Top 9 Hindi Stories For Class 2 | शीर्ष 9 हिंदी कहानियां

Top 9 Hindi Stories For Class 2 | शीर्ष 9 हिंदी कहानियां

Hindi Stories For Class 2:- यहाँ मैं कक्षा 2 के लिए शीर्ष हिंदी कहानियाँ बताया हूँ जो बहुत मूल्यवान हैं और आपके बच्चों को जीवन के सबक सिखाती हैं, जो आपके बच्चों को लोगों और दुनिया को समझने में मदद करती हैं इसलिए मैं आपको बता रहा हूँ।

  1. भगवान का भरोसा
  2. अधम बालक
  3. जैसे को तैसा
  4. स्वाधीनता का सुख
  5. दया की महिमा
  6. शेर का थप्पड़
  7. भूल का फल
  8. मेल का फल
  9. जैसा संग वैसा रंग
  10. रीछ की समझदारी

1. Hindi story for class 2 – भगवान का भरोसा

जाड़े का दिन था और शाम हो गयी थी। आसमान में बादल छाये थे। एक नीम के पेड़पर बहुत-से कौए बैठे थे। वे सब बार-बार काँव-काँव कर रहे थे और एक-दूसरे से झगड़ भी रहे थे। इसी समय एक छोटी मैना आयी और उसी नीम के पेड़ की एक डाल पर बैठ गयी। मैना को देखते ही कई कौए उस पर टूट पड़े।

बेचारी मैना ने कहा-‘बादल बहुत हैं, इसलिये आज जल्दी अँधेरा हो गया है। मैं अपना घोसला भूल गयी हूँ। मुझे आज रात यहाँ बैठे रहने दो।’

कौओं ने कहा – ‘नहीं, यह पेड़ हमारा है। तू यहाँ से भाग जा।’

मैना बोली- ‘पेड़ तो सब भगवान्‌ के हैं। इस सर्दी में यदि वर्षा हुई और ओले पड़े तो भगवान् ही हमलोगों के प्राण बचा सकते हैं। मैं बहुत छोटी हूँ, तुम्हारी बहिन हूँ, मुझ पर तुमलोग दया करो और मुझे भी यहाँ बैठने दो।’ कौओं ने कहा- ‘हमें तेरी जैसी बहिन नहीं चाहिये। तू बहुत भगवान्का नाम लेती है तो भगवान्‌ के भरोसे यहाँ से चली क्यों नहीं जाती?

Top 9 Hindi Stories For Class 2 | शीर्ष 9 हिंदी कहानियां
Hindi stores for class 2

तू नहीं जायगी तो हम सब तुझे कौए तो झगड़ालू होते ही हैं, वे शाम को जब पेड़ पर बैठने लगते हैं, तब आपस मै झगड़ा किये बिना उनसे रहा नहीं जाता। वे एक दूसरे को मारते हैं और काँव-काँव करके झगड़ते हैं। कौन कौआ किस टहनी पर रात को बैठेगा यह कोई झटपट से नहीं हो जाता।

उनमें बार-बार लड़ाई होती है, फिर किसी दूसरी चिड़िया को ये अपने पेड़ पर तो बैठने ही कैसे दे सकते थे। आपस की लड़ाई छोड़कर ये मैना को मारने दौड़े।

कौआँ को काँव-काँव करके अपनी ओर झपटते देखकर बेबारी मैना वहाँ से उड़ गयी और थोड़ी दूर जाकर एक आम के पेड़ सर बैठ गयी।

रात को आँधी आयी। बादल गरजे और बड़े-बड़े ओले पड़ने लगे। बड़े आलू-जैसे ओले तड़-तड़, भड़-भड़ बंदूक की गोली जैसे पड़ रहे थे। कौए काँव-काँव करके चिल्लाये; इधर से उधर थोड़ा-बहुत उड़े; परंतु ओले की मार से सब-के- सब घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। बहुत-से कौए मर गये।

मैना जिस आप पर बैठी थी, उसकी एक मोटी डाल आँधी में टूट गयी। डाल भीतर से सड़ गयी थी और पोली हो ‘गयी थी। डाल टूटने पर उसकी जड़ के पास पेड़ में एक खोंड़र हो गया। छोटी मैना उसमें घुस गयी।

