है तो कुछ लोग सलाद आदि के साथ कच्चा ही खा लेते हैं क्या तुममें से ऐसा कोई है जो मेरी बराबरी कर सके ?

तोरी भाई, मटर ने अपनी तारीफ़ों के पुल बाँध दिए। पर डॉक्टरों की पसंद मैं ही है। डॉक्टर मरीजों को तोरी की सब्जी खाने को सलाह देते हैं। जानते हो क्यों? क्योंकि मैं विटामिनों की खान हूँ और जल्दी से हज़म हो जाती हूँ।

(प्याज़ भी तोरी की बगल की टोकरी में थी। अब तक उसका धैर्य टूट चुका था)

प्याज़ अरी तोरी बहन, सब लोगों के बीच में केवल अपनी ही कहते जाना कहाँ की बुद्धिमानी है। प्याज का नाम तो हर एक की जुबान पर है। कोई भी सब्ज़ी बनाओ, मेरी ज़रूरत पड़ती ही है।

गरमियों में मैं लोगों को लू से बचाती हूँ। मैं तो सलाद की शान हूँ।

तरकारी एकता जिंदाबाद
Tarkari in तरकारी एकता जिंदाबाद

गोभी : भाई प्याज़, तुमने अपने सारे गुण गिना दिए। पर अपना दोष छिपा लिया। जब भी कोई तुम्हें इस्तेमाल करने के लिए काटता है, तो उसे रुलाकर ही छोड़ती हो पर छोड़ो, मुझे तुमसे क्या काम! अब मैं अपनी बात करता हूँ। मैं हूँ गोभी। मेरे तीन मुख्य रूप हैं – फूलगोभी, पत्तागोभी और गाँठ गोभी।

सब्ज़ी के रूप में मेरे स्वाद के क्या कहने! आलू गोभी की सब्ज़ी का नाम लेते ही बहुतों के मुँह में पानी आने लगता है। (लौकी बहुत देर से उनकी बातें सुन रही थी। वह भी चहकी।)

लौकी : भाइयों और बहनों! अब मेरा परिचय सुनो। मैं हूँ सदाबहार लौकी । गोल और लंबे दोनों आकार में, मैं तुम सबसे बड़ी भी हूँ। जिन्हें स्वस्थ रहना है, वे मुझे अवश्य खाते हैं।

(मिर्ची वहीं एक कोने में पड़ी थी। सबकी तारीफ़ सुनते-सुनते थक गई थी।)

Best 5 Short motivational story in Hindi – मिर्ची अब चुप भी हो जाओ मोटूरामा में भले ही छोटी और पतली हूँ, पर सख्ती कोई भी बनाओ में ज़रूर इलती हूँ। पर मेरा इस्तेमाल लोग सोच-समझकर

करते हैं। सब्ती में दो की जगह चार डल गई, तो लेने के देने पड़ सकते हैं। जो मुझे ज़्यादा खाता सो पछताता और जो नहीं खाता वह भी पछताता। (जब सब सब्ज़ियों ने अपनी-अपनी कह ली तो आलू अपनी जगह पर ही बैठे-बैठे मुस्कुराया ।)

आलू : तुमने अच्छा चुटकुला सुनाया मिर्ची बहन, पर तुम सब यह भूल गए कि किसी भी घर में एक ही तरह की सब्ज़ी नहीं बनती। लोग स्वाद और ज़रूरत के अनुसार बदल-बदल कर हर सब्ज़ी बनाते हैं। हर सब्ज़ी के अपने-अपने गुण हैं।

न कोई छोटा है और न कोई बड़ा, इसलिए आपस में प्रेम से रहो। यदि किसी ने हमें लड़ते देख लिया हो तो समझेंगे कि इंसानों की तरह इनमें भी एकता नहीं है। इसलिए सब मिलकर बोलो

सब्ज़ी एकता जिंदाबाद।

सब्ज़ी एकता जिंदाबाद।। (सभी गाते हैं।)

अंत में मैं इतना ही कहता हूँ कि रसोईघर में आलू की ज़रूरत हमेशा रहती है। बहुत से लोग मुझे सब्ज़ियों का राजा कहते हैं। पर मुझे अपने ऊपर घमंड नहीं है। मैं चाहता हूँ कि जो भी हमारी सब्ज़ियाँ खाएँ, वे स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। (सभी सब्ज़ियों को आलू की बात पसंद आई। वे आलू की तरफ़ प्रसन्नता भरी नज़रों से देखने लगे।)

3. नई रोशनी

“एडी, कहाँ हो तुम?” माँ ने आवाज़ दी, “नाश्ता तैयार है।” एडीसन ने जवाब दिया, “माँ मैं अख़बार बेचने जा रहा हूँ। ट्रेन का समय हो गया है। नाश्ता लौटकर कर लूँगा।” “बहुत ही ज़िद्दी लड़का है।” माँ ने लंबी साँस ली और घर के दूसरे कामों में जुट गईं। एडीसन बगल में अख़बारों का बंडल दबाए रेलवे स्टेशन की तरफ़ भागा।

