Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read

सती गुणसुन्दरी देवी

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – लगभग अठारहवीं शदीके मध्यकी घटना है। गुजरात प्रदेशमें पाटन नामक एक प्राचीन नगरी है। प्राचीन राजाओंकी राजधानी इसी नगरीमें रहती आयी है। उस समय पाटनका राजा करणसिंह बाघेला क्षत्रिय था। वह राजा बड़ा व्यभिचारी था। स्त्री समाजके लिये वह बड़ा भयानक समय था। भय और लोभके द्वारा उसने हजारों स्त्रियोंको धर्मभ्रष्ट कर दिया था।

जिसकी औरतको सुन्दरी सुना, उसे नौकरी दे दी-फिर चाहे वह उस दरजेके लायक हो या न हो। जिस आदमीने उसकी पिशाचवृत्तिमें बाधा पहुँचायी, उसका सिर कटवा दिया। अव्वल नंबरके आवारा, लम्पट, कामी और व्यभिचारी लोगोंसे उसकी मुसाहिबी सभा भर गयी।

करणसिंहके दरबारमें शराब और औरत-ये ही दो मजमून पेश रहते थे। राजकाजका काम दीवान माधवचंद करते थे जो जातिके नागर ब्राह्मण थे। माधवचंदका छोटा भाई केशवचंद सेनापति था। माधवचंदकी स्त्री रूपसुन्दरी और केशवचंदकी स्त्री गुणसुन्दरी दोनों बहिनें थीं।

दोनों भाइयोंमें जैसा प्रेम था, वैसा ही दोनों बहिनोंमें था। रूपसुन्दरीने छोटी बहिन गुणसुन्दरीको घरकी मालकिन बना दिया था, आप दिन-रात पूजन भजनमें मग्न रहती थी। दोनों विदुषी थीं, दोनों नवयुवतियाँ थीं और दोनों पद्मिनी जातिकी सुन्दरी थीं।

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – मुसाहिब कंचनसिंहने मूँछोंपर ताव देकर राजा करणसिंहसे कहा कंचनसिंह – देख आया, आज मैं दोनोंको देख आया । आपके मन्त्री और सेनापति दोनोंकी स्त्रियोंको आज मैं देख आया । करणसिंह – कहाँ देखा? जल

कंचनसिंह – नवरात्रके कारण देवीके मन्दिरमें दर्शन करने और

चढ़ानेके लिये दोनों गयी थीं।

करणसिंह – तुमने कैसे देखा?

कंचनसिंह – अपना रूप बदलकर स्त्रीरूप धारण कर लिया था।

एक घंटेतक साथ रहा।

करणसिंह- दोनोंकी सूरतका हाल बताओ ।

कंचनसिंह- आपने वादा किया था कि जिस समय मैं दोनोंको देख आऊँगा, उस समय इनाम पाऊँगा। पहले इनाम दीजिये, फिर दास्तान सुनिये।

करणसिंह—– जो तुम माँगो, वही दूँगा । कंचनसिंह – लक्खा कबूतरकी जोड़ी दीजिये और अपना सब्जा – घोड़ा दीजिये ।

करणसिंह – जाओ दिया। अब हाल बताओ।

कंचनसिंह- हाल यह है कि यदि उन दोनोंको आपने न पाया तो आपने अपनी जिंदगी बरबाद की और मुफ्तमें बदनामीकी गठरी सिरपर रखी।

करणसिंह- ऐसा?

कंचनसिंह – वैसा रूप पाटनभरमें नहीं है। रूपसुन्दरी गोरी है और गुणसुन्दरी श्यामा है । १९ और १७ सालकी उमर है। रूपसुन्दरीके मुखपर लालित्य है और गुणसुन्दरीके मुखपर छवि है। असल पद्मिनी जातिकी ये ही दो स्त्रियाँ गुजरात देशमें हैं। राजा साहब ! करणसिंह- ऐसा?

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – कंचनसिंह- ऐसा-वैसा मैं जानता नहीं; दोनोंकी बोली सुनी तो मालूम हुआ कि जलतरंग बज रहा है। करणसिंह – क्या उपाय किया जाय जो उन दोनोंकी प्राप्ति हो ?