उसे एक भी ओला नहीं लगा। सबेरा हुआ, दो घड़ी दिन चढ़ने पर चमकीली धूप निकली। मैना खोंडर में से निकली, पंख फैलाकर चहककर उसने भगवन को प्रणाम किया और वह उडी |

मैना खोंड़रमेंसे निकली, पंख फैलाकर चहककर उसने भगवान्‌को प्रणाम किया और वह उड़ी।

पृथ्वी पर ओले से घायल पड़े हुए कौए ने मैना को उड़ते देखकर बड़े कष्ट से कहा- ‘मैना बहिन ! तुम कहाँ रही ? तुम को ओलों की मार से किसने बचाया?’

मैना बोली- ‘मैं आपके पेड़ पर अकेली बैठी थी और भगवान्की प्रार्थना करती थी । दुःख में पड़े हुए असहाय जीव को भगवान्के सिवा और कौन बचा सकता है।’

लेकिन भगवान् केवल ओले से ही नहीं बचाते और केवल मैना को ही नहीं बचाते। जो भी भगवान्पर भरोसा करता है और भगवान्‌ को याद करता है, उसे भगवान् सभी आपत्ति- विपत्ति में सहायता देते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।

Moral of Hindi story for class 2 – भक्ति धन से नहीं, मन से होती है ।

2. Hindi story for class 2 – अधम बालक

वर्षा के दिन थे । तालाब लबालब भरा हुआ था। मेढक किनारे पर बैठे एक स्वर से टर्र-टर्र कर रहे थे। कुछ लड़के स्नान करने लगे। वे पानी में कूदे और तैरने लगे। उनमेंसे एक ने पत्थर उठाया और एक मेढक को दे मारा। मेढक कूदकर पानी में चला गया। मेढक का कूदना देखकर लड़के को बड़ा मजा आया। वह बार-बार मेढक को पत्थर मारने और उन्हें कूदते देखकर हँसने लगा।

पत्थर लगने से बेचारे मेढक को चोट लगती थी। उनको मनुष्य की भाषा बोलनी आती तो अवश्य वे लड़के से प्रार्थना करते और शायद उसे गाली भी देते। लेकिन बेचारे क्या करें। चोट लगती थी और प्राण बचाने के लिये वे पानी में कूद जाते थे। अपनी पीड़ा को सह लेने के सिवा उनके पास कोई उपाय ही नहीं था।

लड़का नहीं जानता था कि इस प्रकार खेल में मेढकों को पत्थर मारना या कीड़े-मकोड़े, पतिंगे आदि को तंग करना अथवा उनकी जान ले लेना बहुत बड़ा पाप है। जो पाप करता है, उसे बहुत दुःख भोगना पड़ता है और मरने के बाद यमराज के दूत उसे पकड़कर नरक में ले जाते हैं। वहाँ उसे बड़े-बड़े कष्ट भोगने पड़ते हैं। लड़के को तो मेढकों को पत्थर मारना खेल जान पड़ता था। वह उन्हें बार-बार पत्थर मारता ही जाता था।

‘इसे पकड़ ले चलो।’ लड़केने पीछेसे जो यह बात सुनी तो मुड़कर देखने लगा। उसने देखा कि तीन यमदूत खड़े हैं। काले-काले यमदूत । लाल-लाल आँखें। बड़े-बड़े दाँत । टेढ़ी नाक। हाथोंमें मोटे-मोटे डंडे और रस्सी लड़का उन्हें देखते डर गया। उसने साथियोंको पुकारा, पर वहाँ कोई नहीं था। वह खेलनेमें लग गया था और लड़के स्नान करके चले गये थे।

‘पकड़ लो इसे!’ एक यमदूत ने दूसरे से कहा। ‘यह तो गुबरैले जैसा घिनौना है।’ दूसरे यमदूत ने मुख बनाकर पकड़ना अस्वीकार किया। ‘मैं इसे नहीं छू सकता। यह बड़ा नीच है। मेरे हाथ मैले हो जायँगे।’ तीसरे ने कहा। ‘तब इसे फंदे में बाँध लो और घसीटते हुए ले चलो।’ पहले ने सलाह दी। लड़का यह सब सुन रहा था।

