Top 3 Best Moral Stories In Hindi For Class 9 | Class 9 Moral Stories In Hindi | Moral Stories In Hindi

भारत की राजधानी

Top 3 Best Moral Stories In Hindi For Class 9 – हमारे देश की दिल्ली में बताया गया है। यह नगरी प्राचीनकाल से हो रही है। पर इसके बाद हो रहा है। यहीं पर अनेक पर्यटन भी हैं जो सभी को अपनी और और इसको करते हैं।

‘भारत की राजधानी ‘दिल्ली’ देश के दिल के समान है। यह वर्तमान काल में ही भारत की राजभावी नहीं बनी, बल्कि भगवान कृष्ण के काल से ही इस गौरव से सुशोभित हो रही है।

समय समय पर इसका रूप, रंग तथा नाम बदलता रहा है। महाभारत काल मानी द्वापर युग में यह नगरी पहिलो की राजधानी ‘इंद्रप्रस्थ’ के सेती अलाउद्दीन के युग में इसका नाम ‘सिरी’ था। बाद में तुमको इसका नाम ‘तुगलकाबाद’ रखा।

मेरे माथा जो दिल्ली में रहते है। उनके मुँह से दिल्ली की सुन-सुनकर मेरे मन में दिल्ली घूमने की बहुत मेरी वार्षिक परीक्षा समाप्त हुए पांच दिन बीत गए इस बार कहां जाएंगे?

मेरे पूछने पर पिता जी ने बताया कि अगले हफ्ते हम लोग दिल्ली जा रहे हैं। यह सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। निश्चित समय पर हम लोग रेलगाड़ी से दिल्ली पहुँच गए। मेरे मामा जी हमारे स्वागत के लिए स्टेशन पर पहले से ही खड़े थे। को देखकर आवाज दी, उन्होंने मुझे देख लिया। थोड़ी देर में हम लोग

मामा जी की कार में बैठकर उनके साथ चल दिए। घर पहुँचकर मामा जी ने बताया कि कल प्रातः ही हम लोग घूमने चलेंगे। मैं मामा जी से दिल्ली के प्रसिद्ध स्थानों के बारे में जानकारी प्राप्त करने लगा। मामा जी ने हमें बताया कि दिल्ली पुराने और नए रूप का संगम है।

दिल्ली दो भागों में बंटी हुई है- नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली नई दिल्ली में संसद भवन राष्ट्र भवन, इंडिया गेट आदि भव्य स्मारक हैं। कृषि भवन, विज्ञान भवन, आकाशवाणी केंद्र और सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली के ही दर्शनीय स्थल है।

Top 3 Best Moral Stories In Hindi For Class 9
Lal Kila – Red Fort

यहाँ पर बिड़ला मंदिर है और अक्षरधाम मंदिर भी माँ ने कहा, “हम लोग बिड़ला मंदिर देखने जरूर जाएँगे।” मैंने कहा, “मामा जी कुतुबमीनार भी तो दिल्ली में ही स्थित है, हम वहाँ जरूर जाएँगे।” मामा जी ने कहा, “हाँ, मैं यहाँ के सभी प्रसिद्ध स्थान आप लोगों को दिखाऊँगा।”

। मम्मी ने पूछा, “यहाँ का प्रसिद्ध बाज़ार कौन-सा है?” मामा जी ने बताया, “चाँदनी चौक यह पुरानी दिल्ली में स्थित है। पुरानी दिल्ली में ही लाल किला, जामा मस्जिद, हुमायूँ का मकबरा आदि भी देखने योग्य इमारते हैं।” बातें करते-करते मुझे न जाने कब नींद आ गई। अगले दिन हम लोग घूमने जाने के लिए तैयार हो गए।

मैंने कहा, “मामा जी ! मैं तो पहले चिड़ियाघर देखने जाऊँगा।” मामा जी मान गए। हम लोगों ने वहाँ पर विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी देखे। फिर हम बुद्धा गार्डन, तालकटोरा गार्डन, मुगल गार्डन और रोशनआरा बाग में घूमे जो बड़े सुंदर स्थल हैं।

अगले दिन हमने जामा मस्जिद, लाल किला और कुतुबमीनार देखा। लाल किला लाल पत्थरों से बना है। कुतुबमीनार सुंदर बाग-बगीचों से घिरी हुई है जो लोगों के मन को मोह लेती है।

यह एक सुंदर पिकनिक स्थल बन चुकी है। यहीं पर हमने लौह स्तंभ भी देखा, जिसे चंद्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’ ने बनवाया था। मामा जी ने बताया कि इसकी एक विशेषता यह है कि