कंचनसिंह – उपाय सामने उपस्थित है। मन्त्री माधवचंदको हुक्म दीजिये कि ‘राज्यके प्रत्येक गाँवका दौरा करें। प्रतिग्राममें तीन दिनका मुकाम कर मेरी प्यारी जनताका दुःख दूर करें। इस प्रकारसे छः मासमें

चढ़ाने के लिये दोनों गयी थीं। करणसिंह – तुमने कैसे देखा?

कंचनसिंह – अपना रूप बदलकर स्त्रीरूप धारण कर लिया था। एक घंटेतक साथ रहा।

करणसिंह- दोनोंकी सूरतका हाल बताओ। कंचनसिंह – आपने वादा किया था कि जिस समय मैं दोनोंको देख आऊँगा, उस समय इनाम पाऊँगा। पहले इनाम दीजिये, फिर दास्तान

सुनिये।

करणसिंह – जो तुम माँगो, वही दूँगा। कंचनसिंह – लक्खा कबूतरकी जोड़ी दीजिये और अपना सब्जा घोड़ा दीजिये ।

करणसिंह – जाओ, दिया। अब हाल बताओ। कंचनसिंह – हाल यह है कि यदि उन दोनोंको आपने न पाया तो आपने अपनी जिंदगी बरबाद की और मुफ्त में बदनामीकी गठरी सिरपर रखी।

करणसिंह- ऐसा?

कंचनसिंह – वैसा रूप पाटनभरमें नहीं है। रूपसुन्दरी गोरी है और गुणसुन्दरी श्यामा है। १९ और १७ सालकी उमर है। रूपसुन्दरीके मुखपर लालित्य है और गुणसुन्दरीके मुखपर छवि है। असल पद्मिनी जातिकी ये ही दो स्त्रियाँ गुजरात देशमें हैं। राजा साहब !

करणसिंह- ऐसा? कंचनसिंह- ऐसा-वैसा मैं जानता नहीं; दोनोंकी बोली सुनी मालूम हुआ कि जलतरंग बज रहा है।

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – करणसिंह – क्या उपाय किया जाय जो उन दोनोंकी प्राप्ति हो? कंचनसिंह – उपाय सामने उपस्थित है। मन्त्री माधवचंदको हुक्म दीजिये कि ‘राज्यके प्रत्येक गाँवका दौरा करें। प्रतिग्राममें तीन दिनका मुकाम कर मेरी प्यारी जनताका दुःख दूर करें। इस प्रकार छ: मास

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Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read

समूचे राज्यकी तहकीकात करके महलमें वापिस आयें।” करणसिंह—खूब अकल लड़ाई। जनताके दुःखसे मुझे क्या मतलब? जनता जाय जहन्नुममें। मगर बहाना बहुत अच्छा है। मन्त्री कोई उन नहीं करेगा। वह इतना नहीं सोच सकता कि राजासाहबको जनता प्यारी नहीं है- तुम्हारी स्त्री प्यारी है।

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – कंचनसिंह- वहाँतक उसकी नजर नहीं जा सकती। ब्राह्मण है न? ब्राह्मण ६० सालतक गावदी रहता है, फिर सठिया जाता है। सम्पूर्ण ब्राह्मण-इतिहासमें केवल चाणक्य और बीरबल -ये ही दो ऐसे मन्त्री हुए जो अपने राजाके कक्का बन बैठे थे। कारण यह है कि चतुरताले ब्राह्मण बिजकता है।

करणसिंह– मन्त्रीका मुख छः महीनेके लिये काला करनेके बाद? कंचनसिंह – ज्यों ही बरसात शुरू हो त्यों ही दीवानकी स्त्रीको पालकी भेज देना। कहला देना कि आज रातको रानी साहब मन्त्रानीजीके साथ हिंडोला झूलना चाहती हैं। यों उसे महलमें बुला लेना। कुछ दिन बाद फिर शामको पालकी भेज देना। इसी बहानेसे सेनापतिकी स्त्रीको बुला लेना ।