उसके प्राण मानो निकले जा रहे थे। उसने बड़ा साहस करके पूछा- ‘मुझे कहाँ ले जाओगे ?’ ‘नरक में। जहाँ सब पापी जीते ही तेल में पकाये जाते हैं। पकौड़ी के समान।’ एक यमदूत गरजकर बोला। ‘पकौड़ी के समान!’ लड़के को माता का पकौड़ी बनाना स्मरण आया। ‘बाप रे, मैं पकौड़ी के समान पकाया जाऊँगा।’

‘मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? मुझे छोड़ दो।’ लड़के ने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की। ‘तू पापी है। तू महा अधम है। अब यदि कभी पाप न करे | तो छोड़ दें। यमदूतोंमें बड़ेने कहा। ‘मैं शपथ खाता हूँ, कभी पाप न करूँगा।

‘ लड़के ने बिना सोचे-समझे दोनों कान पकड़कर प्रतिज्ञा की। यमदूत तुरंत छूमंतर हो गये। लड़का भागा-भागा घर आया। उसने अपनी माता को सब बातें बताकर पूछा- ‘माँ! मैंने कौन-सा पाप किया है?

” माताने कहा- ‘बेटा! निरपराध मेढकों को मार-मारकर तू बड़ा पाप कर रहा था। किसी भी निरपराध को कष्ट देना महापाप है।’

‘पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ॥’

Moral of Hindi story for class 2 – जो उपदेश आत्मा से निकलता है, आत्मा पर सबसे ज्यादा कारगर होता है ।

3. Hindi story for class 2 – जैसे को तैसा

भैंस और घोड़े में लड़ाई हो गयी। दोनों एक ही जंगल में रहते थे। पास-पास चरते थे और एक ही रास्ते से जाकर एक ही झरने का पानी पीते थे। एक दिन दोनों लड़ पड़े । भैंस सींग मार-मारकर घोड़े को अधमरा कर दिया।

घोड़े ने जब देख लिया कि वह भैंस से जीत नहीं सकता, तब वह वहाँ से भागा। वह मनुष्य के पास पहुँचा। घोड़े ने उससे अपनी सहायता करने की प्रार्थना की। मनुष्य ने कहा – भैंस के बड़े-बड़े सींग हैं। वह बहुत बलवान्है , मैं उसे कैसे जीत सकूँगा ।

घोड़े ने समझाया – मेरी पीठ पर बैठ जाओ। एक मोटा डंडा ले लो। मैं जल्दी-जल्दी दौड़ता रहूँगा। तुम डंडे से मार-मारकर भैंस को अधमरी कर देना और फिर रस्सी से बाँध लेना ।

मनुष्य ने कहा- मैं उसे बाँधकर भला क्या करूँगा ? घोड़े ने बताया – भैंस बड़ा मीठा दूध देती है। तुम उसे पी लिया करना ।

मनुष्य ने घोड़े की बात मान ली। बेचारी भैंस जब पिटते- पिटते गिर पड़ी, तब मनुष्य ने उसे बाँध लिया। घोड़े ने काम समाप्त होने पर कहा- अब मुझे छोड़ दो। मैं चरने जाऊँगा। मनुष्य जोर-जोर से हँसने लगा। उसने कहा- मैं तुमको भी बाँधे देता हूँ। मैं नहीं जानता था कि तुम मेरे चढ़ने के काम आ सकते हो।

मैं भैंस का दूध पीऊँगा और तुम्हारे ऊपर चढ़कर दौड़ा करूँगा। घोड़ा बहुत रोया । बहुत पछताया। अब क्या हो सकता था। उसने भैंस के साथ जैसा किया, वैसा फल उसे खुद ही भोगना पड़ा ।

‘जो जस करइ सो तस फल चाखा ॥’

