Top 5 Best Moral Stories For class 2

हेलो दोस्तों मै हूँ केशव आदर्श और आपका हमारे वेबसाइट मोरल स्टोरीज इन हिंदी (Moral Stories in Hindi) में स्वागत है आज जो मै आपको कहानी सुनाने जा रहा हु |

उसका नाम है Top 5 Best Moral Stories For class 2 यह एक Moral Stories For Kids और Motivational Story In Hindi और Top 5 Best Moral Stories For class 2 की कहानी है और इस कहानी में बहुत ही मजा आने वाला है और आपको बहुत बढ़िया सिख भी मिलेगी | मै आशा करता हु की आपको ये कहानी बहुत अच्छी तथा सिख देगी | इसलिए आप इस कहानी को पूरा पढ़िए और तभी आपको सिख मिलेगी | तो चलिए कहानी शुरू करते है

ये कहानियां निम्न है :-

  1. ज्ञान की नींव
  2. नर्मदा
  3. श्री गुरु नानक देव जी
  4. गड़पति और कुबेर
  5. प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा

1. ज्ञान की नींव

Best moral stories for class 2 – बहुत समय पहले की बात है। एक आश्रम में रैभ्य नामक एक ऋषि रहते थे। उनके दो पुत्र थे- अवीवसु और परावसु। वे बड़े वेदज्ञ थे। चारों ओर उनके ज्ञान की ख्याति थी। लोग उन्हें बहुत आदर देते थे। उनके आश्रम के निकट ही भारद्वाज मुनि का आश्रम था। उनका पुत्र था यवक्रीत । वेदज्ञ के रूप में भारद्वाज प्रसिद्ध न थे।

यह देख यवक्रीत, | प्रसिद्ध रैभ्य तथा उनके पुत्रों की ख्याति से जलने लगा। यवक्रीत किसी तरह वेदज्ञ बनकर उन्हें मात देना चाहता था। यवक्रीत ने इंद्र की घोर तपस्या की। उसकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र उसके पास आकर बोले ” वत्स! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए ?”

अत्यंत विनीत होकर यवक्रीत ने कहा – भगवन्, मैं अद्वितीय वेदज्ञ बनना चाहता हूँ। यही मेरी तपस्या का कारण है। गुरु के द्वारा वेदों का ज्ञान प्राप्त करने में बहुत समय लगता है।

आपके वर के प्रभाव से मैं अनायास ही वेदज्ञ बनना चाहता हूँ।” एक पल के लिए इंद्र के ओठों पर मुस्कुराहट दौड़ पड़ी। उन्होंने समझाते हुए कहा- ” पुत्र यवक्रीत! तुम जो माँग रहे हो, वह ठीक नहीं है। तपस्या से वेदों का ज्ञान नहीं मिलता। अभ्यास करो। गुरु से ज्ञान प्राप्त करो, तभी वेदों का ज्ञान प्राप्त होता है।” यह कहकर इंद्र अदृश्य हो गए।

Best moral stories for class 2 – इंद्र के उत्तर से यवक्रीत संतुष्ट नहीं हुआ वह फिर तपस्या में लीन हो गया। वह किसी तरह इंद्र के द्वारा वेदज्ञ बनना चाहता था। उसकी घोर तपस्या से इंद्र को दुबारा यवक्रीत के पास आना पड़ा। इंद्र ने उसे फिर समझाते हुए कहा “वत्स! तुम्हारा हठ ठीक नहीं है। अभ्यास के बिना वेदों का ज्ञान पाना संभव नहीं है। तपस्या करना बंद कर दो। शरीर को इस तरह कष्ट न दो।”

यवक्रीत इंद्र की बात कब मानने वाला था ? उसने तपस्या जारी रखी। रोज की तरह यवक्रीत सवेरे-सवेरे स्नानादि के लिए नदी पर गया। उसने वहाँ एक दुबले-पतले बूढ़े को देखा। वह रेत को मुट्ठियों में भरकर नदी में डाल रहा था। यवक्रीत कुछ समय तक बूढ़े के इस कार्य को देखता रहा। उसके आश्चर्य की कोई सीमा न थी।