महलमें वे आ जायें, फिर मैं ऐसा इन्तजाम कर दूंगा कि रानी साहबाको यह भी न मालूम होगा कि कौन आया- कौन गया! करणसिंह – माधव नामका मन्त्री है। असली मन्त्री तो मैं तुम्हींको मानता हूँ।

कंचनसिंह – यह आपकी इनायत है, वरना मैं किस लायक हूँ। नवाबोंकी मुसाहबीमें रहकर मैंने बड़े-बड़े हथकंडे याद किये हैं। औरतको धोखा देनेके लिये मैंने सैकड़ों सबक याद कर रखे हैं। मेरे बराबर कोई स्त्रीचोर आपको सहजमें प्राप्त न होगा। मेरे मरनेपर आप पछतायेंगे। व करणसिंह- अरे राम राम! मरनेका नाम मत लेना। तुम-सा शरीफ आदमी क्यों मरे?

सेनापति केशवचंदको घरके बाहर बुलाकर नायक कंचनसिंहने

कहा- ‘रानीसाहबाने पालकी भेजी है। रानीसाहबाने हिंडोला झूलनेके लिये आपकी भावजको बहुत जल्द बुलाया है।’

केशवने भीतर जाकर नायकका संदेसा रूपसुन्दरीसे कहा। रूपसुन्दरीने उत्तर दिया- ‘राजा बड़ा लोलुप है। उसके महलमें पतिव्रताओंको भूलकर भी कदम नहीं रखना चाहिये। जाकर कह दो कि मेरी भावजकी तबीयत खराब है।’

केशवने बाहर जाकर कंचनसे कहा कि ‘भावजकी तबीयत खराब है। वह महलमें नहीं जा सकतीं।’ कंचनसिंह – महलमें वैद्यजी रहते हैं। उनकी दवासे आपकी भावजकी तबीयत ठीक हो जायगी।

केशवचंद – नहीं जी, वह नहीं जायँगी।

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – कंचनसिंह – खुशीसे नहीं भेजोगे तो जबरन् जायेंगी। केशवचंद – भाग यहाँसे, गुण्डा कहींका! नायक बना फिरता है- बदमाशका बच्चा।

कंचनसिंह – (सिपाहियोंसे) इस हरामी पण्डितको पकड़ लो। केशवने तत्काल तलवार बाहर निकाली। जबतक सिपाही लोग आगे बढ़ें तबतक कंचनसिंह नामका सिर धरतीपर लोटने लगा। जैसे किसान ज्वारका भुट्टा काटता है, उसी तरह आसानीसे केशवने कंचनका सिर काट गिराया।

छत्तीस सिपाही केशवचंदपर टूट पड़े। जबतक पड़ोसी लोग जमा हों तबतक सिपाहियोंने केशवचंदको मार डाला। पड़ोसियोंने चार सिपाहियोंको यमलोक भेज दिया। एक सिपाही भाग गया और उसने सारी घटना राजासाहबको सुनायी।

उस समय गुणसुन्दरी छतपरसे अपने स्वामीकी युद्धनिपुणता देख रही थी। अकेले केशवचंदने इकतीस सिपाही मार गिराये थे। स्वामीकी वीरतापर मुग्ध होकर गुणसुन्दरी जय-जयकार कर रही थी !

चारों ओर हाहाकार मच गया। कोई रोता था और कोई चिल्लाता

था गुणसुन्दरी छतपरसे नीचे उतर आयी। उसकी आँखोंमें आँसू न थे। केशवके शवके पास आकर उसने कहा- ‘प्राणनाथ! घबराना नहीं मैं भी आती हूँ!’

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – लोगोंने बहुत कुछ समझाया पर गुणसुन्दरी नहीं मानी। विधानके अनुसार काम करती हुई गुणसुन्दरी अपने स्वामीके साथ सती हो गयी! जब चिता जलने लगी थी, जब गुणसुन्दरी कमरतक जल चुकी थी। जब चारों ओर अपार जनता सतीका दर्शन कर रही थी तब

गुणसुन्दरीने गम्भीरस्वरसे शाप दिया ‘जिसने हमारे घरकी यह दुर्दशा की है, उसकी स्त्रियोंकी बेइज्जती मुसल्मानोंद्वारा होगी!’