Moral of Hindi story for class 2 -जैसी करनी वैसी भरनी ।

जैसी करनी वैसी भरनी

4. Hindi story for class 2 – स्वाधीनता का सुख

एक दिन एक ऊँट किसी प्रकार अपने मालिक से नकेल छुड़ाकर भाग खड़ा हुआ। वह भागा, भागा और सीधे पश्चिम भागता गया, वहाँ तक जहाँ रास्त में एक नदी आ गयी। अब आगे भागने का रास्ता बंद हो गया। वह रास्ते में हरे-भरे खेत, पत्ते भरी झाड़ियाँ और खूब घने नीम के पेड़ छोड़ आया था। वह चाहता तो अपनी ऊँची गर्दन उठाकर पत्तियों से पेट भर लेता, लेकिन वह वहाँ से दूर भाग आया था ।

सामने चौड़ी गहरी धारा बह रही थी। पीछे ऊँचा कगार खड़ा था और दोनों ओर दूर तक रेत ही रेत थी। कहीं हरियाली का नाम तक नहीं था। बेचारा ऊँट वहाँ आकर खड़ा हो गया और जब थक गया तो बैठ गया। वह डर के मारे बलबला भी नहीं सकता था। कहीं ऊँटवाला आकर उसे पकड़ न ले । उसे खूब भूख लगी थी, लेकिन पानी के सिवा वहाँ था भी क्या वह लाचार था।

दो-तीन दिन बीत गये। भूख से ऊँट अधमरा हो गया। उसी समय एक कौआ आया। उसे ऊँटकी दशा पर दया आ गयी। उसने कहा – ‘ऊँट भाई! मैं उड़ता हूँ, तुम मेरे पीछे चलो। मैं तुम्हें हरे खेत तक पहुँचा दूँगा।’

ऊँट बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने कौए को धन्यवाद दिया। चलने को तैयार हो गया। उसी समय उसे याद आया और उसने पूछा- ‘भाई! उस खेत में कभी आदमी तो नहीं आता ?’

कौआ हँस पड़ा। उसने कहा- ‘भला, हरा खेत आदमी के बिना कैसे होगा ?’

‘तब तो मैं यहीं अच्छा हूँ।’ ऊँटने खिन्न होकर कहा । ‘यहाँ तो तुम भूखों मर जाओगे।’ कौएने समझाया। ‘लेकिन यहाँ रात-दिन नकेल डालकर कोई सताया तो नहीं करेगा। ऊँटने संतोष एवं गर्वभरे स्वरमें उत्तर दिया। सच तो है-

‘पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं ।

5. Hindi story for class 2 – दया की महिमा

एक बहेलिया था। चिड़ियों को जाल में या गोंद लगे बड़े भारी बाँस में फँसा लेना और उन्हें बेच डालना ही उसका काम था। चिड़ियों को बेचकर उसे जो पैसे मिलते थे, उसी से उसका काम चलता था।

एक दिन वह बहेलिया अपनी चद्दर एक पेड़ के नीचे रखकर अपना बड़ा भारी बाँस लिये किसी चिड़िया के पेड़ पर आकर बैठने की राह देखता बैठा था। इतने में एक टिटिहरी चिल्लाती दौड़ी आयी और बहेलिये की चद्दर में छिप गयी।

टिटिहरी ऐसी चिड़िया नहीं होती कि उसे कोई पालने के लिये खरीदे। बहेलिया उठा और उसने सोचा कि अपनी चहर में से टिटिहरी को भगा देना चाहिये। इसी समय वहाँ ऊपर उड़ता एक बाज दिखायी पड़ा। बहेलिया समझ गया कि यह बाज टिटिहरी को पकड़कर खा जाने के लिये झपटा होगा, इसी से टिटिहरी डरकर मेरी चहर में छिपी है।

बहेलियेके मन में टिटिहरी पर दया आ गयी। उसने ढेले मारकर बाज को वहाँ से भगा दिया। बाज के चले जाने पर टिटिहरी चद्दर से निकलकर चली गयी।

कुछ दिनों पीछे बहेलिया बीमार हुआ और मर गया। यमराज के दूत उसे पकड़कर यमपुरी ले गये। यमपुरी में कहीं आग जल रही थी, कहीं चूल्हे पर बड़े भारी कड़ाहे में तेल उबल रहा था । पापी लोग आग में भूने जाते थे, तेल में उबाले जाते थे।

