हेलो दोस्तों मै हूँ केशव आदर्श और आपका हमारे वेबसाइट मोरल स्टोरीज इन हिंदी (Moral Stories in Hindi) में स्वागत है आज जो मै आपको कहानी सुनाने जा रहा हु | उसका नाम है Top 5 Moral Stories In Hindi |
यह एक Moral Stories For Kids और Top 5 Moral Stories In Hindi की कहानी है और इस कहानी में बहुत ही मजा आने वाला है और आपको बहुत बढ़िया सिख भी मिलेगी |
मै आशा करता हु की आपको ये कहानी बहुत अच्छी तथा सिख देगी | इसलिए आप इस कहानी को पूरा पढ़िए और तभी आपको सिख मिलेगी | तो चलिए कहानी शुरू करते है आज की कहानी – Top 5 Moral Stories In Hindi

ये 5 पांच कहानिया निम्न हैं :-
- कथनी और करनी – Words and Deeds
- शेख शादी बने महामानव – Sheikh married became a great man
- भावनाओं और गतिविधियों से सीख – Learning from emotions and activities
- सच्चे संत की निर्लिप्तता – Detachment of a true Saint
- पंडित मदन मोहन मालवीय – Pandit Madan Mohan Malviya
Top 5 Moral Stories In Hindi
1. कथनी और करनी – Words and Deeds
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना प्रसिद्ध संत स्वामी श्रद्धानंद ने की थी। विश्वविद्यालय की स्थापना से पूर्व एक बार वे दिल्ली के एक राय साहब के घर चंदा माँगने पहुँचे।
उद्देश्य था कि यदि एकमुश्त रकम मिल जाती तो विश्वविद्यालय की इमारतों को खड़ा करने में सहयोग मिलता, पर राय साहब ने आर्थिक सहयोग देने के बजाय उनका अपमान करके उन्हें घर से बाहर निकलवा दिया। स्वामी श्रद्धानंद ने उसी दिन प्रण किया कि वह विश्वविद्यालय केवल निजी प्रयासों से खड़ा करेंगे।

Top 5 Moral Stories In Hindi – उन्होंने हरिद्वार वापस लौटकर अपना पुश्तैनी मकान बेच दिया और उससे प्राप्त संपत्ति गुरुकुल बनाने के लिए दान कर दी। गुरुकुल की स्थापना होते ही उन्होंने सबसे पहले अपने पुत्र को उसमें दाखिला दिया। स्वामी जी का कहना था कि-“दान लेने का सच्चा अधिकारी वही है, जिसने पहले सर्वस्व दान दिया हो।”
पूज्य गुरुदेव स्वामी श्रद्धानंद का उदाहरण देते हुए कहते थे-“जनता का सहयोग और देवताओं का अनुग्रह उन्हीं को मिलता है, जिनकी कथनी और करनी में भिन्नता नहीं होती ।”
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2. शेख शादी बने महामानव – Sheikh married became a great man.
शेख सादी अपने अब्बा के साथ हजयात्रा पर निकले। मार्ग में वे विश्राम करने के लिए एक सराय में रुके। शेख सादी का नियम था कि वे रोज सुबह उठकर अपने नमाज इत्यादि के क्रम को पूर्ण करते थे।
जब वे सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि सराय में ज्यादातर लोग सोए हुए हैं। शेख सादी को बड़ा क्रोध आया। क्रोध में उन्होंने अपने अब्बा से कहा – “अब्बा हजूर! ये देखिए! ये लोग कैसे जाहिल और नाकारा हैं।

सुबह का वक्त परवरदिगार को याद करने का होता है और ये लोग इसे किस तरह बरबाद कर रहे हैं। इन्हें सुबह उठना चाहिए।”
शेख सादी के अब्बा बोले – “बेटा! तू भी न उठता तो अच्छा होता। सुबह उठ कर दूसरों की कमियाँ निकालने से बेहतर है कि न उठा जाए।” बात शेख सादी की समझ में आ गई।
उन्होंने उसी दिन से निर्णय किया कि वे अपने सोच में किसी तरह की नकारात्मकता को जगह नहीं देंगे। अपने इसी सोच के कारण शेख सादी महामानव बने ।
3. भावनाओं और गतिविधियों से सीख – Learning from emotions and activities.
हम इतना ही कह जाना चाहते हैं कि हमारे प्रेमी-परिजन लोभ-मोह के जाल से जिस हद तक निकल सकें, निकलने के लिए पूरा जोर लगाएँ। भौतिक और व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं की कीचड़ से निकलकर विश्वमानव की आराधना के लिए त्याग बलिदान भरा अनुदान अधिक से अधिक मात्रा में उत्पन्न करें।

हमें प्रस्तुत जीवन क्रम इसलिए अपनाना और जीना पड़ा कि वाणी के द्वारा नहीं, उदाहरण के द्वारा ईश्वरभक्ति से लेकर जीवन की सार्थकता तक का स्वरूप सजग और सुसंस्कारी आत्माओं के सामने रखकर एक सुनिश्चित पथ-प्रदर्शन कर सकें।
आज की स्थिति में किसी भी सद्भावसंपन्न आत्मा के लिए अनिवार्य रूप से अपनाए जाने योग्य युगधर्म क्या है और समय के अनुरूप युग-साधना क्या है ? हम अपने कार्य का पूर्वार्द्ध पूरा करके चले। उत्तरार्द्ध अगले दिनों करेंगे। प्रभु समर्पित जीवन की दिशा क्या हो सकती है,
यह हमारी वाणी से नहीं, भावनाओं और गतिविधियों से सीखा जाना चाहिए।
4. सच्चे संत की निर्लिप्तता – Detachment of a true Saint
फलीज बगदाद के एक प्रसिद्ध संत हो गए हैं। उनके प्रवचनों से जन-जन प्रभावित था। वैसा ही उनका जीवन भी था, तो प्रभाव भी पड़ता था। बड़ी भारी भीड़ उनके दर्शनों के लिए रहती थी।

हारूँ अल रसीद वहाँ के बादशाह थे। उनने भी संत के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। आए, नमन किया और शांति से प्रवचन सुनते रहे। प्रवचन समाप्त होने पर राजकार्य संबंधी धर्मचर्चा हुई। कुछ प्रश्नों के समाधान भी मिले।
लौटते समय बादशाह को लगा कि भेंट तो दी ही नहीं। वापस लौटे एवं संत के चरणों में हजार दीनार रख दिए । संत उदास हो गए। बोले – “बादशाह! मैंने अभी अभी तुझे जन्नत का रास्ता बताया।
तू मुझे दोजख की राह दिखाता है। जा, तेरी थैली तुझे मुबारक हो।” यह है सच्चे संत की निर्लिप्तता ।
5. पंडित मदन मोहन मालवीय – Pandit Madan Mohan Malviya
पंडित मदन मोहन मालवीय से एक व्यक्ति ने कहा- “पंडित जी! मैंने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है। आप मुझे हजार गालियाँ दे कर देखें, मुझे तब भी क्रोध नहीं आएगा।”

महामना मालवीय जी बोले – “महाराज! आपकी विजय की परीक्षा करने में जो अपशब्द मेरे मुँह से निकलेंगे, उनसे तो मेरा ही चित्त अशुभ होगा। ऐसा करने या करवाने की कोई आवश्यकता नहीं ।”
मनुष्य के संयम की सच्ची परीक्षा चित्त-शुद्धि में है, व्यर्थ के दिखावे में नहीं।
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