इस पर सैकड़ों वर्षों के बीतने पर भी हवा, पानी और धूप का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। हमने बिड़ला मंदिर, अक्षरधाम मंदिर, गौरी-शंकर मंदिर, सिक्खों का शीशगंज गुरुद्वारा और जैन मंदिर भी देखा। इस प्रकार, लगभग एक सप्ताह तक हम लोग दिल्ली में रहे और वहाँ के प्रसिद्ध दर्शनीय स्था

नों का भ्रमण किया।

दिल्ली के सौंदर्य ने हम लोगों को मंत्रमुग्ध-सा कर दिया था। वहाँ से वापस आने का मन ही नहीं हो रहा था, लेकिन वापस तो आना ही था। हम लोग वापस आ गए। मेरी यात्रा बड़ी आनंददायिनी थी। वास्तव में भारत की राजधानी दिल्ली अपने आप में बहुत ही निराली नगरी है। इसे ‘देश का दिल’ कहना उचित ही है।

सुस्तराम (कहानी)

प्रस्तुत कहानी में एक लड़का बहुत ही आलसी स्वभाव का होता है और पढ़ाई में गणित जैसे विषय से दूर-दूर रहना चाहता है। एक दिन उसे सपना आता है जिसमें वह एक शहर में पहुँच जाता है। यहाँ पर उसके साथ घटी घटना उसे एक सबक सिखाती है और वह मन लगाकर पढ़ाई करने का प्रण लेता है।

एक था सुस्तराम बिलकुल अपने नाम के अनुरूप सुबह बड़ी मुश्किल से उठा जब पाठशाला जाने के लिए देर होती तो कभी माँ को आवाज़ देता तो कभी इधर-उधर चीजें फेंकता। पढ़ाई में तो उसका मन बिलकुल ही न लगता, और विशेष रूप से गणित विषय तो उसका शत्रु ही था। जब कभी कक्षा में गुरु जी डाँटते तो जोड़ना घटाना कर लेता परंतु गुणा-भाग के सवाल शुरू होते ही उसे नींद आ जाती और उसके चारों ओर गणित के सवाल घूमने लगते।

एक दिन गुरु जी ने गृहकार्य में गणित के कुछ सवाल हल करने के लिए दिए। घर आकर जब वह सवाल हल करने बैठा तो उसे नींद आ गई और वह सपनों की दुनिया में खो गया। सपने में उसने देखा कि वह एक ऐसे शहर में पहुँच गया है।

जहाँ पर किसी को गणित नहीं आता। सुस्तराम ने सोचा कि “यह शहर तो बहुत अच्छा है। क्यों न मैं इसी शहर में रहूँ। यहाँ रहकर न तो गुणा-भाग करना पड़ेगा और न ही जोड़ना घटाना। वाह ! खूब मज़ा आएगा।”

उस शहर में चारों ओर खूब हरियाली थी। हरे-भरे पेड़ थे। सब लोग मिल-जुलकर अपना काम करते थे। सुस्तराम भी मज़े से उस शहर में रहने लगा।

एक दिन सुस्तराम ने देखा कि कुछ लोग आपस में गणित को लेकर बहस कर रहे हैं। सुस्तराम को जोड़ना-घटाना तो आता ही था, उसने तुरंत उनकी समस्या हल कर दी। धीरे-धीरे बात राजा के कानों तक पहुंच गई।

राजा ने उसे दरबार में बुलाया और अपना दरबारी बना लिया। अब तो सुस्तराम के राजसी ठाट-बाट थे। वह शानदार पोशाक पहनता। सोने के हार हीरे की अंगूठियाँ उसके उन की सुंदरता बढ़ातीं। बड़े मजे से उसके दिन बीतने लगे। राजमहल

में गिनती से जुड़े जितने भी झगड़े आते यह उन्हें तुरंत सुलझा देता। धीरे-धीरे राजा को सुस्तराम पर बहुत विश्वास हो गया। उन्होंने सुस्तराम को खजांची बना दिया। सुस्तराम ने खजांची का कार्यभार ले तो लिया, परंतु उसे गुणा-भाग करना तो आता ही नहीं था। जहाँ भी गुणा-भाग की समस्या आती वह उसे अनदेखा कर देता।

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A man is thinking about wealth

किसी को भी गणित आता नहीं था, इसलिए सुस्तराम से कोई कुछ कहता भी नहीं था। परंतु धीरे-धीरे सुस्तराम की मूर्खता से राजकोष खाली होने लगा। मंत्री जी ने जब राजकोष देखा तो उन्हें चक्कर आ गया।

सभी उन्हें सँभालकर राजा के पा ले गए। राजा ने पूछा- “मंत्री जी, क्या बात है?” मंत्री संभलते हुए बोले- “महाराज, राजकोष खाली हो रहा है। ” राजा ने हैरान होकर पूछा- “पर कैसे?”