सर्तीका शाप सत्य हुआ। तीसरी साल यानी १७०३ ई० में

मुसलमानोंने पाटनपर चढ़ाई कर दी। राजा करणसिंह युद्धमें मारे गये।

मुसल्मानोंने रानियोंकी वही दुर्दशा की जो सतीके घोर शापमें व्यक्त

हुई थी।

माधव मन्त्रीके वंशके लोग अबतक पाटन नगरीमें रहते हैं। उनके वंशके एक सज्जनसे मेरी मुलाकात दिल्लीमें हुई थी। उन्होंके द्वारा यह वृत्तान्त मुझे प्राप्त हुआ है।

आजतक पाटन शहरमें गुणसुन्दरीकी कथा बच्चे-बच्चेकी जबानपर नृत्य कर रही है।

सती जयदेवीजी

गभग सन् १९३० की घटना है। जिला मैनपुरीमें जरावली नामक गाँव है। उस गाँवमें रामलाल नामक एक ब्राह्मण युवक रहता एक था। रामलालकी अवस्था तीस सालकी थी। वह बटेश्वरके मेले में बलाकी एक जोड़ी खरीदने गया था। जोड़ी तो मिली नहीं, रामलाल बीमार होकर घर लौट आया। उसकी स्त्रीका नाम जयदेवी था। जयदेवीकी उमर बाईस सालकी थी।

ज्यों ही जयदेवीने बीमार पतिका मुख देखा त्यों ही उसने कह दिया कि ‘ये आठ दिनके मेहमान हैं।’ घरके लोग इलाज कराने लगे। जयदेवी उनकी दवादारूमें शरीक नहीं हुई और बोली- ‘इनके प्राणोंकी रक्षा भगवान् धन्वन्तरितक नहीं कर सकते। अगले सोमवारको इनका शरीर छूट जायगा।’

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – परंतु किसीने जयदेवीकी बातपर विश्वास नहीं किया। लोगोंने समझा कि जयदेवी सनक गयी है। भला, भविष्यकी बात कौन बता सकता है? जयदेवीने पचास रुपयेकी रेजगारी अपने पास जमा की। इकन्नी, दुअत्री, चवन्नी और अठन्नी- चार तरहकी रेजगारी मँगायी। कपूर, सिंदूर और मेवा भी मँगाया।

घरवाले कहने लगे—’ पति तो मर रहा है और यह सिंदूर मँगा रही है। मालूम होता है कि पागल हो गयी है।’ जयदेवी रात-दिन तुलसीके पास बैठी रामायणका पाठ करती रहती थी। भोजन एक प्रकारसे त्याग ही दिया था। जयदेवीके तेजके मारे कोई घरवाला उसके सामने कुछ कह नहीं सकता था। रानीकी तरह जयदेवी भी स्वतन्त्र थी।

सोमवारके दिन प्रातः काल पण्डित रामलालका स्वर्गवास हो गया। घरमें कुहराम मच गया। परंतु जयदेवीकी आँखों में आँसू नहीं थे। वह अन्य दिनोंकी अपेक्षा आज विशेष आह्लादित दिखलायी दे रही थी। लोगोंने

समझा कि जयदेवी सचमुच पागल हो गयी है। जयदेवीने घूँघट डालना बंद कर दिया। वह स्नान करके रेशमी साड़ी पहनने लगी। इसके बाद उसने समस्त आभूषण धारण किये। आँखोंमें काजल लगाया और सिरमें सिंदूर लगाया। मस्तकपर बेंदी लगायी और चाँदीके बिछिया पहिने। उसका सुहागरात जैसा श्रृंगार देख घरवाले जल-भुन गये।

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – परंतु न तो जयदेवीसे किसीने पूछा कि यह सब उलटा काम क्यों किया जा रहा है और न जयदेवीने ही किसीसे कहा कि मैं सती होने जा रही हूँ। लोगोनि रथी बनायी और मृतकको श्मशानकी ओर ले चले। जयदेवी भी पीछे पीछे चल दी। एक थालीमें मेवा, फूल और रेजगारी भरी थी।