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Best moral stories for class 2 – बूढ़े के पास जाकर बोला “महाराज! आप यह क्या कर रहे हैं ?” वृद्ध ने कहा “यह जो नदी है न, उसे पार करने के लिए लोगों को बहुत कष्ट हो रहा है। यदि यहाँ कोई पुल होता तो कितनी सुविधा होतो ? इसलिए मैं रेत का पुल बना रहा हूँ।”

यह कहकर वह फिर अपने काम में जुट गया।, वृद्ध द्वारा डाली गई रेत नदी के प्रवाह में बही जा रही थी। यह देख उसे वृद्ध की नासमझी पर हँसी आ गई। उसने कहा “महाशय यह आप क्या कर रहे हैं ? छोटा बच्चा भी जानता है कि बिना नींव के रेत का पुल कभी नहीं बनता। ऐसा उपाय करो जिससे पुल बन जाए।”

तुरंत उस बूढ़े ने कहा- “ठीक है, बिना नींव के रेत का पुल नहीं बन सकता पर बिना अभ्यास के वेदों का ज्ञान कैसे हो सकता है ?”

इस उत्तर से यवक्रीत की आँखें खुल गई। वह समझ गया कि यह बूढ़ा और कोई नहीं, स्वयं इंद्र है। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने इंद्र के चरणों में गिरकर कहा “हे देव! मेरी आँखे खुल गई। अब मैं अभ्यास के द्वारा वेदज्ञ बनूँगा। आप ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि अभ्यास में मेरी लगन कभी कम न हो।”

इंद्र ने कहा- “तथास्तु” !

शिक्षा

इस अध्याय से हमें यही शिक्षा मिलती है कि जिस प्रकार बिना नींव के मकान नहीं बन सकता। उसी प्रकार बिना अभ्यास एवं परिश्रम के ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। ज्ञान प्राप्ति के लिए हमें सदैव कठोर परिश्रम करना चाहिए। तभी हमें उच्च ज्ञान प्राप्त हो सकेगा।

2. नर्मदा

Best moral stories for class 2 – नर्मदा वास्तव में मध्य भारत की नदी है। यह दक्षिणी पठार के पूर्वी भाग से निकलती है और मध्य प्रदेश से होकर महाराष्ट्र और गुजरात की सीमा के किनारे-किनारे बहती है। इसे अक्सर उत्तर और दक्षिण भारत को विभाजित करने वाली सीमा रेखा माना जाता है। भौगोलिक दृष्टि से यह दक्षिण भारत की नदी है।

मध्य भारत के पठार से पश्चिम की ओर बहने वाली जो दो मुख्य नदियाँ निकलती हैं, उनमें दूसरी है ताप्ती यह हर्षवर्धन के साम्राज्य की उत्तरी सीमा मानी जाती थी। महाभारत के अनुसार नर्मदा नदी अवंती के प्राचीन राज्य चालुक्य वंश की दक्षिणी सीमा थी।

मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी से निकली नर्मदा उन नदियों में से है, जिन्हें मनुष्य ने , अभी तक काबू नहीं किया है। महाभारत में इस नदी को रेवा कहा गया है, जिसका अर्थ लेख है ‘नाचती हुई।’ यह ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियों के बीच, घने जंगलों और कंदराओं के बीच, नाचती – कूदती बहती है।

घाटियों में इसमें तेज मोड़ आते हैं और इसके पूरे मार्ग में कई झरने मिलते हैं। एक स्थान पर इसका नीला जल संगमरमर की चट्टानों को काटता हुआ बहता हैं, तो एक दूसरे स्थान पर लाल-पीले बलुआ पत्थरों की विशाल चट्टानों को। एक जगह यह कोयले के भारी जमावों के बीच बहती है।

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1312 किलोमीटर की यात्रा के बाद आजादी से बहने वाली यह नदी अंत में गुजरात में, भड़ौच के निकट, कैंबे की खाड़ी में मिल जाती है।

Best moral stories for class 2 – नर्मदा का जन्म समुद्रतल से एक हजार मीटर से भी अधिक ऊँचाई पर होता है और जन्म से ही यह अपनी मनमौजी प्रकृति का परिचय देती है। बहुत-सी भव्य जलप्रपात बनाती हुई, कपिलधारा में यह 25 मीटर की ऊँचाई से गिरती है। मंडला पहाड़ियों की ऊँची-नीची, ऊबड़-खाबड़ जमीन पर से बहती हुई धुआँधार नामक स्थान में फिर पहाड़ की चोटी से गिरती है।