यमराजके दूत पापियों को कहाँ कोड़ों से पीटते थे, कहीं कुल्हाड़ी से काटते थे और भी भयानक कष्ट पापियों को वहाँ दिया जाता था। बहेलिये के यहां जाते ही, यहाँ सैकड़ों, हजारों चिड़ियों आ गयीं और ये कहने लगीं इसने हमें बिना अपराध के फँसाया और बेचा है। हम इसकी आँखें फोड़ देंगी और इसका मांस नोच-नोचकर खायेंगी।’

बेचारा बहेलिया डरके मारे थर-थर कांपने लगा। उसी समय वहाँ एक ठिटिहरी आयी। उसने हाथ जोड़कर यमराजसे कहा ‘महाराज इसने बाजसे मेरे प्राण बचाये हैं। इसको आप क्षमा करें।’

यमराज बोले- यह बड़ा पापी है। सब चिड़ियाँ इसे नोयेंगी और फिर इसे जलाया जाएगा और कुल्हाड़ों काटा जायगा लेकिन यह छोटी टिटिहरी इसको बचाने आयी है। इसने एक बार इस चिड़ियापर दया की है। इसलिये इसको अभी संसार में लौटा दो और इसे एक वर्ष जीने दो’ |

यमराज के दूत बहेलिये के जीव को लौठा लाये। बहेलिये के घर के लोग उसकी देह को स्मशान ले गये थे और चिता पर रखनेवाले थे। वे लोग रो रहे थे। इतने में बहेलिया जी गया।

यह बोलने और हिलने लगा। उसके परके लोग बहुत प्रसन्न हुए और उसके साथ पर लौट आये। बहेलिये को यमराज की बात याद थी। उसने चिड़िया पकड़ना खेड़ दिया अपने भाइयों से भी चिड़िया पकड़ने का काम उसने छुड़ा दिया।

वह मजदूरी करने लगा। सबेरे और शाम को वह रोज चिड़ियों को थोड़े दाने डालता था। बहुत- सी चिड़ियां उसके दाने खा जाया करती थीं अब रोज वह भगवान्की प्रार्थना करता था और भगवान का नाम जपता था।

इससे बहेलिये के सब पाप कट गये। एक वर्ष बाद जब वह मरा, तब उसे लेने देवताओं का विमान आया और यह स्वर्ग चला गया। तुम्हें भी किसी भी जीव को कष्ट नहीं देना चाहिये। सभी जीवों पर दया करनी चाहिये जो जीवों पर दया करता है. उस पर भगवान् प्रसन्न होते हैं।

परहित सरिस धर्म नहि भाई पर पीड़ा सम नहि अधमाई ॥

6. Hindi story for class 2 – शेर का थप्पड़

एक ब्राह्मण देवता थे। बड़े गरीब और सीधे थे। देश में अकाल पड़ा। अब भला ब्राह्मण को कौन सीधा दे किसी भी बहाने भगवान का नाम तो तूने लिया ही है, अतः और कौन उनसे पूजा-पाठ कराये। बेचारे ब्राह्मण को कई दिनो तक भोजन नहीं मिला। ब्राह्मण ने सोचा भूख से मरने से तो प्राण दे देना ठीक है।”

ये जंगल में मरने के विचार से गये। मरने के पहले उन्होंने शुद्ध हृदय से भगवान्‌ का नाम लिया और प्रार्थना की। इतने में एक शेर दिखायी पड़ा। ब्राह्मण ने कहा मैं तो मरने आया ही था। यह मुझे खा ले तो अच्छा।’ शेर ने पास आकर पूछा- ‘तू डरता क्यों नहीं?’

ब्राह्मण ने सब बातें बताकर कहा- ‘अब तुम मुझे झटपट मारकर खा डालो।’ सच्ची बात यह थी कि उस चनके देवता को ब्राह्मण पर दया आ गयी थी। यही शेर बनकर आया था। उसने ब्राह्मण को पाँच सौ अशर्फियां दीं। ब्राह्मण घर लौट आया। सबेरे जब ब्राह्मण अशर्फी लेकर वहाँके बनिये से आटा-दाल खरीदने गया तथ निधने पूछा कि अशर्फी कहाँ मिली?