स्टेशन पर ट्रेन आ चुकी थी। एडीसन ट्रेन के एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे तक दौड़-दौड़कर अख़बार बेचने लगा।

” आज तो तुम्हारे सारे अखबार बिक गए।” एक बुजुर्ग ने एडीसन की हौसला अफ़ज़ाई करते हुए कहा, “तुम बड़े मेहनती लड़के हो। देखना, एक दिन तुम बहुत तरक्की करोगे। “

“शुक्रिया।” एडीसन ने जवाब

दिया, “सर, मैं आपकी बात का ध्यान रखूँगा।”

घर लौटकर उसने रकम जोड़ी। “यह तो बहुत कम है।” एडीसन ने निराश होकर खुद से कहा, “ऐसे काम नहीं चलेगा।” “एडी।” माँ उसके पास आई, “तुम बहुत सोचते हो। तुम्हें अपनी सेहत का भी ध्यान रखना चाहिए। “

“क्या करूँ माँ?” एडीसन बोला, “बड़ा आदमी बनने के लिए बहुत काम जो करना पड़ता है।”

“ठीक है।” माँ ने उसे समझाया, “अब देखो, अपना दो कमरों का छोटा-सा घर है, जिसमें एक कमरे में तुमने अपनी विज्ञान की प्रयोगशाला ही बना रखी है।”

“माँ!” अचानक एडीसन की आँखें चमक उठीं, ” क्यों न मैं एक पुराना छापाखाना खरीद लूँ और अपना अख़बार छापने लगूं। फिर खूब पैसा आएगा और हम गरीब नहीं रहेंगे।”

“यह में नहीं जानती। लेकिन अब इस घर में तुम्हारी कोई तिकड़म नहीं चलेगी।” “मैं सर जेम्स से बात करूंगा। वह मेरी मदद जरूर करेंगे। रेलवे यार्ड में एक बेकार बोगी खड़ी है। मैं उसमें छापाखाना लगा लूँगा । “

अगले दिन एडीसन स्टेशन मास्टर जेम्स से मिला और उन्हें अपने काम के लिए राज़ी कर लिया। रात-दिन की कड़ी मेहनत से उसका काम अच्छा चलने लगा। लेकिन एक दिन जब वह घर पर गहरी नींद में सो रहा था, अचानक बोगी में आग लग गई। समय रहते रेलवे कर्मचारियों ने एडीसन को भारी नुकसान से बचा लिया। लेकिन फिर उसे वह बोगी छापेखाने के इस्तेमाल के लिए नहीं मिली।

नई रोशनी
Thomas edison in नई रोशनी

एडीसन अपने एक दोस्त के घर पर छापाखाना लगाकर काम करने लगा। एक दिन एक रेल दुर्घटना की चपेट में आकर, वह हमेशा के लिए बहरा हो गया। ‘अब क्या होगा?” माँ एडीसन के लिए बहुत चिंतित थीं। “सब ठीक होगा माँ ! देखना मैं अँधेरों को उजालों में बदल दूंगा। “

रिचर्ड एडीसन का मददगार था। एडीसन ने उसके बेटे को ट्रेन से मरने से बचाया था। उसने एडीसन को टेलीग्राफ़ी सिखलाई। जल्दी ही वह टेलीग्राफ़ी में उस्ताद हो गया। अब तक एडीसन युवा हो गया था। माँ चल बसी थीं। एडीसन को एक के बाद एक आविष्कार करने की धुन थी। एडिसन ने नए साल के मौके पर तमाम मेहमानों को एक खुली जगह पर बुलाया। उसने कहा कि वह लोगों को एक चमत्कार दिखाएगा। जब लोगों की उत्सुकता चरम सीमा पर पहुँच गई, तब एडीसन ने कहा, “आज एक

नए युग की शुरुआत होगी।” उसने एक इशारा किया और बिजली के तमाम बल्ब जगमगाने लगे।

” अरे वाह!” लोग खुशी से चीख पड़े, “उजाला… यह तो अद्भुत चमत्कार है।”

यह था उसका सबसे महान आविष्कार। एडीसन ज़रा मुस्कुराया। फिर बोला, अब तुम लोगों को अँधेरे में मोमबत्तियाँ जलाने की ज़रूरत नहीं। “यह बिजली तुम्हारे जीवन को रौशन करेगी।