तब, मानो गिरने पड़ने, नाचने-कूदने से थककर तीन मील लंबी संगमरमर की पहाड़ी पर शांति से सुस्ताती चलती है। फिर आता है विंध्य और सतपुड़ा की घाटियों के बीच 320 किलोमीटर लंबा रास्ता। जबलपुर और इंडिया के बीच की यह घाटी बहुत ही उपजाऊ है, क्योंकि यहाँ पर नदी ढेरों गाद और मिट्टी आदि जमा करती रहती है।

इसके बाद दोनों ओर घने जंगलों से घिरा पहाड़ी प्रदेश आ जाता है। यहाँ किसी समय डाकू और पिंजरी लोग छुपकर रहा करते थे। अंत में नर्मदा गुजरात के मैदानों में प्रवेश करती है। यहाँ उसके पानी में नावें चलाई जा सकती हैं।

Best moral stories for class 2- भारतीय पौराणिक उपाख्यानों में हमारी नदियों के जन्म से कोई-न-कोई दैवी घटना जुड़ी है। इसी कारण नर्मदा भी पवित्र नदी मानी जाती है। भक्तजन हर वर्ष नदी की प्रदक्षिणा करते हैं, यानी वे नदी का पूरा चक्कर लगाते हैं। भड़ौच में नदी के मुहाने से वे चलना शुरू करते हैं और उसके एक तट के किनारे चलते-चलते नदी के स्रोत अमरकंटक पहुँच जाते हैं।

वहाँ पूजा करने के लिए दूसरे तट के किनारे-किनारे चलते हुए फिर नदी के मुहाने पर वापस आ जाते हैं। अन्य भारतीय नदियों की तरह नर्मदा के किनारे भी अनेक तीर्थ-स्थान बसे हैं। पराघाट, ओंकार, परवाणी, करनाली, शुक्लतीर्थ और स्वयं भड़ौच । मंदहाट का जिक्र करना जरूरी है जो नर्मदा का एक द्वीप है और जहाँ 3 ओंकारनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है।

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Best moral stories for class 2 – मंदिरों और महलों का नगर महेश्वर एक पुराने साम्राज्य की राजधानी है। शुक्लतीर्थ के निकट नर्मदा में एक छोटा-सा द्वीप है। कहते हैं यहाँ बरगद के एक पेड़ के नीचे कबीरदास संन्यासी के रूप में रह रहे थे। इस स्थान को आज तक कबीर कहते हैं।

नर्मदा की प्रमुख सहायक नदी बंजर, जो उसे मंदहाट में मिलती है। शेर और शक्कर नरसिंहपुर में मिलते हैं, तावा काजा, छोटा तावा होशंगाबाद में। उत्तर में सिर्फ एक सहायक नदी हिरन, जबलपुर में नर्मदा से मिलती है।

इस नदी की एक खास बात यह है कि इसकी चौड़ाई रास्ते भर घटती-बढ़ती रहती है। दूसरी खास बात यह है कि इसके मुहाने से लेकर अंदर की ओर 88 किलोमीटर की दूरी तक इस पर समुद्री ज्वार-भाटे का प्रभाव पड़ता है। इस वजह से और नदी का मार्ग पहाड़ी क्षेत्र में होने की वजह से नर्मदा के पानी का पूरा उपयोग नहीं होता।

फिर भी विकास के बहुत ज्यादा प्रयास के बिना ही मुहाने से लेकर सौ किलोमीटर अंदर तक नाव चलती हैं। इस मनमौजी नदी के जल से 90,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र की सिंचाई होती है।

शिक्षा

इस अध्याय से यह शिक्षा मिलती है कि नदियों का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अगर ये नदियाँ नहीं होंगी तो जीवन कष्टमय हो जाएगा। अतः हमें जीवन देने वाली नदियों को स्वच्छ रखना चाहिए एवं जल संरक्षण का कार्य करना चाहिए।

3. श्री गुरु नानक देव जी

Best moral stories for class 2- समय-समय पर हमारे देश में महापुरुषों का जन्म हुआ है। उन्होंने भाईचारे और एकता का संदेश दिया। ऐसे ही एक महापुरुष गुरु नानक थे। वे सिक्खों के प्रथम गुरु थे।