ब्राह्मण ने सच्ची बात बता दी और वह आटा-चावल आदि लेकर घर आ गया। बनिया बड़ा लोभी था। वह रात को अशर्फियों के लोभ से उनमें गया। उसने भी जीसे भगवान्का नाम लिया और प्रार्थना की।

शेर आया बनिये ने कहा- तुम झटपट मुझे खाकर पेट भर लो।’ शेर ने कहा-‘मैं तेरे जैसे लोभी को अवश्य खा जाता। पर मुझे मारूंगा नहीं; केवल थोड़ा-सा दण्ड दूंगा। शेर ने बनिये को एक पंजा मारा। उसका एक कान चिथड़े-बड़े होकर उड़ गया। एक आँख फूट गयी। उसे लोभ का यही पुरस्कार मिला।

7. Hindi story for class 2 – भूल का फल

रात वर्षा हुई थी। सवेरे रोजसे अधिक चमकीली धूप निकली।

बकरी के बच्छे ने मौका दूध पिया, भर पेट पिया। फिर यास सूपकर फुदका गीली नम भूमि पर उसे कूदने बड़ा मजा आया और वह चौकड़ियाँ भरने लगा। पहले माता के समीप उछलता रहा और फिर जब कानों में वायु भर गयी ती दूर की सूझी।

मा ने का ‘बेटा! दूर मत जा कहीं जंगल में भटक जायगा।” यह थोड़ी दूर निकल गया था। उसने वहीं से कह दिया मैं थोड़ी देर खेल-कूदकर सीट आऊंगा। तू मेरी चिन्ता मत कर। मैं रास्ता नहीं भूलूंगा।’

माता मना करती रही, लेकिन वह तो दूर जा चुका था। उसे अपनी समझ पर अभिमान था और माता के मना करने पर उसे झुंझलाहट भी आयी थी।

यह कूदने में मस्त था। चौकड़ी लगाने में उसे रास्ते का पता ही नहीं रहा। उसने जंगल को देखा और यह सोचकर कि थोड़ी दूस्तक आज जंगल भी देख लूं, आगे बढ़ गया। सचमुच वह जंगल में भटक गया और इसका पता उसे तब लगा जब यह कूदते अहलते थक गया जय उसने लौटना चाहा तो उसे रास्ते का पता ही नहीं था।

यह कंदीली पनी झाड़ियों के बीच रास्ता के लिये भटकता ही रहा।

“अरे, तू तो बहुत अच्छा आया। मुझे तीन दिनसे भोजन नहीं मिला है।’ पास की झाड़से एक बड़ा-सा भेड़िया यह कहते हुए निकल पड़ा।

बकरी के बच्चे को न तो उत्तर देने का अवकाश मिला और न होने का। उसे केवल मन में अपने मालिक गड़रिये की एक बात स्मरण आयी-

मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायें। लहे लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनम जग जायें ||

8. Hindi story for class 2 – मेल का फल

अपने देश में ऐसे बहुत-से नगर और गाँव हैं, जहां बहुत थोड़े पेड़ है। यदि वहां गाय-बैल भी कम हो और गोवर थोड़ा हो तो रसोई बनाने के लिये लकड़ी या उपले बड़ी कठिनाई से मिलते हैं।

एक छोटा-सा बाजार था। उसके आस-पास पेड़ कम थे और बाजार में किसानों के घर न होने से गाय-बैल भी थोड़े थे। जलाने के लिये लकड़ी और उपले वहाँ के लोगों को खरीदना पड़ता था। दो-तीन दिन वर्षा हुई थी, इसी से गाँवों से कोई मजदूर बाजार में लकड़ी या उपला बेचने नहीं आया था। इससे कई घरों में रसोई बनाने को ईंधन ही नहीं बचा था।