4. मक्खी और संदेश

एक बार की बात है। पड़ोस के गाँव के सबसे बड़ा साहूकार गोपाल भाँड़ घर से सुबह-सुबह निकले थे। चलते-चलते दोपहर हो गई। मंज़िल अभी काफी दूर थी। भोजन का समय हो जाने से भूख ज़ोर से सताने लगी। खाली पेट चलना कठिन हो रहा था। संयोगवश इतने बड़े साहूकार की उस दिन जेब भी खाली थी।

इसलिए कहीं से कुछ खरीद कर भी नहीं खा सकते थे। उस इलाके में वे एकदम नए थे। इसलिए कहीं से कुछ पैसे या खाना मिलने की भी उम्मीद नहीं थी। मन ही मन सोच रहे थे कि यदि इस समय कोई मदद कर दे तो उसे वे बाद में आकर पैसे अवश्य ही लौटा देंगे। सोचते-सोचते वे कुछ और आगे बढ़े। सामने एक पेड़ के नीचे हलवाई की एक छोटी-सी दुकान दिखाई दी। दुकान में खाने-पीने के नाम पर पूड़ी-कचौड़ी जैसी कोई वस्तु न थी।

सिर्फ एक थाल में ताज़े बने संदेश सजे हुए थे। भूख के मारे उनकी जान निकली जा रही थी। थाल में रखे संदेश देखकर वे अपने-आपको रोक न सके और दुकान के भीतर घुस गए। उस समय दुकान में एक छोटा-सा लड़का बैठा था। आसपास और कोई नहीं था।

उन्होंने उस लड़के से पूछा, “मुन्ना, तुम्हारे बाबा कहाँ हैं?” लड़के ने उत्तर दिया, “दुकान के पीछे ही हमारा घर है। बाबा इस समय खाना खा रहे हैं। ” यह सुनते ही गोपाल भौंड़ संदेश का थाल हाथ में लेकर खाने लगे। दो-चार संदेश

पेट में जाने के बाद वे लड़के से बोले, “मेरा नाम मक्खी है। मैं रोज़ ही यहाँ से संदेश खाकर जाता हूँ। विश्वास न हो तो जाकर अपने बाबा से पूछ आओ।” और ये फिर से खाने में जुट गए।

लड़का दुकान में ही बैठे-बैठे ऊँची आवाज़ में बोला, “ओ बाबा मक्खी संदेश खा रही है।”

लड़के के पिता ने खाना खाते-खाते ही उत्तर दिया, “खाती है तो खाने दे ! वह तो रोज़ ही खाती है। “

पिता का उत्तर सुनकर लड़का चुप हो गया। गोपाल भाँड़ ने संदेश का पूरा थाल सफाचट कर दिया और चल पड़े। लड़के के पिता ने खाना खाने के बाद कुछ आराम किया। उसके बाद जब वह दुकान में आया तो देखा थाल में एक भी संदेश नहीं था। उसने गुस्से से लड़के से पूछा, “चाल संदेश से भरा हुआ था, सब कहाँ गए?”

लड़के ने डरते-डरते कहा, “मक्खी ने खा लिए। बाबा! मैंने उस समय तुमसे पूछा भी था। तुमने ही कहा कि वह तो रोज़ ही खाती है, खाने दे।” “अरे, यह कैसी मक्खी थी?” पिता ने हैरानी से कहा ।

मक्खी और संदेश
Bee in मक्खी और संदेश

“पंखे से उड़ाई जानेवाली मक्खी नहीं थी। वह तो एक मोटा सा आदमी था। उसका नाम मक्खी था।”

लड़के की बात सुनकर पिता ने अपना सिर पीट लिया। बोला, “हाय राम इतना नुकसान हो गया। संदेश कौन रखा गया?” दूसरे दिन गोपाल भाँड़ उसी रास्ते से लौटे। उस समय भी वही लड़का दुकान पर था।

गोपाल भाँड़ उससे बोले, “सुन मुन्ना! अपने बाबा को बोल, कल वाली मक्खी फिर आई है। “

लड़के ने पिता को तुरंत आवाज़ दी, “बाबा! कल वाली मक्खी आई है।” सुनते ही दुकानदार भागा भागा आया और रुऔंसी आवाज़ में बोला, “बाबू जी, मैंने आपका क्या बिगाड़ा था कि आपने मुझ गरीब का इतना नुकसान कर डाला?”