गुरु नानक का जन्म सन् 1469 ई० में कार्तिक मास की पूर्णिमा को तलवंडी नामक गाँव में हुआ था। यह स्थान अब पाकिस्तान में है। इस स्थान को ‘ननकाना साहब’ कहते हैं। | उनके पिता का नाम कालूचंद पटवारी और माता का नाम तृप्ता देवी था। नानक की एक बड़ी बहन भी थी। उसका नाम नानकी था।

आठ वर्ष की आयु में नानक को पढ़ने के लिए पाठशाला भेजा गया, लेकिन उनका मन पढ़ने में नहीं लगता था। वे सदा भगवान के संबंध में ही सोचा करते थे। घर पर ‘उनको खर्च के लिए जो कुछ पैसे मिलते थे, उन्हें वे दोनों में बाँट देते थे।

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पिता ने देखा की बालक का मन पढ़ने में नहीं लगता, तो उन्होंने अपने पुत्र को चालीस रुपये देकर लाहौर भेजा, उन्होंने नानक से कहा, “बेटा! इन रुपयों से व्यापार करके कुछ कमा लाओ।”

Best moral stories for class 2 – नानक लाहौर की ओर बढ़ने लगे। मार्ग में उन्होंने साधुओं की एक टोली देखी। उन्हें मालूम हुआ कि साधु तीन दिन से भूखे हैं। उनका हृदय पिघल गया। उन्होंने तुरंत सारे रुपये साधुओं के खिलाने-पिलाने में खर्च कर दिए। वे खाली हाथ पर लौट आए। पिता को पुत्र के इस कार्य से बहुत दुःख हुआ। उन्होंने नानक को बहुत डाँटा, पर उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन न हुआ।

पिता ने पुत्र को सुधारने के लिए उनका विवाह सुलक्षणी नामक कन्या से कर दिया। उनके श्रीचंद और लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र हुए। परंतु नानक का मन गृहस्थी में भी न लगा । वे जो कुछ कमाते थे।

Best moral stories for class 2 – दीन-दुखियों में बाँट देते थे। उनकी पत्नी ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन नानक पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने घर बार छोड़ दिया। वे घूम-घूम कर उपदेश देते थे। उनके उपदेशों का सार था. – “ईश्वर एक है। हम सबको उसी ने बनाया है। हिंदू-मुसलमान उसी की ही संतान हैं। उसकी दृष्टि में सभी समान हैं। अच्छे काम करने से ही वह प्रसन्न होता है।” वे धीरे-धीरे ‘गुरु नानक’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

नानक के दो मुख्य शिष्य थे बाला और मरदाना अपने शिष्यों के साथ उन्होंने तीन बार भारत के प्रसिद्ध स्थानों की यात्रा की थी। एक बार वे घूमते-घूमते बगदाद मधुलिका पहुँचे। वहाँ के शासक ने गरीबों को सताकर बहुत धन इकट्ठा किया था। नानक ने उसकी आँखें खोलनी चाही। वे बहुत-से कंकड़-पत्थर एकत्रित कर उसके महल के पास बैठ गए। अगले दिन

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Best moral stories for class 2 – शासक उधर से जा रहा था। उसने नानक से पूछा, “यह सब क्या है ?” नानक ने उत्तर दिया “मैंने सुना है कि आपने बहुत सा धन इकट्ठा किया है और मरने पर आप उसे साथ ले जाएँगे अतः मैं भी इन्हें ले जाऊँगा।” इस उत्तर का शासक के हृदय पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उसने तुरंत सारा धन गरीबों में बाँट दिया और नानक का भक्त हो गया।

गुरु नानक के बनाए हुए अनेक भजन अब तक गाए जाते हैं। वे सब एक पुस्तक संग्रहित हैं, जो ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से मशहूर है। यह सिक्खों का धार्मिक ग्रंथ है। सिक्ख लोग इसका पाठ करते हैं।

यह ग्रंथ सदाचार का पाठ सिखाता है। सन् 1538 ई० में करतारपुर (पंजाब) में नानक का स्वर्गवास हुआ। उनके पश्चात् उनके एक शिष्य लहन उनकी गद्दी पर बैठे, आगे चलकर यही गुरु अंगद कहलाए।

शिक्षा :-

इस अध्याय से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने देश के महापुरुषों की तरह प्रेम और सौहार्द के साथ जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।