वह थाली जयदेवी बायें हाथपर रखे थी और दाहिने हाथसे कभी फूल, कभी मेवा और कभी रेजगारी फेंकती जाती थी। मेवा और रेजगारी तो पृथ्वीपर गिरती जाती थी, जिसे दीन-दुःखी लोग उठाते जाते थे; परन्तु फूल आकाशकी ओर चले जाते थे और गुप्त हो जाते थे।

जब सब लोग श्मशानपर पहुँचे तब मृतकको स्नान कराया गया और कफन पहनाया गया। इसके बाद शवको चितापर लिटा दिया गया। उसी समय जयदेवी भी चितापर चढ़ आयी और पतिका मस्तक अपनी गोदमें रखकर बैठ गयी। गाँवके मुखियाकी निगाह पड़ी। उसका माथा ठनका।

मुखिया – आप वहाँ क्यों बैठी हैं?

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – जयदेवी-अंधा है क्या? दिखलायी नहीं पड़ता कि मैं सती होना चाहती हूँ।

मुखिया – सरकारकी इच्छा नहीं है कि कोई सती हो

जयदेवी–सरकारकी इच्छाको तुम-जैसे नासमझ नहीं समझ सकते। सरकार परीक्षा लेकर सती होने देती है। ताकि प्रथा बनाकर लोग असतियोंको भी जबरदस्ती न जला मारें।

मुखिया—(चौकीदारसे) तुम अभी भागते हुए थानेमें जाओ और थानेदारको साथ ही लेते आओ। कहना कि रामलाल मर गया है और

उसकी स्त्री सती होना चाहती है। मुखियाका रोकना नहीं मानती। जयदेवी- (मुखियास) जबतक तेरा बाप यहाँ आयेगा तबतक क्या मैं बैठी ही रहूँगी?

मुखिया – कहाँ चली जाओगी? जयदेवी सती हो जाऊँगी। पतिको लेकर इस संसार से गायब हो

जाऊँगी। जहाँ तुम्हारे जैसा पापी और मूढ़ आदमी मुखिया हो, यहाँ

मैं तबतक बैठी रहूँगी?

मुखिया – जबतक थानेदार नहीं आ जायगा तबतक तुम सती नहीं हो सकती।

जयदेवी- कौन रोकेगा? मुखिया—मैं रोकूँगा। यहाँपर जो दो-तीन हजार आदमी जमा हैं,

सब मेरे आज्ञानुसार काम करेंगे।

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जयदेवी – तुम किस तरह मुझे रोकोगे? मुखिया – आग नहीं लगाने दूँगा।

Top 2 Best Short Moral Stories In Hindi For Class 10 That You Must Read – जयदेवी – श्यामलाल ! जाओ, घरसे पाँच सेर घी ले आओ। श्यामलाल था जयदेवीका देवर। वह अपनी भाभीका बड़ा मान किया करता था। वह जयदेवीका भक्त था। मुखियाके मने करनेपर भी श्यामलाल घरकी ओर भागा और घी ले आया। जयदेवीने वह घी चितापर इधर उधर छिड़क दिया।

जयदेवी – श्यामलाल ! जाओ, आग ले आओ। मुखिया – खबरदार श्यामलाल! अगर आग लेनेको कदम बढ़ाया तो इसी नीमसे बँधवा दूँगा।

श्यामलाल – आप अपने कर्तव्यमें स्वतन्त्र हैं और मैं अपने कर्तव्यमें। ज्यों ही श्यामलाल आग लेनेको गाँवकी ओर दौड़ा त्यों ही मुखिया के हुक्मसे पाँच आदमियोंने उसे पकड़ लिया और रस्सीद्वारा नीमके वृक्षसे कसकर बाँध दिया।

जयदेवी–तुम आग नहीं मिलने दोगे?