चींटियाँ कीड़े को धीरे-धीरे खिसका रही थीं। कीड़ा मोटा उस गाँव के दो लड़के, जो सगे भाई थे, अपने घर के लिये था। यह बार-बार लुढ़क पड़ता था कभी-कभी दस-पाँच सूखी लकड़ी ढूंढ़ने निकले। उनके पिता घर पर नहीं थे। चीटियाँ उसके नीचे दब भी जाती थीं।

लेकिन दूसरी चींटियाँ उनकी माता बिना सूखी लकड़ी के कैसे रोटी बनाती और उस कीड़े को हिलाकर झट दबी चींटियाँ को निकाल देती थीं। काली काली छोटी चींटियाँ थकने का नाम ही नहीं लेती थीं। लड़कों के देखते-देखते ये कीड़े को दूर तक धीरे-धीरे सरका कर ले गयीं।

कैसे अपने लड़कों को खिलाती। दोनों लड़के अपने पिता के लगाये आपके पेड़ के नीचे गये। वहाँ उन्होंने देखा कि आपकी एक मोटी सूखी डाल आंधी से टूटकर नीचे गिरी है। बड़े लड़के ने कहा-‘लकड़ी तो मिल गयी, लेकिन हमलोग इसे कैसे ले जायेंगे ?’

छोटे ने कहा – ‘हम इसे छोड़कर जायेंगे तो कोई दूसरा उठा ले जायगा।” लेकिन वे क्या करते। बड़ा भाई दस वर्ष का था और

छोटा साढ़े आठ वर्ष का इतनी बड़ी लकड़ी उनसे उठ नहीं सकती थी। इतने में छोटे लड़के ने देखा कि सूखी लकड़ी से गिरे एक मोटे बड़े सफेद कीड़े को, जो कि मर गया है, बहुत- सी चीटियाँ उठाये लिये जा रही हैं। छोटा लड़का चिल्लाया- “भैया यह क्या है?’

बढ़ने कहा-‘ये तो चींटियाँ कीड़े को ले जा रही हैं।” छोटा भाई बोला इतनी छोटी चींटियाँ इतने बड़े कीड़े को कैसे ले जाती हैं?’

बड़े भाई ने कहा-‘देखो तो कितनी चीटियाँ हैं। ये सब मिलकर इस कीड़े को ले जाती हैं। बहुत-सी चीटियाँ मिलकर जो मरे हुए साँप को भी घसीट ले जाती हैं।’

छोटा लड़का तो प्रसन्न हो गया। उसने ताली बजायी और कूदने लगा। फिर वह आमसे गिरी सूखी लकड़ीपर जाकर बैठ गया और बोला- भैया! हमलोग क्या चीटियों से भी गये-बीते हैं। तू जाकर अपने मित्रों को बुला ला। मैं यहाँ बैठता हूँ। हम सब लड़के मिलकर लकड़ी उठा ले जायेंगे।’

बड़ा लड़का बाजार में गया और अपने मित्रोंको बुला लाया। बहुत-से लड़के लगे और उन्होंने उस भारी लकड़ी को लुढ़काना और ठेलना प्रारम्भ किया। सब ने लगकर वह लकड़ी उन दोनों भाइयों के घर पहुँचा दी।

उन लड़कोंकी माताने अपने पुत्रोंके साथ आये लड़कोंको मिठाई दी और कहा- ‘बच्चो ! मेल में बहुत बल होता है। तुमलोग मिलकर कठिन से कठिन काम कर सकते हो और तुमलोग मिलकर रहोगे तो कोई भी तुम्हारी कोई हानि नहीं कर सकेगा। आपसमें मिलकर रहनेसे तुमलोगों का मन भी प्रसन्न रहेगा और तुम्हारे काम भी सरलता से हो जाया करेंगे।

9. Hindi story for class 2 – जैसा संग वैसा रंग

एक बाजार में एक तोता बेचने वाला आया। उसके पास दो पिंजड़े थे। दोनों में एक-एक तोता था। उसने एक तोते का मूल्य रखा था – पाँच सौ रुपये और एक का रखा था पाँच आने पैसे। वह कहता था कि ‘कोई पहले पाँच आनेवाले को लेना चाहे तो ले जाय, लेकिन कोई पहले पाँच सौ रुपये वाले को लेना चाहेगा तो उसे दूसरा भी लेना पड़ेगा।’

वहाँ के राजा बाजार में आये। तोते वाले की पुकार सुनकर उन्होंने हाथी रोककर पूछा- ‘इन दोनों के मूल्यों में इतना अन्तर क्यों है?”