4. गड़पति और कुबेर

स्तुति प्रतीक्षा गणपति शिव के पुत्र थे। पर थे बड़े बेडौल। उनका शरीर नाटा और मोटा था और सिर हाथी का चलते थे तो सूँड़ हिलती थी। वे बड़े नटखट और हँसोड़ थे। उन्हें दूसरों को सताने में बड़ा मजा आता था। जो उनकी खातिर न करता, उसकी नाक में दम कर देते थे।

गणपति भोजनभट्ट थे। जब खाना शुरू करते तो पीछे नहीं देखते थे। best moral stories for class 2 लोग उन्हें बढ़िया-बढ़िया चीजें खिलाया करते थे। कुबेर तीनों लोकों में सबसे अधिक धनी थे। वे सबको दिखाना चाहते थे कि उनसे अधिक धन

पूरे ब्रह्मांड में किसी के पास नहीं है। लोग उनके पास सहायता के लिए जाते तो उनको बहुत अच्छा लगता था। वे माँगने वालों को खूब दिया करते थे। अच्छे अच्छे धनी लोग भी उनसे मदद लेने जाया करते थे। कुबेर उन सबकी सहायता किया करते थे। सब लोग उनकी स्तुति किया करते थे। अपनी प्रशंसा सुनकर वे फूले न समाते थे। इस कार्य के लिए कुबेर खूब धन खर्च किया करते थे। उन्होंने विशाल महल और best moral stories for class 2

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बड़े-बड़े मंदिर बनवाए। वे बड़े-बड़े उत्सव करते और शानदार भोज देते थे। राजा-महाराजाओं को मूल्यवान उपहार, भोजन आदि दिया करते। आश्चर्य यह था कि इतना खर्च करने पर भी उनका धन कम होने के बजाए बढ़ता जाता।

एक बार कुबेर ने सोचा कि स्वर्ग में देवताओं को भोजन के लिए आमंत्रित किया। जाए। भगवान शिव कुबेर के इष्ट देवता थे। उनकी कृपा से ही वे इतने धनवान हो गए थे। उन्होंने भगवान शिव और उनके परिवार को निमंत्रण देने का संकल्प किया।

कुबेर शिव को निमंत्रण देने के लिए कैलाश पहुँचे। शिव के दर्शन और स्तुति कले के पश्चात् कुबेर ने हाथ जोड़कर कहा – “महा प्रभो! आपने मुझ पर सदा कृपा की है। आज मैं तीनों लोकों में सबसे धनवान हूँ। मैं प्रत्येक अमीर-गरीब की सहायता करता | यह सुनकर कुबेर बहुत ही निराश हो गए।

वे शिव के चरणों पर गिर पड़े और कहने लगे “ऐसा अनर्थ न करो महा प्रभो! सब जानते हैं कि मैं आपको निमंत्रण देने के लिए आया हूँ। आपके न पहुँचने पर मेरा बड़ा अपमान होगा। वे सब यही समझते हैं कि आप मेरी कोई बात नहीं काटते। “

भगवान शिव ने कहा – “एक उपाय है। मैं अपने बेटे गणपति को तुम्हारे भोज में जाने को कह दूँगा।” कुबेर को इसी पर संतोष करना पड़ा। गणपति की दावत का दिन तय करके कुबेर लौट आए। कुबेर ने इतने बड़े और शानदार भोज का आयोजन किया जो पहले न कभी देखा गया था, न सुना गया था।

वह चाहते थे कि आयोजन ऐसा हो कि लोग वाह-वाह कर उठे। खाना ऐसा स्वादिष्ट बने कि लोग उँगलियाँ चाटते रह जाएँ। बस चारों तरफ धूम मच जाए। आयोजन की तैयारी शुरू हो गई। हर प्रकार के अन्न, घी, शाक-सब्जी और मिठाइयों से भंडार भर दिए गए।

ऐसी कोशिश की गई कि कहीं कोई कमी न रहे।

भोजन का निश्चित दिन आ गया। तीनों लोकों के देवी-देवताओं और राजा-महाराजाओं के परिवार और ईष्टमित्र पहुँचने लगे। सुंदर, कीमती वस्त्रों और हीरे-जवाहरात आभूषणों से सजे अतिथिगण पधारने लगे। कुबेर और उनके परिवार के लोग द्वार पर खड़े होकर उनका स्वागत कर रहे थे। सारे अतिथि पहुँच गए, बस, गणपति की प्रतीक्षा थी।