मुखिया नहीं, जब थानेदार आ जायें, तब चाहे आग मँगाना और

चाहे पानी मँगाना।

जयदेवी- बिना आगके मैं सती नहीं हो सकती? मुखिया कैसे हो सकती हो? जयदेवीने अपने सारे आभूषण उतार डाले। गहनोंकी पोटली श्यामलालके आगे फेंककर कहा-‘गरीबोंको बाँट देना। तुम हमेशा खुश

रहोगे। परमात्मा तुम्हारी रक्षा करेंगे।’

मुखिया – अगर तुम सती हो तो आग पैदा कर लो। जयदेवी – मैं स्वयं आग हूँ। आगमें घुसनेसे मुझे आँच नहीं लगती; क्योंकि आग आगको नहीं जलाती। मैं अपनी आगसे अपनेको बादमें जलाऊँगी, पहले तुझे जलाऊँगी।

इतना कहकर जयदेवीने पतिके कानमें कुछ कहा। इसके बाद उसने कपूर अपने हाथोंमें मल लिया। तीन बार ताली बजाकर ज्यों ही उसने नेत्र ऊपर उठाये, त्यों ही मुखिया मूर्च्छित होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा। सतीके नेत्रोंसे मानो वही ज्योति निकल रही थी जो कामदेवको भस्म करनेके लिये शिवजीके नेत्रोंसे निकली थी।

भीड़में दो वैद्य और एक डाक्टरी पढ़नेवाला छात्र भी मौजूद था। तीनोंने बहुत उपचार किया; परंतु मुखियाकी हालत सुधरना तो दूर, उलटी बिगड़ती गयी। मुखियाकी स्त्रीने जो यह दारुण घटना सुनी तो वह सिर खोले रोती हुई सतीके पास आयी और बारम्बार साष्टांग प्रणाम करती हुई कहने लगी- ‘माता! तुम्हारे प्रभावको मुखिया नहीं जानता।

जगदम्बा ! मेरे सुहागकी रक्षा करो। देवी! मुझे विधवा बनाकर सती मत होना। मुखियाको अपना एक अनजान बच्चा समझकर क्षमा कर दो। मैं आँचल पसारकर अपने पतिके प्राणोंकी भीख आपसे माँगती हूँ, महारानी !’

दयालु जयदेवीने अपने दायें हाथको ऊपर उठाकर आकाशकी ओर देखकर कहा-‘क्षमा कर दो!’

(४)

सचेत होकर मुखिया खड़ा हो गया। आध घंटेतक वह बेहोश

रहा था। उसकी ओर देखकर जयदेवी मुस्करायी और बोली जयदेवी- अब आग दोगे या अब भी नहीं? मुखिया प्राण रहते आग नहीं लगाने दूंगा। जयदेवी-तो रोको, आग आ रही है।

इतना कहकर जयदेवीने फिर कपूर हाथोंमें रगड़ा और दोनों हाथोंसे तीन बार ताली बजायी। उसने अपने स्वामीके कानोंमें कुछ कहा और नों हाथ सूर्यनारायणकी ओर करके आग माँगी। जयदेवीने सूर्यनारायणसे कहा-‘यदि मैं वास्तवमें सती होऊँ तो आग भेजो, भगवन्!’

जयदेवीके दोनों हाथ जलने लगे। चितामें भी अपने-आप आग लग गयी। जबतक थानेदार साहब और दीवान वहाँ पहुँचे तबतक चिता जल चुकी थी और भस्म रह गयी थी।

दौरा-जजके यहाँ मुकदमा चला। गवाहियाँ लेकर दौरा-जजने सबको छोड़ दिया। जजने फैसले में लिखा था- ‘जयदेवीको सती होनेमें किसीने सहायता नहीं दी। उसने मुखियापर बिजलीका प्रहार कर दिया था। एक घंटे में मुखियाकी मृत्यु हो जाती।

जयदेवीने आग खुद ही पैदा कर ली थी। इस प्रकारकी तेज मिजाज सती अभीतक मेरे सुननेमें नहीं आयी। वह सच्ची सती थी और कोई उसे उसके कर्त्तव्यसे विचलित नहीं कर सकता था।’

पब्लिकने बहुत अच्छा सती-चौरा निर्माण किया। जज और थानेदारने भी चंदा दिया था।

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