तोते वाले ने कहा- ‘यह तो आप इनको ले जायें तो अपने-आप पता लग जायगा।’

राजा ने तोते ले लिये। जब रात में वे सोने लगे तो उन्होंने कहा कि ‘पाँच सौ रुपये वाले तोते का पिंजड़ा मेरे पलंग के पास टाँग दिया जाय।’ जैसे ही प्रातः चार बजे, तोते ने कहना आरम्भ किया- ‘राम, राम, सीता-राम!’ तोते ने खूब सुन्दर भजन गाये । सुन्दर श्लोक पढ़े। राजा बहुत प्रसन्न हुए।

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Parrot

दूसरे दिन उन्होंने दूसरे तोते का पिंजड़ा पास रखवाया। जैसे ही सबेरा हुआ, उस तोते ने गंदी-गंदी गालियाँ बकनी आरम्भ कीं। राजा को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने नौकर से कहा- ‘इस दुष्टको मार डालो।’

पहला तोता पास ही था। उसने नम्रता से प्रार्थना की – ‘राजन् ! इसे मारो मत! यह मेरा सगा भाई है। हम दोनों एक साथ जाल में पड़े थे। मुझे एक संत ने ले लिया। उनके यहाँ मैं भजन सीख गया। इसे एक म्लेच्छ ने ले लिया। वहाँ इसने गाली सीख ली। इसका कोई दोष नहीं है, यह तो बुरे संग का नतीजा है।’ राजा ने उस रद्दी तोते को मारा नहीं, उसे उड़ा दिया।

10. रिछ की समझदारी (Hindi Stories For Class 2)

वह शिकार खेलने गया था। लम्बी मार की बंदूक थी और कन्धे पर कारतूसों की पेटी पड़ी थी। सामने ऊँचा पर्वत दूर तक चला गया था। पर्वत से लगा हुआ खड्डा था, कई हजार फीट गहरा । पतली सी पगडंडी पर्वत के बीच से खड्डे के उस पार तक जाती थी। उस पार जंगली बेर हैं और इस समय खूब पके हैं। वह जानता था कि रीछ बेर खाने जाते होंगे।

उसने देखा, एक छोटा रीछ इस पारसे पगडंडी पर होकर उस पार जा रहा है। गोली मारने से रीछ खड्डे में गिर पड़ेगा। कोई लाभ न देखकर वह चुपचाप खड़ा रहा। दूरबीन लगाते ही उसने देखा कि उस पार से उसी पगडंडी पर दूसरा बड़ा रीछ इस पार को आ रहा है।

‘दोनों लड़ेंगे और खड्डे में गिरकर मर जायँगे।’ वह अपने- आप बड़बड़ाया। पगडंडी इतनी पतली थी कि उस पर से न तो पीछे लौटना सम्भव था और न दो-एक साथ निकल सकते थे। वह गौर से देखने लगा।

‘एक को गोली मार दूँ, लेकिन दूसरा चौंक जायगा और चौंकते ही वह भी गिर जायगा।’ देखने के सिवा कोई रास्ता नहीं ।

दोनों रीछ आमने-सामने हुए। पता नहीं, क्या वाद- विवाद करने लगे अपनी भाषा में । पाँच मिनट में ही उनका भलभलाना बंद हो गया और शिकारी ने देखा कि बड़ा रीछ चुपचाप जैसे था, वैसे ही बैठ गया। छोटा उसके ऊपर चढ़कर आगे निकल गया और तब बड़ा उठ खड़ा हुआ। ‘ओह, पशु इतना समझदार होता है और मूर्ख मनुष्य आपस में लड़ते हैं।’ शिकारी बिना गोली चलाये लौट आया। उसने शिकार करना छोड़ दिया।

‘सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। ‘

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