नियत समय पर मुख्य अतिथि के रूप में गणपति भी पहुँच गए। कुबेर ने बड़े आदर से उनका स्वागत किया। पहुँचते ही गणपति बोले “मुझको भूख लगी है, भोजन कहाँ है ?” भोजन का कमरा हीरे-जवाहरात से खूब जगमगा रहा था। चारों ओर सुगंध उड़ रही थी। एक तरफ थालियों में छप्पन प्रकार के व्यंजन परोसे हुए थे। दूसरी तरफ फल मेवे आदि रखे हुए थे। क्या कहना था वहाँ की तैयारी तथा साज-सज्जा को ।

कुबेर ने कहा ‘महाराज! सब कुछ तैयार है। बस आपकी प्रतीक्षा थी। उस नन्हें देवता को इतनी भूख लगी थी कि देखते ही देखते उन्होंने सामने परोसा भोजन खा डाला। तुरंत दुबारा भोजन परोसा गया। गणपति उसको भी चट कर गए। तीसरी बार सारी चीजें परोसी गई। पलभर में उनका भी सफाया हो गया।

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इधर चीजें परोसी जातीं और उधर सफाचट ! परोसने वालों को जरा-आने में देर हो जाती, तो वह बिगड़ने लगते। कुबेर ने जल्दी-जल्दी परोसने का हुक्म दिया। रसोईघर और कमरे के बीच दौड़ते-दौड़ते परोसने वालों की टाँगें दुखने लगीं। लेकिन इधर यह हाल था कि गणपति की भूख ही नहीं मिट रही थी।

बड़ी तेजी से खाते-खाते नन्हें देवता ने हजारों लोगों के लिए तैयार किया गया सारा भोजन चट कर डाला। फिर भी उनकी भूख वैसी की वैसी ही बनी रही। -कुबेर ने तुरंत खाना पकाने की आज्ञा दी। लेकिन गणपति को देर कहाँ सहन थी ?

वे अपनी जगह से उठे और जोर से बोले – “मुझको भूख लगी है, तुरंत खाना लाओ।”) कुबेर ने हाथ जोड़कर कहा – “थोड़ा-सा समय दीजिए। अभी गरमा-गरम भोजन तैयार हो जाता है। ” पर गणपति ने कुछ नहीं सुना। वे दनदनाते रसोईघर में पहुँच गए और कच्चा-पक्का जो कुछ मिला, चट कर गए। उस पर भी भूख नहीं मिटी तो भंडार-घर पहुँचे। वहाँ रखी सभी चीजें खा गए। इस पर भी उनका पेट न भरा तो कुबेर से बोले – “मुझको कुछ और खाने को दो।”

कुबेर लाचार थे। गणपति ने कुबेर से कहा – “तुमने मुझको अपने घर भोजन का निमंत्रण दिया था। जब तुम्हारे पास मेरा पेट भरने को कुछ है ही नहीं तो निमंत्रण दिया ही क्यों ? मेरा पेट भरा ही नहीं। मुझे बड़ी भूख लगी है। अब मैं तुम्हें ही खाऊँगा।” यह कहकर गणपति कुबेर की ओर लपके।

कुबेर डर गए और लगे भागने। गणपति उनका पीछा करने लगे। आगे-आगे कुबेर और पीछे-पीछे गणपति दोनों दौड़ते-दौड़ते कैलाश जा पहुँचे। कुबेर शिव की शरण में पहुँचे और चिल्लाने लगे “रक्षा करो, रक्षा करो!” कुबेर उनके पैरों पर गिर पड़े।

शिव ने पूछा – ” बात क्या है ?” गणपति ने कहा – “कुबेर ने मुझको भरपेट खाना नहीं खिलाया। मुझको भूख लगी है।”

“तुम अंदर जाकर अपनी माँ से खाना माँग लो।” भगवान शिव ने कहा। गणपति चुपचाप वहाँ से चले गए। कुबेर का घमंड चूर-चूर हो गया।

5. प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा

अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में रूस ने बहुत प्रगति की। कुछ वर्ष पूर्व, जब वह मित्र देश के वैज्ञानिकों ने भारत को अंतरिक्ष यात्रा का निमंत्रण दिया तो हमारी सरकार ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए एक योग्य साहसी और परिश्रमी व्यक्ति की तलाश शुरू हुई।