मंत्री बोले- “महाराज, इसका हिसाब तो खजांची ही दे सकते हैं।” राजा ने तुरंत खजांची सुस्तराम को दरबार में बुलवाया और उससे हिसाब माँगा। अब बेचारा सुस्तराम अगर-मगर करने लगा। क्योंकि हिसाब लगाना तो उसके बस की बात नहीं थी। राजा ने गुस्से से कहा- मैंने तो तुम पर विश्वास करके तुम्हें खजांची का कार्यभार सौंपा था, परंतु तुमने इतना धन कहाँ खर्च कर दिया?”

सुस्तराम राजा के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दे पाया। उसने वहाँ से भागने में ही अपनी भलाई समझी। वह तुरंत राजमहल से भागने लगा। परंतु राजा के सैनिकों ने उसे पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया। बेचारा सुस्तराम रोया, चिल्लाया पर उसकी किसी ने नहीं सुनी। घबराहट में उसकी आँखें खुल गईं।

वह बिस्तर से उठकर बोला- “अरे! मैं तो सपना देख रहा था।” परंतु अब सुस्तराम को अपनी गलती का अहसास हो गया था। उसने प्रण किया कि अब वह कभी गणित से दूर नहीं भागेगा और मन लगाकर पढ़ाई करेगा।

शिवाजी का न्याय (एकांकी)

प्रस्तुत पाठ छत्रपति शिवाजी के जीवन से संबंधित है। शिवाजी का सेनापति युद्ध में विजित होकर अमूल्य धन-संपदा के साम शत्रु की पुत्रवधू को भी अर्पित करता है। शिवाजी इससे बहुत क्रोधित होते है और सेनापति को आदेश देते हैं कि यह इन्हें आदर सहित इनके घर वापस छोड़कर आए। यह प्रसंग इनके महान चरित्र व न्याय को उजागर करता है और हम सबके लिए आदर्श स्थापित करता है।

कल्याण के किले का सूबेदार मुल्ला अहमद की पुत्रवधू कुछ सैनिक (शिवाजी दुर्ग में अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ अपने आसन पर बैठे है।)

शिवाजी (अपने विश्वस्त सैनिक से) क्या कल्याण के किले से कोई समाचार आया। है? अभी तो नहीं आया पर आता ही होगा, श्रीमंत! सेनापति सोमदेव के नेतृत्व में हमारी सेना किले पर अपना ध्वज फहरा देगी, आप विश्वास रखिए। हमें अपने सेनापति की वीरता पर पूरा विश्वास है, परंतु युद्ध इतने दिन चलेगा, हमें आशा नहीं थी। इस किले को जीतने के लिए हमारे कितने ही

सैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है (महामंत्री मोरोपंत का प्रवेश) सैनिक शिवाजी छत्रपति शिवाजी की जया मोरोपंत शिवाजी कहिए महामंत्री जी, युद्ध क्षेत्र से कोई समाचार आया? श्रीमंत! हमारी सेना विजयी हुई। तो क्या कल्याण के किले पर हमारा अधिकार हो गया?

मोरोपंत शिवाजी

लेकिन, सेनापति सोमदेव अभी तक क्यों नहीं आए? कहीं युद्ध में…….. ” (बीच में शिवाजी की बात काटते हुए) नहीं महाराज! वे आते ही होंगे। उन्होंने ही अपनी जीत का संदेश भिजवाया है। (तभी सेनापति सोमदेव का प्रवेश)

मोरोपंत जी, श्रीमान कल्याण का किला अब हमारे अधिकार में है।

सेनापति महाराज की जय हो! श्रीमंत! माता जीजाबाई के आशीर्वाद माँ भवानी की कृपा आपके प्रताप कृपा, और हमारे सैनिकों की बहादुरी के कारण हमने कल्याण के किले पर अधिकार कर लिया है। हम जानते थे। हमें अपने सैनिकों

शिवाजी और आपकी वीरता पर तनिक भी संदेह नहीं था। जहाँ आप जैसे सेनापति हों, वहाँ हार का तो प्रश्न ही नहीं उठता। यह जीत आप सबकी है। हमें अपने वीरों पर गर्व है। युद्ध के बारे में कुछ बताइए…।

सेनापति महाराज! जैसा कि आप जानते हैं, यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा। किले पर अधिकार करने के लिए हमें अपने कई वीरों के प्राणों की आहुति देनी पड़ी। शत्रु के सैनिक भी बहुत वीरता से लड़े, परंतु अंततः जीत हमारी ही हुई। युद्ध के समय हमारे आदेशों का पूरा ध्यान रखा गया ही होगा?