गोपाल भाँड़ हँसे, “मुझे जानते हो! मेरा नाम गोपाल भाँड़ है। कल मुझे बहुत भूख लगी थी और मेरी जेब खाली थी। इसलिए मैंने बहाना बनाकर तुम्हारी मिठाई संदेश से अपना पेट भरा। आज तुम्हारे ही पैसे चुकाने आया हूँ। बोलो, संदेश कितने के थे?” गोपाल भाँड़ का नाम सुनते ही दुकानदार सहम गया।

वह जानता था कि यह तो पड़ोस के गाँव के सबसे बड़े साहूकार का नाम है। वह हाथ जोड़कर बोला, “महाराज! यदि कल ही बतला देते तो कम से कम सेवा करने का अवसर तो मिलता। आपके दर्शन

हो गए, मेरा सारा पैसा वसूल हो गया। अब मन में कोई दुख नहीं रहा।” “नहीं भाई किसी गरीब का दिल दुखाना गोपाल भाँड़ ने नहीं सीखा। यह लो, अपने संदेश की कीमत।” और दुकानदार के ‘ना-ना’ करने पर भी उन्होंने पैसे उसके गल्ले पर रख दिए।

5. सबसे सस्ता नुस्खा

एक था लड़का उसका नाम था दीपक । प्यार से घर वाले उसे दीपू कहते थे। कक्षा के दोस्त भी उसे दीपू कहकर ही पुकारते थे।

दीपू बहुत दुबला-पतला और कमज़ोर -सा था। हो भी क्यों न! वह खाता भी कुछ ऐसी ही चीजें था – कभी बर्गर, कभी पिज्ज़ा, कभी चाऊमीन। गोलगप्पे और चाट भी उसे बहुत पसंद थे। घर का बना खाना उसे फ़ीका लगता था।

माँ उसे रोटी-सब्जी, दाल, फल और दूध-दही खाने को बहुत कहतीं। पर दीपू किसी की नहीं सुनता था। वह ज़िद करके लंच के लिए चाऊमीन, बर्गर, नूडल्स आदि बनवा लेता था। स्कूल से बाहर खोमचे वालों से खरीदकर अंट-शंट खा लिया करता था।

भला इन सब चीज़ों को खाकर कोई स्वस्थ रह सकता है! दीपू बार-बार बीमार पड़ता रहता था। हर महीने उसे स्कूल से तीन-चार दिन की छुट्टी लेनी पड़ती थीं। जब डॉक्टर दवाई देते थे, तभी वह ठीक हो पाता था। ठीक होने के बाद फिर से वह उल्टा-पुल्टा खाना शुरु कर देता था।

घर वाले दीपू के इस महँगे और नुक्सान पहुँचाने वाले शौक से बड़े परेशान रहते थे। स्कूल में शिक्षिका भी उसे समझाती थीं। पर दीपू के ऊपर किसी बात का कोई असर न होता था।

एक दिन स्कूल में प्रार्थना हो रही थी। सभी बच्चे पंक्तियों में खड़े थे। अभी प्रार्थ चल ही रही थी कि दीपू बेहोश होकर गिर पड़ा। कुछ बच्चे और अध्यापक उसकी ओर दौड़े।

सबसे सस्ता नुस्खा
Students in सबसे सस्ता नुस्खा

दीपू को उठाकर पंखे के नीचे लाया गया। उसे होश में लाने की कोशिश की गई। उसके ऊपर ठंडे पानी के छींटे मारे गए। परंतु दीपू को होश नहीं आया। उसे तुरंत अस्पताल पहुँचाया गया। डॉक्टर ने उसकी जाँच की उसे ग्लुको चढ़ाया गया। करीब दो घंटे के बाद दीपू होश में आया। अगले दो दिनों तक उसे अस्पताल में ही रहना पड़ा।

डॉक्टर ने उसके खून की जाँच की जाँच रिपोर्ट से पता चला कि दीपू के शरीर में खून की, प्रोटीन की तथा अन्य जरूरी चीज़ों की भारी कमी है। उन्होंने दीपू को घर का बना पौष्टिक खाना ही खाने के लिए कहा।

दूध-दही, पनीर, दालें, फल व हरी-ताजी सब्ज़ियाँ खाने की सलाह दी। “बेटा इतने महँगे इलाज से अच्छा था कि तुम आसानी से और सस्ते में मिलने वाली सब्ज़ियाँ खाते तुम्हारा यह हाल तो न होता।” डाक्टर अंकल ने समझाया।

दीपू बहुत कमज़ोर हो चुका था। उससे बिस्तर से उठकर शौच आदि के लिए भी चल पाना मुश्किल हो रहा था। अब उसे समझ आ रहा था कि माँ की बात न मानकर उसने अपना ही नुकसान किया है। उसने माँ से अपनी ज़िद के लिए माफ़ी माँगी।

अब दीपू की समझ में आ गया कि घर का बना पौष्टिक खाना खाना क्यों ज़रूरी है। वह डॉक्टर का कहना मानकर अच्छा खाना खाने लगा। अब वह दूध, पनीर, हरी सब्ज़ियाँ, फल आदि खाने के लिए मना नहीं करता था।

एक बात और हुई। दीपू ने अब बर्गर, चाऊमीन, पिज्जा, गोलगप्पे, चाट-पकौड़ी आदि चीज़ों से तौबा ही कर ली ।

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