अंतरिक्ष यात्रा के लिए उपयुक्त व्यक्ति के चुनाव का कार्य वायुसेना को दिया गया। अनेक आवेदन आए। योग्य व्यक्तियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की जाँच हुई। इनमें से केवल चार वायुयान चालकों को R SHARVE PWAPMA मॉस्को भेजा गया और वहाँ फिर उन पर स्वास्थ्य और योग्यता संबंधी परीक्षण किए गए। दो वर्ष के कठिन प्रशिक्षण के पश्चात् अंतरिक्ष यात्रा के लिए राकेश शर्मा को चुना गया।

राकेश शर्मा का जन्म 13 जनवरी, 1949 को पंजाब के पटियाला शहर में हुआ था। इनकी शिक्षा आंध्र प्रदेश में हुई। बचपन से ही इन्हें विमान चालक बनकर आसमान को छूने का शौक था। 1966 में इन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रवेश किया। साढ़े चार साल बाद इन्होंने भारतीय वायु सेना में कमीशन हासिल किया। स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा ने अनेक प्रकार के विमानों को चलाने में निपुणता भी प्राप्त की।

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योग्यता परीक्षा के बाद राकेश शर्मा को सितंबर, 1982 में मॉस्को के पास स्थित स्टार सिटी ले जाया गया जहाँ गागरिन प्रशिक्षण केंद्र है, जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। सबसे पहले इन्होंने रूसी भाषा सीखी। प्रशिक्षण काल में इनकी दिनचर्या प्रात: साढ़े चार बजे आरंभ हो जाती थी। केंद्र में इन्हें अंतरिक्ष और अंतरिक्षयान के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई और इससे संबंधित हर प्रकार की दुर्घटना का सामना करने के लिए सहर्ष तैयार किया गया।

3 अप्रैल, 1984 को राकेश शर्मा ने अपने दो रूसी साथियों यूरी मालिशेव और गेन्नदी स्त्रेकालोवा के साथ सोयूज़ टी – II नामक अंतरिक्ष यान में उड़ान भरी। 4 अप्रैल को ही भारतीय समय के अनुसार शाम आठ बजकर एक मिनट पर यह अंतरिक्ष स्टेशन सैल्यूट 7 नामक दूसरे अंतरिक्ष यान से जुड़ गया। इसमें तीन रूसी अंतरिक्ष यात्री पहले से ही मौजूद थे। उन्होंने आने वाले तीनों यात्रियों का स्वागत किया।

राकेश शर्मा का संपर्क विविध उपकरणों द्वारा पृथ्वी से निरंतर बना रहा। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने दूरसंचार से राकेश शर्मा से बातचीत भी की। करोड़ों भारतीयों ने इस दृश्य को दूरदर्शन पर देखा । श्रीमती इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा, ‘अंतरिक्ष से हमारा देश कैसा लग रहा है ?” राकेश शर्मा ने उत्तर दिया, “सारे जहाँ से अच्छा।”

राकेश शर्मा अंतरिक्ष यात्रा के दौरान स्वस्थ रहने के लिए योगाभ्यास भी करते थे। दे अंतरिक्ष में भारतीय खाना साथ ले गए थे। इस खाने को विशेष रूप से तैयार किया था। खाने में रोटी का आकार एक कौर के बराबर था जिसे तोड़ना न पड़े और इसके कण वहाँ गिरकर बैक्टीरिया को जन्म न दे।

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कुछ भारतीय व्यंजन; जैसे आलू, चने, शाकाहारी पुलाव और सूजी का हलवा रूसी यात्रियों को बहुत पसंद आया। फलों का रस भी पेस्ट या पाउडर के रूप में डिब्बे में बंद कर ले जाया गया था।

राकेश शर्मा अंतरिक्ष यान में लगभग एक सप्ताह तक रहे और 11 अप्रैल, 1984 को वह सकुशल धरती पर लौट आए।

भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। तदुपरांत प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा को उनकी सफलता के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।

शिक्षा- इस अध्याय से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सदैव योग्यता, साहस व लक्ष्य प्राप्त करने के लिए किया गया परिश्रम ही जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है। इन्हें आपसे कोई नहीं छीन सकता।

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