शिवाजी सेनापति आपके आदेशों को हम कैसे भूल सकते थे, महाराज! हमने उनका पूरी तरह पालन किया है। हमने किसी धार्मिक स्थल को कोई हानि नहीं पहुँचाई, बच्चों, वृद्धों, महिलाओं और विकलांगों पर तलवार नहीं उठाई और धार्मिक पुस्तकों को भी सुरक्षित रखा।

शिवाजी – सेनापति जी ! हमें आप पर गर्व है। सच्चा वीर वही है, जो इसी प्रकार का आचरण करे।

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शिवाजी – Veer Shivaji

सोमदेव शिवाजी

महाराज! कल्याण का खजाना आपकी सेवा में अर्पित है। (कुछ सैनिकों का खजाने से भरे संदूक लेकर उपस्थित होना) इसका कुछ भाग हमारे वीर सैनिकों में बँटवा दिया जाए। जिन सैनिकों ने इस युद्ध में वीरगति पाई है, उनके परिवारों को भी इस खजाने का कुछ भाग भिजवा दिया जाए। यदि कुछ शेष रहे, तो उसको कोष में जमा करवा दिया जाए।

सोमदेव – जैसी आपकी आज्ञा महाराज ! श्रीमंत! इस खजाने के अलावा हमें एक और अमूल्य वस्तु भी हाथ लगी है। यह अमूल्य भेंट में आपको अर्पित करना चाहता हूँ। (उत्सुकता से) क्या है वह अमूल्य वस्तु? जरा हम भी तो देखें।

(सोमदेव के संकेत पर कुछ सैनिक एक पालकी लेकर उपस्थित होते हैं।) इस पालकी में क्या है? इस पालकी में कल्याण के सूबेदार मुल्ला अहमद की पुत्रवधू है।

(शहजादी पालकी से बाहर आ जाती है) (क्रोधित होते हुए) सोमदेव! तो क्या तुम यही अमूल्य उपहार हमारे लिए लाए हो? तुमने एक स्त्री का अपमान करके हमें भी अपमानित किया है। तुमने तो कहा था कि युद्ध के दौरान हमारे आदेशों का पूरी तरह पालन किया गया था फिर

सोमदेव – क्षमा करें महाराज! आप विश्वास रखें, हमने आपके आदेशों का पूरी तरह पालन किया है। हमने किसी को कोई हानि नहीं पहुँचाई, बच्चों और महिलाओं को सुरक्षित रखा और बड़े एवं बीमार लोगों को हाथ तक नहीं लगाया।

शिवाजी – फिर तुम कैसे भूल गए कि हमारी दृष्टि में पराई स्त्री माँ और बहन के समान है? (शिवाजी की बात सुनकर शहजादी की आंखों में आंसू आ जाते है। शहजादी की ओर संकेत करते हुए आप चिंता न करें शहजादी! यहाँ

आप पूरी तरह से सुरक्षित है। मैं अपने सेनापति द्वारा आपको यहाँ लाए जाने के लिए क्षमा याचना करता हूँ। आप सूबेदार साहब की पुत्रवधू हैं, तो हमारी भी पुत्रवधू के समान है। आपसे प्रार्थना है कि हमारे सेनापति को क्षमा कर दीजिए।

शहजादी – श्रीमंत! मैं उम्र में आपसे बहुत छोटी हूँ। आपका मुझसे इस प्रकार क्षमा माँगना ठीक नहीं है। मैं नहीं जानती थी कि आप इतने महान हैं। सोचा था कि यहाँ मैंने ख्वाब में नहीं मुझसे ऐसा सुलूक किया जाएगा। आप धन्य हैं। आप महान हैं।

सोमदेव शहजादी! मुझे क्षमा कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया। (सोमदेव की बात सुनकर शहजादी की आँखों से आंसू बहने लगते हैं।) सेनापति जी! तुम्हें केवल क्षमा माँगने से ही माफ नहीं किया जा सकता।

शिवाजी- सोमदेव शिवाजी

हाँ, तुम्हें दंड अवश्य मिलेगा। तुम्हारा दंड यही है कि तुम्हें सूबेदार साहब की पुत्रवधू को पूरे सम्मान व आदर के साथ उनके घर तक पहुँचाना होगा। शिवाजी महाराज की जय! उपस्थित सभी सैनिक छत्रपति शिवाजी महाराज की जय।

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